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Saturday, April 23, 2011

लोकतंत्र को शर्मसार करता वाकया

अन्ना हजारे के आंदोलन की सफलता के जश्न और उसके बाद ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों पर आरोपों की बौछार ने पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिया जैसे की वही देश की सबसे बड़ी समस्या हो । इस पूरे विवाद में सीडी के सरताज अमर सिंह की एंट्री ने उस गंभीर मुद्दे को मनोरंजक बना दिया । सीडी के शोर के बीच एक ऐसी खबर दबकर रह गई जिसने पूरे देश को शर्मसार कर दिया, साठ साल से ज्यादा के हमारे गणतंत्र पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया । देश में सबसे ज्यादा साक्षर लोगों के प्रदेश केरल में एक ऐसा वाकया हुआ जो सभ्य समाज के मुंह पर करारा तमाचा है । केरल सरकार में एक वरिष्ठ दलित अधिकारी के रिटायर होने के दिन ही उनके दफ्तर में काम करनेवाले लोगों ने पूरे दफ्तर का शुद्धीककरण किया । सूबे के रजिस्ट्री विभाग में इंसपेक्टर जनरल के पद पर काम करनेवाले ए के रामकृष्णन जब इकत्तीस मार्च को सेवानिवृत्त हुए तो उस दिन उनकी विदाई के बाद उनके ही दफ्तर में काम करनेवाले कुछ लोगों ने उनकी कार को पहले पानी से धोया गया और फिर मंत्रोच्चार के बीच सार्वजनिक रूप से कार का शुद्धीकरण किया गया । बात इतने पर ही नहीं रुकी अगले दिन तो रजिस्ट्रार के दफ्तर के लोगों ने और आगे बढ़कर रामकृष्णन के बैठनेवाले कमरे और उनकी कुर्सी को भी पवित्र पानी में गाय के गोबर को घोलकर उससे साफ किया । पानी में गाय के गोबर को मिलाकर शुद्धीकरण करने की केरल में पुरानी मान्यता है । एक सरकारी दफ्तर में सरेआम इस तरह का वाकया हो और पूरा दफ्तर खामोश रहकर देखता रहे तो इस बात का पता चलता है कि हमारे समाज में जाति व्यवस्था कितने अंदर तक पैठ चुकी है । केरल की राजधानी में यह सब कुछ तब घटित हो रहा था जब कि लगभग एक पखवाड़े बाद सूबे में विधानसभा का चुनाव होनेवाला था। अफसोस की किसी भी राजनीतिक दल ने इस शर्मनाक वाकए को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया । उस कांग्रेस पार्टी ने भी इस मुद्दे पर कोई जनआंदोलन नहीं छेड़ा ना ही कोई मुहिम चलाई जो अपने आपको महात्मा गांधी की विरासत का वारिस कहते नहीं थकती । उस कांग्रेस पार्टी के नेताओं को भी यह मुद्दा नहीं लगा जिसके केरल के ही नेता और अब केंद्र में मंत्री व्यालार रवि के बेटे के विवाह के बाद गुरुवयूर मंदिर को शुद्ध किया गया था । सामाजिक समानता की बात करनेवाली वामपंथी पार्टी जो कि इस वक्त तक केरल में सत्ता में है,उसने भी इस मामले के सामने आने के बाद कोई कार्रवाई नहीं की। इस मामले में शिकायत मिलने के बाद राज्य मानवाधिकार आयोग ने सरकार के राजस्व विभाग से पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है । रिपोर्ट आने के बाद क्या कोई कार्रवाई हो पाएगी इस सवाल का जबाव तो अभी समय के गर्भ में ही है । एक जमाने में केरल के समाज में जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता समाज में गहरे तक धंसा था । स्वामी विवेकानंद ने केरल के समाज में भेदभाव की उस स्थिति पर गहरी चिंता जताई थी और महात्मा गांधी ने भी केरल के मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिए सत्याग्रह भी किए थे । केरल के प्रसिद्ध गुरुवयूर मंदिर में भी दलितों और गैर हिंदुओं के प्रवेश को लेकर लंबे समय तक जनआंदोलन चला था । लेकिन तमाम आंदलनों और समाज में शिक्षा के प्रचार प्रसार ने भी इस सामजिक बुराई को कम किया हो ऐसा प्रतीत नहीं होता है । ऐसा नहीं है कि दलितों के साथ भेदभाव सिर्फ केरल में ही हो रहा हो । चंद साल पहले उत्तर प्रदेश के न्यायिक अधिकारी ने भी इसी तरह के आरोप लगाए थे कि उनके दफ्तर के सहयोगी ने उनके बैठने की जगह का शुद्धीकरण किया था । उस मामले में भी शिकायत हुई थी लेकिन क्या कार्रवाई हुई यह अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है ।
केरल के अलावा हिमाचल प्रदेश के एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर में अब भी एक बोर्ड प्रमुखता से मंदिर के बाहर टंगा है - लंगर में शूद्रों का प्रवेश वर्जित है । यह किस तरह के समाज की तस्वीर जहां उसके ही लोगों का प्रवेश किसी धार्मिक स्थान में वर्जित है । देश की आजादी के चौंसठ साल बाद भी सार्वजनिक रूप से इस तरह के बोर्ड मंदिरों में लगे हैं और प्रशासन सो रहा है, सरकारों को इसकी फिक्र नहीं है । इससे तो यही प्रतीत होता है कि सरकार की मूक सहमति इस तरह की मान्यताओं के पक्ष में है या फिर वो इस तरह की समाजिक कुरीतियों को हचाने के प्रति उदासीन है । मंदिर में दलितों को प्रवेश नहीं मिलेगा, मंदिर के गर्भ गृह में महिलाओं को भी प्रवेश नहीं मिलेगा, लेकिन हम प्रगतिशील समाज हैं, हम आधुनिक हैं । इस तरह के दकियानूसी और घटिया विचार के लिए हमारे समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए । आज हमारा देश विश्व में सुपर पॉवर बनने का सपना देख रहा है । विश्व में हमारी अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी अर्थवयवस्था होने का ख्बाब देख रही है ,लेकिन समाज में इन विसंगतियों की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है । आज पूरे देश में भ्रष्टाचार को लेकर बड़ा आंदोलन किया जा रहा है । तथाकथिकत सिविल सोसाइटी के नुमाइंदे और सरकार के आला मंत्री भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए लोकपाल बिल के ड्राफ्ट बनाने में जुटे हैं । कांग्रेस के हाई प्रोफाइल नेता दिग्विजय सिंह लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं । लेकिन किसी के पास यह सोचने की फुरसत नहीं है कि समाज के निचले पायदान पर जीवन जी रहे लोगों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वो किस तरह जहालत और अपमानजनक जिंदगी जीने को अभिशप्त हैं । दलितों के घर में रात बिताने और उनके हाथ का खाना खाने वाले कांग्रेस पार्टी के युवराज राहुल गांधी को भी देश में दलितों के उत्थान की चिंता हो सकती है लेकिन उनकी तरफ से दलितों के उत्थान के लिए कोई ठोस पहल सामने नहीं आई है । क्या दलितों के घर में खाना भर खा लेने या उनके घर में रात बिता लेने से समाज में उनको मान्यता या फिर बराबरी का हक मिल पाएगा । दलितों के उत्पीड़न के खिलाफ कड़े कानून भर बना देने से उनका हित हो जाएगा या फिर उनपर अत्याचार रुक जाएंगे यह सोचना भी गलत है । कानून को सख्ती से लागू करना और समाज में उसका भय होना जरूरी है और यह तभी हो पाएगा जब ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई होगी और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलेगी ।
समाज से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जारी जंग जायज है, इस मुहिम को हर तरह का और हर तबके का समर्थन मिलना चाहिए । लेकिन देश में भ्रष्टाचार से बड़ी समस्या अब भी दलितों की समाज में दयनीय स्थिति है । इस दिशा में देश के कर्ताधर्ताओं के साथ साथ सिविल सोसाइटी को भी विचार करना होगा । गांधी जी ने अप्रैल 1921 में अहमदाबाद में सप्रेस्ड क्लास कॉंफ्रेंस के अपने भाषण में कहा था- जबतक देश का हिंदू समाज छूआछूत को अपने धर्म का हिस्सा मानता रहेगा, जब तक हिंदू समाज अपने समाज के साथ रहनेवाले कुछ लोगों को छूना पाप समझता रहेगा तबतक स्वराज को पाना मुमकिन नहीं है । गांधी का यह कथन आज भी उतना ही प्रासंगिक है । हम चाहे भ्रष्टाचार के खिलाफ जितनी भी बड़ी लड़ाई लड़ लें, उसमें चाहे हमें कितनी भी बड़ी सफलता हासिल हो जाए लेकिन जब तक हमारे समाज में केरल जैसी घटनाएं घटती रहेंगी, तबतक हमारी उस जीत का कोई मतलब नहीं रह जाएगा ।

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