आज देश आजादी का जश्न भले ही मना रहा हो लेकिन देश की जनता के बीच अपनी इस आजादी को लेकर एक संदेह, एक आशंका, एक रोष पैदा हो गया है । इस संदेह की वजह यह है कि पूर् देश में इस वक्त भ्रष्टाचार का बोलबाला है । समाज के सबसे निचले स्तर से लेकर देश के शीर्ष स्तर को भ्रष्टाचार की विषबेल ने जकड़ लिया है । चाहे वो पौने दो लाख करोड़ का टेलीकॉम घोटाला हो, सत्तर हजार करोड़ का कॉमनवेल्थ घोटाला हो, हजारों करोड़ का अंतरिक्ष घोटाला हो, चाहे देश के शहीदों के परिवारों को मिलने वाले घर का आदर्श घोटाला हो या फिर आईपीएल घोटाला । आज जिधर नजर दौड़ाइये घोटाले उधर ही मुंह बाए खड़े हैं । सारे घोटालों के केंद्र में या यों कहें कि हर भ्रष्टाचार की धुरी या तो कोई कांग्रेस का नेता है या फिर कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार को समर्थन दे रही पार्टी का नेता । हर घोटाले के बाद कांग्रेस पार्टी यह दलील देती नजर आती है कि अमुक घोटाले के लिए फलां नेता और मंत्री जिम्मेदार है । लेकिन इस बात को लेकर कभी कोई सवाल नहीं उठता कि जिस मंत्रिमंडल के सदस्य घोटाले कर रहे हैं उनके मुखिया की कोई जिम्मेदारी बनती भी है या नहीं । हर कोई इस बात की दुहाई देता नजर आता है कि देश के प्रधानमंत्री बहुत साफ सुथरे छवि के हैं । उनके दामन पर दाग नहीं है । अरे भाई उस साफ सुथरी छवि को लेकर देश की जनता क्या करे । देश छवि से नहीं चलता । देश चलाने के लिए कड़े फैसले लेने होते हैं । उस भले और ईमानदार आदमी का हम क्या करें जिनकी नाक के नीचे घोटाले हो रहे हैं लेकिन वो और उनके कारिंदे कहते हैं ये सब उनकी जानकारी में नहीं हुआ । क्या हम यह मान लें कि आजादी के लगभग साढ़े छह दशक बाद प्रधानमंत्री नाम की संस्था को गठबंधन की राजनीति ने कमजोर कर दिया है । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत ईमानदार हैं, होंगे, लेकिन जिस तरह उन्होंने भ्रष्टाचार की तरफ से आंखें मूंद ली है उससे एक संदेह का वातावरण तो उनके इर्द गिर्द भी बन ही जाता है । आप लाख ईमानदार हों लेकिन आपके सहयोगी भ्रष्टाचारी हैं तो उसके छींटे तो आपके दामन पर भी पड़ेंगें ही । अंग्रेजी में एक मशहूर कहावत है – अ मैन इज नोन बाइ हिज कंपनी, ही कीप्स ।
ऐसा नहीं है कि देश में सिर्फ कांग्रेस पार्टी और उसके नेता ही भ्रष्ट हैं । देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में भी येदुरप्पा जैसे लोग हैं जिनका दामन दागदार है । येदुरप्पा पर जमीन घोटाले के आरोप लगे लेकिन बीजेपी को उनपर कार्रवाई करने में लोकायुक्त की रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ा । सार्वजनिक जीवन में शुचिता और उच्च सामाजिक मानदंड की वकालत करनावली पार्टी बीजेपी, झारखंड में शिबू सोरेने के साथ मिलकर सरकार चला रही है । शिवू सोरेन पर पहले भी भ्रष्टाचार समेत हत्या और हत्य़ा की साजिश रचने के संगीन इल्जाम लग चुके हैं । उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की सरकार पर भी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन समेत कई सरकारी योजनाओं में घपले घोटाले की जांच चल रही है । मायावती पर आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा विचाराधीन है । उत्तर प्रदेश सरकार पर कैग की ताजा रिपोर्ट में बेहद गंभीर आरोप लगे हैं । तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता पर भी भ्रष्टाचार का मुकदमा चल रहा है । समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और हरियाणा के चौटाला पिता पुत्र के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में आय से अधिक संपत्ति का केस जारी है । लालू यादव और कई सूबों के और नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच चल रही है, यह सूची बहुत लंबी है । अभी-अभी आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी की संपत्ति की जांच के आदेश दिए हैं ।
यह अकारण नहीं है कि देश के तीस मुख्यमत्रियों की कुल संपत्ति करीब ढाई सौ करोड़ रुपये हैं । इस अनुमान के मुताबिक राज्यों के मुख्यमंत्रियों की औसत संपत्ति आठ करोड़ रुपये है । लेकिन अगर उसमें से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और तमिलनाडू के मुख्यमंत्री(अब पूर्व) करुणानिधि की संपत्ति हटा दी जाए तो देश के मुख्यमंत्रियों की औसत संपत्ति घटकर करीब चार करोड़ रुपए रह जाएगी । तकरीबन 87 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और दलित नेता मायावती देश की सबसे अमीर मुख्यमंत्री हैं । दो हजार दस में मायावती ने बताया था कि उनकी संपत्ति तीन साल में 35 करोड़ रुपये बढ़ गई है यानि की तीन साल में बावन करोड़ से बढ़कर सत्तासी करोड़, तकरीबन सड़सठ फीसदी का इजाफा । केंद्रीय मंत्रियों की लिस्ट पर भी अगर नजर डालेंगे तो यह अमीरी नजर आएगी । कहां से आ रहे हैं ये पैसे, ये तो घोषित संपत्ति है, क्या कोई अघोषित संपत्ति भी है । इस तरह के सवाल पूरे देश को मथ रहे हैं । कोई कहता है कि उनके समर्थक चंदा देते हैं तो कोई अपने कारोबार के बूते करोड़पति बनने की बात कर रहा है । नतीजा यह हो रहा है कि पूरे देश में इस वक्त पॉलिटिकल क्लास को लेकर जनता के मन में एक गंभीर सवाल खड़ा हो गया है । आजादी के तकरीबन चौंसठ साल बाद भी आज देश की जनता अपने चुने हुए नेताओं पर भरोसा नहीं कर पा रही है तो यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक बात है । देश की आजादी की वर्षगांठ पर पॉलिटिकल क्लास के लोगों के लिए आत्ममंथन का भी वक्त है ।
इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि सत्ताधरी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करनेवाली संस्थाओं पर ही हमले करने लगे हैं । जब सीएजी की रिपोर्ट में दिल्ली की मुख्यमंत्री के खिलाफ आता है तो कांग्रेस के प्रवक्ता उस संस्था को ही सवालों के घेरे में ले लेते हैं । उसके पहले टेलीकॉम घोटाले में कैग की रिपोर्ट की जांच कर रही संसद की लोकलेखा समिति पर भी कांग्रेस के लोगों ने इस तरह से ही सवाल खड़े कर दिए थे । भ्रष्टाचारियों को बचाने या फिर उनके समर्थन के लिए लोकतांत्रिक और संवैधानिक संस्थाओं पर हमले से ऐसा लगता है कि कांग्रेस को भ्रष्ट लोगों की ज्यादा चिंता है बजाए संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा की । आजादी के बाद जिस तरह से उन्नीस सौ पचास में सीएजी को बनाकर उसे संवैधानिक आजादी दी गई और जिसे जवाहरलाल नेहरू ने अपने शासनकाल में मजबूकी दी आज उसपर ही इस वक्त के कांग्रेसी उंगली उठा रहे हैं ।
पूरा देश यह भी देख रहा है कि किस तरह से अन्ना हजारे, जो कि आज भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रतीक बन चुके हैं, को परेशान किया जा रहा है । उनकी आवाज को दबाने या फिर उनको या उनकी टीम को परेशान करने का कोई मौका सरकार नहीं छोड़ रही है । चाहे वो दिल्ली में अनशन करने देने के लिए जगह देना का मामला हो या फिर लोकपाल बिल में मनमानी करने का । अन्ना के खिलाफ खड़े होकर सरकार ने इतनी बड़ी गलती कर दी है जिसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं है । दरअसल आज कांग्रेस के पास आजादी के आंदोलन से तपकर निकले जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, एस राधाकृष्णन और डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जौसे नेता नहीं हैं जो एक नैतिक उदाहरण पेश कर सकें । अन्ना ने ईमानदारी की जो नैतिक चुनौती सरकार को दी है उसका जवाब देने के लिए कांग्रेस के पास कोई नेता नहीं है । कपिल सिब्बल हों या फिर चिदंबरम या फिर विवादित बयानों के लिए चर्चित दिग्विजय सिंह- इन सबमें वो नैतिक ताकत नहीं है जो अन्ना हजारे का मुकाबला कर सके । लेकिन उससे भी चिंता की बात यह है कि देश में इन भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्रवाई ना होते देख जनता क्षुब्ध होने लगी है, उनका धैर्य जवाब देने लगा है । आज जश्ने आजादी के बीच पॉलिटिकल क्लास को जनता की इस नाराजगी का संज्ञान लेना चाहिए ।
2 comments:
अनंत विजय जी को नमस्कार.
आपसे कुछ बातें करनी है. कृपया अपना मोबाईल न. एवं मेल आईडी देने का श्रम करें.
संजीव कुमार सिन्हा
संपादक, प्रवक्ता.कॉम
sanjeev.sinha78@gmail.com
9868964804
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