हमारे देश के सबसे बड़े साहित्यिक पुरस्कार को लेकर विवाद पैदा किया जा रहा है । विवाद और आपत्ति इस बात को लेकर है कि शहरयार और अमरकांत को ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन के हाथों दिया गया । इस बात को लेकर कई साहित्यकारों को घोर आपत्ति है कि हिंदी फिल्मों में नाचने गाने वाला कलाकार हिंदी के प्रतिष्ठित लेखक को सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार देने योग्य कैसे हो गया । दरअसल ये हिंदी के शुद्धतावादी लेखकों की कुंठा है जो किसी ना किसी रूप में प्रकट होती है । मेरी जानकारी में सबसे पहले ये सवाल हिंदी के आलोचक वीरेन्द्र यादव ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर उठाया । वीरेन्द्र यादव ने फेसबुक पर लिखा- हिंदी के दो शीर्ष लेखकों श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने का समाचार इन दिनों सुर्खियों में है । फिलहाल इस बात से ध्यान हट गया है कि ज्ञानपीठ में अब अमिताभ बच्चन का दखल हो गया है । अभी पिछले ही हफ्ते शहरयार को अमिताभ बच्चन ने यह पुरस्कार दिया है । यानि अब मूर्धन्य साहित्यकार बॉलीवुड के ग्लैमर से महिमामंडित होंगे । जिस सम्मान को अबतक भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और नेल्सन मंडेला जैसी विभूतियां देती रही हों उसकी यह परिणति दयनीय नहीं है । वीरेन्द्र यादव ने फेसबुक पर क्या नहीं की शक्ल में सवाल भी उछाला । वीरेन्द्र यादव एक समझदार और सतर्क आलोचक हैं । उनसे इस तरह की हल्की टिप्पणी की उम्मीद मुझे नहीं थी । अमिताभ बच्चन इस देश के एक बड़े कलाकार हैं और सिर्फ फिलमों में लंबू तंबू में बंबू लगाए बैठा और झंडू बाम का विज्ञापन कर देने भर से उनका योगदान कम नहीं हो जाता । क्या वीरेन्द्र यादव को अमिताभ बच्चन की उन फिल्मों का नाम गिनाना होगा जिसमें उन्होंने यादगार भूमिकाएं की । क्या वीरेन्द्र यादव को अमिताभ बच्चन के अभिनय की मिसाल देनी होगी । मुझे नहीं लगता है कि इसकी जरूरत पड़ेगी । अमिताभ बच्चन इस सदी के सबसे बड़े कलाकार के तौर पर चुने गए हैं । वीरेन्द्र यादव को यह समझना होगा कि हर व्यक्ति की अपनी आर्थिक जरूरतें होती हैं और वो जिस पेशे में होता है उससे अपनी उन आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की कोशि्श करता है । अमिताभ बच्चन ने भी वही किया । सचिन तेंदुलकर और शबाना आजामी भी कई उत्पादों का विज्ञापन करते हैं तो क्या सिर्फ उन विज्ञापनों के आधार पर ही उनके क्षेत्र में उनके योगदान को नकार दिया जाए । अमिताभ बच्चन की तरह बिरजू महाराज भी झंडू बाम का विज्ञापन करते हैं तो इसी आधार परक उनके योगदान को कम कर दिया जाना चाहिए । लगता है वीरेन्द्र जी की नजर से यह विज्ञापन नहीं निकला वर्ना वो बिरजू महाराज को और उनके योगदान को खारिज कर देते । कई बड़े कलाकार विज्ञापन करते हैं ये बातें उनके पेशे से जुड़ी है । अमिताभ बच्चन पोलियो ड्राप का भी विज्ञापन करते हैं । वीरेन्द्र यादव की बहस में अमिताभ की इस बात के लिए भी आलोचना की गई है कि वो गुजरात के ब्रैंड अंबेस्डर हैं । उस गुजरात के जिसके मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं । लेकिन इस बात को छुपा लिया गया कि वही अमिताभ बच्चन उस जमाने में केरल के ब्रैंड अंबेसडर थे जब वहां वामपंथी सरकार थी । तो इस तरह के तर्क और इस तरह की समझ पर सिर्फ तरस आ सकता है ।
हिंदी के एक और लेखक अशोक वाजपेयी -जिनका दायरा और एक्सपोजर किसी भी अन्य लेखक से बड़ा है- ने भी अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने को संस्थान की एक दयनीय कोशिश करार दिया है । अशोक वाजपेयी ने अपने साप्ताहिक कॉलम में लिखा कि – यह समझना मुश्किल है कि अब अपने को सिनेमाई चमक से जोड़ने की जो दयनीय कोशिश भारतीय ज्ञावपीठ कर रहा है, उसका कारण क्या है । अशोक वाजपेयी जी को यह समझना होगा कि ज्ञानपीठ की यह कोशिश अपने को सिनेमाई चमक से जोड़ने की नहीं बल्कि हिंदी के बड़े लेखक को एक बड़े कलाकार के हाथो सम्मानित करवाने की हो सकती है । मुझे नहीं मालूम कि ज्ञानपीठ की मंशा क्या थी । वो सिनेमाई चमक से जुड़कर क्या हासिल कर लेगा । इस मंशा और वजह को अशोक वाजपेयी बेहतर समझते होंगे । अशोक जी के मुताबिक ज्ञानपीठ का किसी अभिनेता को बुलाने का निर्णय किसी कलामूर्धन्य को बुलाने की इच्छा से नहीं जुड़ा है क्योंकि ऐसी इच्छा के ज्ञानपीठ में सक्रिय होने का कोई प्रमाण या परंपरा नहीं है । प्रसंगव श उन्होंने भारत भवन में कालिदास सम्मान के लिए तीन कलामूर्धन्यों को बुलाने की बात कहकर अपनी पीठ भी थपथपा ली । वाजपेयी जी के इन तर्कों में कोई दम नहीं है और ज्ञानपीठ की परंपरा की दुहाई देकर वो अमिताभ बच्चन के योदगान को कम नहीं कर सकते । अमिताभ का हिंदी के विकास में जो योदगान है उसे अशोक वाजपेयी के तर्क नकार नहीं सकते । अमिताभ बच्चन ने हिंदी के फैलाव में जिस तरह से भूमिका निभाई उसको बताने की कोई आवश्यकता नहीं है । लेकिन वह उनके आलोचकों को वह भी दिखाई नहीं देता । अमिताभ बच्चन हिंदी फिल्मों के एकमात्र कलाकार हैं जो हिंदी में पूछे गए सवालों का हिंदी में ही जवाब देते हैं । मुझे तो लगता है कि हाल के दिनों में जिस तरह से घोटालों के छीटें यूपीए सरकार पर पड़ रहे हैं उस माहौल में मनमोहन सिंह से बेहतर विकल्प तो निश्चित तौर पर अमिताभ बच्चन हैं । दरअसल अशोक वाजपेयी जैसा संवेदनशील लेखक जो कला और कलाकारों की इज्जत करते रहे हैं उनकी लेखनी से जब एक बड़े कलाकार के लिए छोटे शब्द निकलते हैं तो तकलीफ होती है । अशोक वाजपेयी को अमिताभ बच्चन के हाथों ज्ञानपीठ पुरस्कार दिलवाने पर तो आपत्ति है लेकिन जब हिंदी के जादुई यथार्थवादी कहानीकार उदय प्रकाश को कट्टर हिंदूवादी नेता योगी आदित्यनाथ अपने कर कमलों से पुरस्कृत करते हैं तो अशोक वाजपेयी चुप रह जाते हैं । अशोक वाजपेयी जैसे बड़े लेखक की जो ये सेलेक्टेड चुप्पी होती है वह साहित्य और समाज के लिए बेहद खतरनाक है ।
मुझे लगता है कि अशोक वाजपेयी का विरोध अमिताभ से कम ज्ञानपीठ से ज्यादा है । उसी विरोध के लपेटे में अमिताभ बच्चन आ गए हैं । जिस तरह से किसी जमाने में प्रतिष्ठित रहा अखबार ज्ञानपीठ के खिलाफ मुहिम चला रहा है उससे यह बात और साफ हो जाती है । अशोक वाजपेयी की देखादेखी कुछ छुटभैये लेखक भी अमिताभ बच्चन और ज्ञानपीठ के विरोध में लिखने लगे । अखबार ने उन्हें जगह देकर वैधता प्रदान की कोशिश की लेकिन अखबार के कर्ताधर्ताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाठक मूर्ख नहीं होते हैं । उन्हें प्रायोजित चर्चाओं में और स्वत:स्फूर्त स्वस्थ साहित्यिक बहस में फर्क मालूम होता है । वो यह भांप सकता है कि कौन सा विवाद अखबार द्वारा प्रायोजित है और उसके पीछे की मंशा और राजनीति क्या है । कहना ना होगा कि ज्ञानपीठ और अमिताभ को विवादित करने के पीछे की मंशा भी साफ तौर पर लक्षित की जा सकती है । इस विवाद को उठाने के पीछे की मंशा के सूत्र आप छिनाल विवाद से भी पकड़ सकते हैं । लेकिन इतना तय मानिए कि हिंदी के लोगों का फिल्म के कलाकारों को लेकर जो एक ग्रंथि है वो उनके खुद के लिए घातक है । फिल्म में काम करनेवाला भी कलाकार होता है और किसी भी साहित्यकार, गायक, चित्रकार से कम नहीं होता । मेरा तो मानना है कि अमिताभ बच्चन को बुलाकर ज्ञानपीठ ने एक ऐसी परंपरा कायम की है जिससे हिंदी का दायरा बढेगा । इस बात का विरोध करनेवाले हिंदी भाषा के हितैषी नहीं हो सकते । उनसे मेका अनुरोध है कि वयक्तिगत स्कोर सेट करने के लिए किसी का अपमान नहीं होना चाहिए ।
3 comments:
Good one sir ji
Good one sir ji, Hindi ke thekedaaron ok thoda broad minded hone ki zaroorat hai
शुभ दीपावली
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