Translate

Sunday, October 23, 2011

क्यों मिलता अन्ना को समर्थन

पिछले दिनों जब दिल्ली में अन्ना हजारे का अनशन हुआ था तो रामलीला मैदान में उमड़ी भीड़ को देखकर अचंभा हुआ था । दिल्ली में लाख लोग एक जगह किसी खास मकसद को लेकर जमा हो जाएं ये लगभग अविश्वसनीय था । लेकिन वो हुआ और लोग खुद से अन्ना के आंदोलन को समर्थन देने चले आए । अन्ना के समर्थन में रामलीला मैदान में सिर्फ दिल्ली की जनता ही नहीं पहुंची थी बल्कि देश के अलग अलग हिस्सों से लोग वहां जमा हुए थे । वहां जाकर ये समझने की कोशिश की थी कि कौन सी वजह है जो लोगों को वहां खींच ला रही है । लोगों से बात कर कुछ समझ में आया लेकिन जिस निष्ठा और कनविक्शन के साथ लोग वहां पहुंच रहे थे उसको समझ नहीं पा रहा था । कई लोगों से बात की – एक मित्र ने बताया कि एक दिन उनकी पत्नी घर से उनके दफ्तर पहुंची और रिसेप्शन पर कार की चाबी के साथ एक चिट छोड़ा जिसमें लिखा था- मैं अन्ना हजारे के आंदोलन में शरीक होने के लिए रामलीला मैदान जा रही हूं । अगर तुमको वक्त मिले तो मुझे लेने आ जाना वर्ना मैं मेट्रो से घर आ जाउंगी । मैं उन दोनों, पति-पत्नी, को कई वर्षों से जानता हूं । पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करने के बारे में भाभी सोच भी सकती हैं यह मेरे समझ से परे था । मेरे मित्र ने बाद में बताया कि वो अन्ना इफेक्ट था । इस तरह के कई वाकए मेरे सामने आए तो मेरे मन में यह जानने की जिज्ञासा और प्रबल हो गई कि अन्ना में क्या जादू है जो लोग खिंचे चले जाते हैं । काफी लोगों से बात की, काफी लेख पढ़े लेकिन फिर भी वजह का पता नहीं चल पाया । लेकिन अचानक से मेरा ज्ञानचक्षु खुल गया । वाकया बेहद मजेदार है, आप भी सुनिए ।
तकरीबन चार महीने पहले किसी काम की वजह से स्टैंप पेपर खरीदना पड़ा था । गलत गणित की वजह से तकरीबन दस हजार रुपए के स्टैंप पेपर की ज्यादा खरीद हो गई । हमें लगा कि पैसे बर्बाद हो गए लेकिन हमारे वकील ने बताया कि स्टैंप पेपर वापस लौटाने का भी प्रावधान है । उसके लिए एडीएम के कार्यालय में जाना पड़ेगा । वकील साहब ने आनन- फानन में इस बाबत एक आवेदनपत्र तैयार कर दिया और कहा कि उसको जाकर एडीएम के दफ्तर में जमा करवा दीजिए । मैं रजिस्ट्रार के दफ्तर से एडीएम साहब के दफ्तर में पहुंचा । वहां संबंधित बाबू से मिला तो उन्होंने बताया कि जिस वेंडर से स्टैंप पेपर खरीदा गया है उससे प्रमाणित करवा कर लाना होगा कि उक्त स्टैंप पेपर उसने ही बेचा है । मैंने उनको ये बताने की कोशिश की कि स्टैंप पेपर के पीछे तो बेचनेवाले वेंडर की मुहर लगी है और उसका पूरा पता भी अंकित है लिहाजा फिर से प्रमाणित करवाने की आवश्कता नहीं है । लेकिन बाबू तो ठहरे बाबू । लकीर के फकीर । टस से मस नहीं हुए और फिर से वही दुहरा दिया । मेरे पास कोई विकल्प नहीं था । घर लौट आया । हफ्ते भर बाद जब दफ्तर से साप्ताहिक अवकाश मिला तो सुबह सुबह तकरीबन ग्यारह बजे रजिस्ट्रार के दफ्तर पहुंचा । वहां स्टैंप विक्रेता से मिला तो उसने कहा कि दो बजे आइए । मेरे पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था । तपती दुपहरी में कचहरी परिसर में इंतजार करता रहा । ठीक दो बजे उनके पास पहुंचा तो उन्होंने वादे के मुताबिक स्टैंप पेपर पर लिख कर दे दिया । अब मैं विजेता के भाव से कचहरी परिसर से निकला और तीन चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित एडीएम के दफ्तर पहुंचा और वहां बाबू के टेबल पर उसी विजयी भाव से स्टैंप पेपर रखा और कहा कि चलिए इसको लौटाने की कार्रवाई शुरू करिए । मेरे उत्साह पर चंद पलों में पानी फेरते हुए उन्होंने कहा कि आप पोस्ट ऑफिस से एक रजिस्ट्री का लिफाफा खरीद कर और उसपर अपना पता लिखकर दे दीजिए । मैं भागकर नीचे पोस्ट ऑफिस पहुंचा् तबतक पोस्ट ऑफिस बंद हो चुका था । मैं हारे हुए योद्धा की तरह बाबू के पास पहुंचा । उनसे बताया कि पोस्ट ऑफिस बंद हो चुका है । बाबू साहब जल्दी में लग रहे थे । उन्होंने बेहद अनौपचारिक अंदाज में कहा कि कोई बात नहीं कल दे जाना । मेरे बहुत अनुरोध करने पर वो इस बात के लिए राजी हो गए कि मैं किसी और से वो लिफाफा भिजवा दूंगा । मैंने अपने एक मित्र से अनुरोध किया और उनको वो लिफाफा भिजवा दिया । मेरे मित्र को साहब बहादुर ने बताया कि अब तीन महीने बाद आकर रिफंड ले जाएं । मुझे संतोष हुआ कि चलो तीन महीने बाद पैसे मिल जाएंगे । तब तक कचहरी और एडीएम ऑफिस के चार चक्कर लग चुके थे ।
तकरीबन साढे तीन महीने बाद एक दिन मेरी पत्नी ने मुझे याद दिलाया कि हमें स्टैंप का कुछ रिफंड मिलना है । अगले ही साप्ताहिक अवकाश में मैं एडीएम साहब के दफ्तर पहुंचा । बाबू साहब अपनी सीट पर मौजूद थे । मैंने नमस्कार कर अपना नाम बताया । बेहद ही तत्परता से उन्होंने फाइल निकाली और कहा कि मैं अपने किसी परिचय पत्र की फोटो कॉपी उन्हें दूं । मैं मूर्ख अज्ञानी बगैर फोटो कॉपी लिए वहां चला गया था । खैर पास की ही एक दुकान से फोटो कॉपी करवाकर उनको सौंप दिया । उन्होंने भी मुझे स्टैंप पेपर के पीछे लिखकर दे दिया और कहा कि नीचे की मंजिल पर कोषागार कार्यालय है वहां जाकर जमा करवा दूं । जब मैं उठने को हुआ तो बाबू साहब ने मुझे पोस्ट ऑफिस की रजिस्ट्री वाला लिफाफा पकड़ाया और कहा कि रख लो तुम्हारे काम आएगा । मैं हैरान कि अगर वापस ही करना था तो फिर मंगवाया क्यों । लेकिन ये बात पूछने का साहस नहीं था सो लिफाफा लेकर नीचे उतर आया ।
नीचे आकर जब मैं कोषागार के काउंटर पर पहुंचा और वहां मौजूद साहब को स्टैंप पेपर देकर कहा कि मेरा रिफंड दे दीजिए । उन्होंने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैंने कोई जुर्म कर दिया है । उन्होंने कहा कि आपके रिफंड का चेक बनेगा । और चेक बनने के लिए आपको बैंक से अपने दस्तखत को प्रमाणित करवा कर लाना पड़ेगा । मैं झल्लाया और कहा कि अगर आप अकाउंट पेयी चेक बना रहे हैं तो दस्तखत को प्रमाणित करवाने की क्या जरूरत है । बाबू बहस करने के मूड में नहीं था । उन्होंने मुझे सहायक कोषाधिकारी के पास भेज दिया । वहां पहुंचा तो सफारी शूट में एक बुजुर्ग शख्स बैठे थे । मैंने उनसे अपनी व्यथा सुनाई और अनुरोध किया कि रिफंड का चेक बनवा दें । उन्होंने बड़े रौब से और अहसान जतानेवाले अंदाज में कहा कि कि बैंक से प्रमाणित करवा कर ला दीजिए तो दो एक दिन में चेक बनवा दूंगा । अब तक मेरा धैर्य मेरा साथ छोड़ने लगा था । मैंने सहायक कोषाधिकारी महोदय से पूछा कि किस नियम के तहत वो ऐसा कर रहे हैं, मुझे वो नियम दिखाएं । मेरे इतना पूछते ही वो भड़क गए । कहा पंद्रह साल पहले का शासनादेश है मैं कहां से लाउं । बहस होते होते गर्मागर्मी हो गई । मैंने कहा कि मैं आठ चक्कर लगा चुका हूं लेकिन अभी तक रिफंड नहीं मिला है । लिफाफे की बात भी उन्हें बताई । उनका तर्क था कि उनके विभाग में तो मैं पहली बार आया हूं, इसलिए मेरी नाराजगी नाजायज है । वो सरकारी नियमों का हवाला देकर बैंक से दस्तखत प्रमाणित करवा कर जमा करवाने पर अड़े रहे । इसी बहस के दौरान मैंने उनसे कहा कि आप जैसे लोगों की वजह से ही अन्ना हजारे को अनशन करना पड़ता है । इतना सुनते ही वो ऐसे भड़के जैसे सांड को लाल कपड़ा दिखा दिया हो । अन्ना के नाम पर ही वो अड़ गए, उनकी इच्छा थी कि मैं अन्ना वाली बात वापस लूं । लेकिन मैं उसपर कायम रहा । लाख बहस करने के बाद भी अधिकारी महोदय नहीं माने । मुझे दो चक्कर और लगाने पड़े । तब जाकर मुझे रिफंड का चेक मिला । मेरे घर से कोषागार कार्यालय की दूरी बारह किलोमीटर है । इस चक्कर में मैं बुरी तरह से खिन्न हो चुका था । लेकिन इस बात की खुशी थी कि मुझे मेरे प्रश्न का जवाब मिल चुका था कि अन्ना हजारे को समर्थन क्यों मिला और हर तबके के लोग उनके साथ क्यों जुडे़ । अन्ना का विरोध करनेवालों को ना तो ये वजह समझ आएगी और ना ही जनता का मिजाज ।

No comments: