जब भगत सिंह औऱ उनके साथियों को फांसी दी गई तो महात्मा गांधी ने कहा था- भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दे दी गई और वो शहीद हो गए । उनकी मौत कई लोगों के लिए वयक्तिगत क्षति है । मैं भी इन तीन नौजवानों को श्रद्धांजलि देता हूं । लेकिन मैं देश के युवाओं को चेतावनी भी देना चाहता हूं कि वो उनके पदचिन्हों पर न चलें । हमें अपनी उर्जा, त्याग करने का जज्बा, अपनी मेहनत और अदम्य साहस को भगत सिंह और उनके साथियों की तरह इस्तेमाल नहीं करना है । हमें खून खराबा से आजादी नहीं मिल सकती है । - यह बात सर्वविदित है कि गांधी जी न केवल अहिंसा की वकालत करते थे बल्कि अहिंसक तरीके से काम करने में यकीन भी रखते थे । लेकिन कई ऐसे अवसर भी आए जब गांधी जी ने भी हिंसा का सहारा लिया और उसकी वकालत भी की । बहुत ही दिलचस्प वाकया है । 1895 में उनके डरबन के घर पर उनके दोस्त शेख महताब ने एक वेश्या को बुला लिया । गांधी को पता चला तो वो भड़क गए । ना केवल जबरदस्ती कमरे का दरवाजा खुलवाया बल्कि महताब की बांह मरोड़कर उन्हें घर से निकल जाने का हुक्म भी दिया । मेहताब के मना करने पर पुलिस बुलाने की धमकी भी दी । उसी तरह 1898 में जब बा से विवाद हुआ, बहस बढ़ गई और कस्तूरबा ने जवाब दे दिया तो गांधी उन्हें लगभग घसीटते हुए घर के गेट तक ले गए और धकेलते हुए वहां से निकल जाने का फरमान सुना दिया । तीसरा वाकया है जोहानिसबर्ग का जहां उनकी सेक्रेटरी सेलसिन ने उनके कमरे में सिगरेट सुलगा ली तो गांधी बिफर गए और उसको एक झन्नाटेदार थप्पड़ रसीद कर दिया । इस तरह के कई उदाहरण मौजूद हैं जहां गांधी ने हिंसा का सहारा लिया । लेकिन इसके विपरीत उस तरह के भी अनकों उदाहरण मौजूद हैं जहां गांधी ने पिटने और घोर अपमानित होने के बावजूद बल प्रयोग नहीं किया । ये मोहनदास के वयक्तित्व के दिलचस्प पहलू हैं । गांधी ने क्यों ऐसा किया और फिर बाद में किस तरह से उन्होंने अपने को बदल लिया इस बात को और उनके उनके जटिल और बहुआयामी वयक्तित्व को परखा है उनके ही पौत्र गोपाल कृष्ण गांधी ने अपनी नई किताब में । आधुनिक भारत के इतिहास में या यों कहें कि बीसवीं शताब्दी के विश्व इतिहास में महात्मा गांधी एक ऐसी शख्सियत है जिसके व्यक्तित्व की गुत्थी सुलझाना विद्वानों के लिए एक बड़ी चुनौती है । महात्मा गांधी के व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि एक को पकड़ो तो दूसरा छूट जाता है । गांधी विश्व के इकलौते ऐसे शख्स हैं जिनकी मृत्यु के तिरसठ साल बाद भी उनपर और उनके विचारों और लेखन पर लगातार शोध और लेखन हो रहा है । खुद गांधी के परिवार के सदस्यों ने उनपर कई किताबें लिखी है ।
समीक्ष्य पुस्तक ऑफ अ सर्टेन एज ट्वेंटी लाइफ स्केचेज - गोपाल कृष्ण गांधी की नई किताब है । इस किताब में आधुनिक बारत की बीस हस्तियों के जीवन पर गोपाल कृष्ण गांधी ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर टिप्पणी की है । ये बीस लेखनुमा टिप्पणी समय समय पर लिखे गए हैं । इस किताब की भूमिका में लेखक ने स्वीकार किया है कि उनके ये लेख 1981 से 2001 के बीच लिखे गए हैं । अभी कुछ दिनों पहले ही इतिहासकार और स्तंभकार रामचंद्र गुहा की भी एक किताब-मेकर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया प्रकाशिकत हुई थी । गुहा ने अपनी किताब में उन्नीस लोगों पर लिखा था । रामचंद्र गुहा के मुताबिक उन्होंने उन महिला और पुरुष नेता या सामाजिक कार्यकर्ता या समाज सुधारक को अपनी किताब में जगह दी जिन्होंने स्वतंत्रतापूर्व और स्वातंत्रोत्तर भारत को अपने लेखन और भाषण से गहरे तक प्रभावित किया । लेखक के मुताबिक ये उन्नीस भारतीय लोग सिर्फ राजनेता ही नहीं थे बल्कि उन्होंने अपने लेखन से भी समाज और देश को एक नई दिशा दी । लेकिन गोपाल कृष्ण के चयन का आधार अलहदा है, सैली भी जुदा और ज्यादा रोचक ।
गोपाल कृष्ण गांधी के संस्मरणों की इस किताब की विशेषता यह है कि इसमें आजाद भारत के प्रमुख हस्तियों के बारे में कुछ बेहद ही दिलचस्प और अज्ञात तथ्य सामने आते हैं । इस किताब में गांधी के बाद सबसे दिलचस्प संस्मरण या कहें कि जीवनीचित्र जयप्रकाश नारायण का है । जयप्रकाश नारायण को गांधी जी जमाई राजा मानते थे क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए जयप्रकाश के अमेरिका चले जाने के बाद प्रभावती जी गांधी के साथ वर्धा में ही रहने लगी थी और बा और बापू दोनों उन्हें पुत्रीवत स्नेह देते थे । जयप्रकाश नारायण जब सात साल के बाद भारत आए तो अपनी पत्नी और गांधी से मिलने वर्धा गए । वहीं उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू से भी हुई । पहली मुलाकात में गांधी ने जयप्रकाश से देश में चल रहे आजादी के आंदोलन के बारे में कोई बात नहीं कि बल्किन उन्हें ब्रह्मचर्य पर उपदेश दिया । बताते हैं कि गांधी जी ने प्रभावती जी के कहने पर ही ऐसा किया क्योंकि प्रभावती जी शादी तो कायम रखना चाहती थी लेकिन ब्रह्मचर्य के व्रत के साथ । जयप्रकाश नरायण ने अपनी पत्नी की इस इच्छा का आजीवन सम्मान किया । तभी तो गांधी जी ने एक बार लिखा- मैं जयप्रकाश की पूजा करता हूं । गांधी जी की ये राय 25 जून 1946 के दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित भी हुई । गांधी से जयप्रकाश का मतभेद भी था, गांधी जयप्रकाश के वयक्तित्व में एक प्रकार की अधीरता भी देखते थे लेकिन बावजूद इसके वो कहते थे कि जयप्रकाश एक फकीर हैं जो अपने सपनों में खोए रहते हैं । मोहनदास करमचंद गांधी के बड़े बेटे हरीलाल पर भी गोपाल कृष्ण का आकलन कुछ ज्ञात और अज्ञात तथ्यों के साथ सामने आता है । हरीलाल गांधी न केवल अपने पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रहे थे बल्कि उनके विकल्प के तौर पर भी उभर रहे थे और दक्षिण अफ्रीका में लोग उन्हें छोटे गांधी भी कहने लगे थे । लेकिन बाद में पिता पुत्र के बीच मतभेद गहरा गए। गांधी का अपने बेटे की जगह एक पारसी युवक सोराबजी को बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए भेजने का फैसला हरीलाल को चुभ गया । यह घाव इतना गहरा हुआ कि उसने बापू समते सबकुछ त्याग दिया । थोड़े समय के लिए इस्लाम भी स्वीकार कर लिया । यह तो ज्ञात तथ्य है और कई विद्वानों ने इसपर लिखा है । कुछ दिनों पहले मैंने दिनकर जोशी की किताब में महात्मा बनाम गांधी में इसपर विस्तार से पढ़ा था । लेकिन समीक्ष्य पुस्तक में हरीलाल के भाई देवदास का हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा संपादकीय भी है । देवदास ,गांधी जी के पुत्र थे और बाद में हिदुस्तान टाइम्स के संपादक भी रहे ।
इन तीन के अलावा गोपालकृष्ण गांधी ने और सत्रह लोगों पर लिखा है जिनमें खान अब्दुल गफ्फार खान, हरीलाल गांधी, प्यारेलाल, ज्योति बसु. पुपुल जयकर, रमलादेवी चट्टोपाध्याय, सुबुल्क्ष्मी,दलाई लामा, सिरिमाओ भंडारनायके, दलाई लामा ,आर वेंकटरमण और के आर नाराय़नण शामिल हैं । अपनी इस किताब के अंत में अपने बचपन के दिनों को भी गोपालकृष्ण गांधी ने शिद्दत के साथ याद किया है । सेंट स्टीफन से अंग्रेजी साहित्य में एम गोपाल कृष्ण गांधी की भाषा में एक प्रवाह है जो इन संस्मरणों को एक नई उंचाई देता है और महानुभावों के वयक्तित्व के कुछ अनछुए पहलुओं को उद्घाटित भी करता है । अंग्रेजी में संस्मरण साहित्य की बेहद समृद्ध परंपरा है और मेरा मानना है कि गोपाल कृष्ण गांधी की ये किताब उसे और समृद्ध करेगी ।
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