Translate

Thursday, April 14, 2011

सवालों के घेरे में ललित कला अकादमी

क्रिकेट के विश्वकप के शोरगुल में एक अहम घटना दब कर रह गई । यह एक ऐसी घटना है जो सरकार पोषित संस्था के कार्यकलापों पर सवालिया निशान खड़ा करती है । मैं बात कर रहा हूं ललित कला अकादमी की जिसके अध्यक्ष हिंदी के वरिष्ठ कवि, आलोचक और कला प्रेमी अशोक वाजपेयी हैं । सवाल इस लिए खड़े हो रहे हैं कि एक मशहूर चित्रकार डॉक्टर प्रणब प्रकाश ने अकादमी पर मनमानी का आरोप लगाया है । प्रणब प्रकाश का आरोप है कि उसने अरुंधति की एक न्यूड पेंटिग बनाई जिसकी वजह से ललित कला अकादमी ने उसकी पेंटिंग प्रदर्शनी की इजाजत नहीं दी । प्रणब का कहना है कि ललित कला अकादमी के अधिकारियों ने उन्हें मौखिक रूप से इस प्रदर्शनी की इजाजत दे दी थी और दो मार्च को उन्हें अकादमी के दफ्तर में आकर पैसे जमाकर प्रदर्शनी लगाने का आदेश पत्र लेने के लिए बुलाया गया था । लेकिन जब वो दो मार्च को अकादमी के दफ्तर में पहुंचे तो उन्हें मना कर दिया गया । पहले तो यह बताया गया कि उन्हें प्रदर्शनी के लिए गैलरी नहीं मिल सकती है क्योंकि बांग्लादेश के कुछ कलाकार उन्हीं तारीख को अपनी पेंटिग्स की नुमाइश करना चाहते हैं । लेकिन प्रणब प्रकाश का आरोप है कि जब उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेश के चित्रकारों की प्रदर्शनी उन्हीं तारीखों में लगनी थी तो पहले ही अनुरोध आया होगा ऐसे में उन्हें क्यों बुलाया गया । इस बात पर अकादमी के उपसचिव ने गैलरी के एसी खराब होने की बात बताई, साथ ही उन्हें इशारों-इशारों में यह भी बता दिया गया कि सचिव और अकादमी के आला अफसर उनके अरुंधति के न्यूड पेंटिग से खफा हैं और इस वजह से उनको प्रदर्शनी की इजाजत नहीं दी जा सकती है । हलांकि ललित कला अकादमी के सचिव सुधाकर शर्मा का कहना है कि प्रणब प्रकाश को कभी प्रदर्शनी की इजाजत दी ही नहीं गई थी, लिहाजा मनमानी का कोई सवाल ही नहीं उठता है । उन्होंने तो यह भी कहा कि अगर प्रणब प्रकाश के पास ललित कला अकादमी से किसी भी तरह का कोई पत्र व्यवहार हुआ हो या अकादमी ने हामी भरी हो तो वो फैरन दिखाएं । अगर ऐसा होता है तो सुधाकर शर्मा अपने अधिकारियों के खिलाफ जांच की बात भी करते हैं । दरअसल यह पूरा विवाद है बड़ा ही दिलचस्प । पढ़ाई से डॉक्टर, पेशे से शिक्षक और अपनी पेंटिग्स के जरिए मशहूर हुए प्रणब प्रकाश ने एक बेहद ही विवादास्पद पेंटिग बनाई जिसका शीर्षक दिया – गॉडेस ऑफ फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम । इस पेंटिंग का नाम भी अरुंधति की मशहूर किताब गॉड ऑफ स्माल थिंग्स से ही उठाया गया है । इस विवादास्पद पेंटिंग में प्रणब प्रकाश ने लेखिका अरुंधति राय को न्यूड तो पेंट किया ही साथ ही एक ही बिस्तर पर उन्हें दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन और चीन के नेता माओ के साथ दिखाया । प्रणब ने अपनी इस पेंटिग में बेहद चटख रंगों का इस्तेमाल करके अपने विरोध को मुखरता के साथ चित्रित किया है । प्रणब का कहना है कि अरुंधति एक बेहद प्रचार प्रिय लेखिका और तथाकथित समाजसेवी हैं जो प्रचार के लिए एक तरफ तो नक्सलियों के पक्ष में खड़ा होती हैं दूसरी तरफ कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ भी अपनी एकजुटता दिखाती हैं । प्रणब प्रकाश के इस पेंटिंग्स के बाद तो भूचाल आ गया । कई वामपंथी लेखकों और विचारकों और कलाकारों ने इसे घोर आपत्तिजनक माना और उसको प्रचार का हथकंडा करार दिया । अरुंधित के न्यूड पेंटिंग पर आपत्ति जताते हुए उक्त पेंटिग को वयक्ति विशेष की निजता का हनन और अभिवयक्ति की आजादी का दुरुपयोग करार दिया गया । उन्होंने इसे एक लेखक का अपमान बताते हुए इस तरह की चीजों को गैरजरूरी बताया । अभिवयक्ति की आजादी के बेजा इस्तेमाल पर शोर मचाने वाले यही लोग तब एम एफ हुसैन का समर्थन कर रहे थे जब उन्होंने सरस्वती, दुर्गा और सीता की आपत्तिजनक तस्वीरें बनाई थी । दरअसल मुझे लगता है कि प्रणब प्रकाश तो एस एफ हुसैन के दिखाए रास्ते पर ही चलने की कोशिश कर रहे हैं । एक बार हुसैन साहब ने भी आइंस्टीन, हिटलर और गांधी की तस्वीर बनाई थी जिसमें उन्होंने हिटलर को नंगा दिखाया था । जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने तीनों में सिर्फ हिटलर को उन्होंने नंगा पेंट किया तो एम एफ हुसैन ने जवाब दिया था कि किसी को अपमानित करने का यह उनका अपना तरीका है । और प्रणब प्रकाश बी यही कर रहे हैं । खैर यह एक अलग और अवांतर प्रसंग है जिसपर मैंने चौथी दुनिया के अपने इसी स्तंभ में कई लेख लिखे हैं । अब यहां सवाल यह उठता है कि प्रणब प्रकाश की पेंटिंग्स पर विवाद हो सकता है लेकिन क्या ललित कला अकादमी को किसी भी पेंटर के प्रदर्शनी को रोकने की इजाजत दी जा सकती है । ललित कला अकादमी देश की शीर्ष संस्था है जिसपर देश और विदेश में भारतीय कला को प्रोत्साहित करने और प्रचार प्रसार की महती जिम्मेदारी है । अगर यह संस्था किसी चित्रकार को उसके चित्रों के आधार पर दरकिनार करता है तो यह उसके घोषित उद्देश्य से भटकने जैसा होगा । ललित कला अकादमी पर इस तरह के आरोप पहले भी लग चुके हैं । कुछ दिनों पहले कार्टूनिस्ट इरफान ने भी अकादमी पर आखिरी वक्त पर प्रदर्शनी के लिए गैलरी देने से इंकार करने का इल्जाम लगाया था । उनका आरोप था कि चूंकि उनकी प्रदर्शनी का उद्घाटन बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी को करना था इस वजह से उसको जगह देने से मना कर दिया गया । बाद में वह प्रदर्शनी प्रेस क्लब ऑप इंडिया में लगाई गई थी । तब भी अकादमी की तरफ से यही बताया गया था कि इरफान को इजाजत नहीं दी गई थी । अगर एक ही तरह के आरोप कई लोग लगाते हैं तो ललित कला अकादमी की कार्यप्रणाली के बारे में उसके कर्ताधर्ताओं को सोचना चाहिए । किसी विचारधारा विशे, से ताल्लुक रखनेवाले कलाकार पर पाबंदी लगाकर तो सिर्फ फासीवाद का उदाहरण ही प्रस्तुत किया जा सकता है । लोकतंत्र में इस तरह से विचारधारा पर पाबंदी लगाने की इजाजत नहीं दी जा सकती है । इस तरह के काम वामपंथी प्रभाव वाले संस्थानों में जमकर हुआ है । जबतर वामपंथ का जोर रहा राष्ट्रवादी विचारधारा या फिर उनका विरोध करनेवाले को भगवा विचारधारा का पोषक करार देकर अछूत जैसा व्यवहार किया जाता रहा । इस बात को ललित कला अकादमी के अध्यक्ष अशोक वाजपेयी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता । अशोक वाजपेयी पर भी कलावादी कहकर जाने कितने हमले हुए । लेकिन अंतत बचता है तो लेखन और कला ही । अगर अशोक वाजपेयी के ललित कला अकादमी का अध्यक्ष रहते हुए कलाकारों के साथ उनकी विचारधारा के आधार पर भेदभाव किया जाता है, पावंदियां लगाई जाती हैं तो यह हिंदी जगत को किसी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होगा । ललित कला अकादमी पर इस तरह के आरोप से बचाने के महती जिम्मेदारी उसके अध्यक्ष अशोक वाजपेयी पर है और पूरे देश को उनसे वस्तुनिष्ठता की उम्मीद है ।

No comments: