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Saturday, January 7, 2012

क्यों दोराहे पर टीम अन्ना ?

अन्ना हजारे एक ऐसा नाम जिसमें देश के कई लोगों को गांधी का अक्स नजर आता है । अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ देशव्यापी मुहिम के अगुआ । अन्ना हजारे जिन्होंने देश की वर्तमान सरकार को अपने आंदोलन की ताकत की वजह से घुटनों पर झुका दिया । अन्ना हजारे जिन्होंने दिल्ली में दो बार ऐसा आंदोलन खड़ा किया कि जिसको कुछ राजनीतिक पंडितों ने जयप्रकाश नारयण के आंदोलन से बडा़ आंदोलन करार दिया । अन्ना हजारे जिन्होंने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ऐसा जनज्वार पैदा किया जिसमें लोग क्रांति के बीज तलाशने लगे । अन्ना की इन तमाम सफलताओं के पीछे उनके अहम सहयोगी अरविंद केजरीवाल का दिमाग माना गया । उन्हें अन्ना का अर्जुन और पूरे आंदोलन का मास्टर स्ट्रैटजिस्ट माना गया । आंदोलन की रणनीति से लेकर सरकार से बातचीत और सरकार पर तमाम तरह के हमलों के अगुवा अरविंद केजरीवाल ही रहे । तमाम मंचों पर अन्ना के बाद अरविंद केजरीवाल का ही ओजस्वी भाषण होता रहा है । कई बार जब टीम अन्ना मीडिया से मुखातिब हो रही होती थी तो अन्ना को सरेआम सलाह देते हुए अरविंद को देखा गया था । अब अन्ना के उन्हीं सहयोगी अरविंद केजरीवाल के मुताबिक अन्ना हजारे आजकल उदास हैं, उन्हें लगता है कि सरकार ने उन्हें धोखा दिया है, सरकार के बर्ताव से वो बेहद आहत हैं । अन्ना उदास हैं और अरविंद देश की जनता से पूछ रहे हैं कि बताओ टीम अन्ना को क्या करना चाहिए । अरविंद अब जनता से आगे की रणनीति पूछ रहे हैं । लेकिन सवाल यह उठता है कि इस वक्त उन्हें जनता की याद क्यों आई । अब वो भारतीय जनता पार्टी से अपनी नजदीकियों पर सफाई दे रहे हैं । इतनी देर से इस बात की सफाई देने का कोई मतलब रह नहीं जाता जबकि यह बात लगभग हर तरफ चर्चा का विषय है कि टीम अन्ना भारतीय जनता पार्टी को लेकर थोड़ी उदार है । अब वो यह स्वीकार कर रहे हैं कि दिसंबर में सरकार के साथ पर्दे के पीछे बातचीत चल रही थी जबकि उस वक्त उन्होंने इस बात से साफ इंकार किया था कि सरकार से किसी भी तरह की कोई बातचीत चल रही थी । जनता को सरकार से अपनी बातचीत के हर कदम की चीख चीख जानकारी देनेवाले अरविंद जनता से बिना बताए सरकार से बात कर रहे थे, यह उनका खुद का खुलासा है जो हैरान करनेवाला है । अब वो अपने कांग्रेस विरोध को इस बिनाह पर जस्टिफाई कर रहे हैं कि उन्हें लोकपाल पर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की वजह से ऐसा करने को मजबूर होना पड़ा था । अब वो जनता से पूछ रहे हैं कि क्या उन्हें कांग्रेस या यूपीए के खिलाफ प्रचार करना चाहिए । क्या हरियाणा के हिसार में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार करने से पहले अरविंद केजरीवाल ने जनता से पूछा था । तब तो उन्हें इस बात का अंदाजा था कि हिसार सीट पर कांग्रेस की हार तय है । उस वक्त तो टीम अन्ना ने बगैर जनता से पूछे हिसार के चुनाव को लोकतंत्र का लिटमस टेस्ट घोषित कर दिया था । वहां कांग्रेस पार्टी की हार को टीम अन्ना ने लोकतंत्र की जीत के तौर और भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस के खिलाफ जनता के गुस्से की परिणति के तौर पर पेश किया था । लेकिन अब अचानक से जनता की याद आना हैरान करनेवाला है। कहीं ऐसा तो नहीं कि टीम अन्ना को यह लगने लगा हो कि उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की स्थिति बेहतर होनेवाली है । और अगर खुदा ना खास्ते ऐसा हो गया तो भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की हवा ही निकल जाएगी ।
अन्ना के दो अनशन की सफलता से उत्साहित टीम अन्ना को यह लगने लगा था कि पूरे देश की जनता उनके साथ है । दिल्ली के जंतर मंतर और रामलीला मैदान में जनसैलाब उमड़ा था उसमें कोई दो राय नहीं है । भ्रष्टाचार से तंग आ चुकी जनता को अन्ना में एक उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी थी । नतीजे में लोग घरों से बाहर सड़कों पर निकले । वह मध्यवर्ग घरों से निकला जिनके बारे में यह माना जाता था कि आमतौर पर वह ड्राइंगरूम में बहस कर संतोष कर लेता है । लेकिन किसी भी आंदोलन को शुरू करना उतना मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल उसकी निरंतरता बरकरार रखना है । अरविंद केजरीवाल की तमाम बातों से इस बात के साफ संकेत मिल रहे हैं कि टीम अन्ना अपने आंदोलन को लेकर हतोत्साहित है ।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि टीम अन्ना क्यों हतोत्साहित है क्या वजह है जिसने टीम के मनोबल पर असर डाला है । एक वजह तो साफ तौर पर है जो सतह पर दिखाई भी देती है वह यह है कि सरकार ने टीम अन्ना के जनलोपाल बिल को स्वीकार नहीं किया और उसके खंड खंड करके कई बिल बना दिए । सरकार ने जो लोकपाल बिल पेश किया वह भी उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा । लेकिन लोकपाल बिल पर टीम अन्ना से रणनीतिक चूक भी हो गई । जब दिसंबर के तीन दिनों में संसद में लोकपाल पर बहस रखी गई थी उस वक्त अन्ना का अनशन पर बैठने से जनता के बीच संदेश यह गया कि टीम अन्ना अपनी ही जिद पर अड़ी है । लोगों को यह लगा कि जब संसद में लोकपाल पर बहस हो रही है तो टीम अन्ना को उसके नतीजों का इंतजार करना चाहिए । लेकिन टीम अन्ना अपने पिछले अनुभव और उसकी सफलताओं से सातवें आसमान पर थी । उन्हें लग रहा था कि अन्ना के अनशन पर बैठे रहने से संसद और सांसद दबाव में आ जाएंगें । लेकिन ऐसा हो नहीं सका । मुंबई के एमएमआरडीए मैदान पर अन्ना के अनशन में लोगों की भीड़ अपेक्षा से बेहद कम रही वहीं लोकसभा ने लोकपाल और लोकायुक्त बिल को मंजूरी दे दी । लोकसभा से लोकपाल बिल पास होने के दूसरे दिन अन्ना की तबीयत बिगड़ जाने की वजह से अनशन खत्म करना पड़ा । लोकसभा से लोकपाल बिल पास होने को टीम अन्ना ने अपनी हार की तरह लिया जबकि होना यह चाहिए था कि वो उसको जश्न की तरह देखते और देश के लोगों को यह संदेश देते कि जो काम 44 साल में नहीं हो पाया वो हमने साल भर के अंदर कर दिखाया । वहीं से यह भी ऐलान करते कि मजबूत लोकपाल के लिए लड़ाई जारी रहेगी । इसका एक बडा़ फायदा यह होता कि जनता के बीच जीत का एहसास जाता जो कि ऐसे आंदोलनों की निरंतरता बनाए रखने के लिए बेहद आवश्यक है । दूसरी चूक जो टीम अन्ना से हुई वह यह कि अनशन खत्म होने के बाद भी मंच से कांग्रेस पर जोरदार हमला हुआ और भारतीय जनता पार्टी के बावत सवाल पूछे जाने पर कन्नी काट ली गई । नतीजा यह हुआ कि टीम अन्ना की भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नजदीकियों को लेकर जो संदेह का वातावरण कांग्रेस ने खड़ा किया था वो थोड़ा और गहरा गया ।
इन दो रणनीतिक चूक और मुंबई में जनता से अपेक्षित समर्थन नहीं मिल पाने से टीम अन्ना में हताशा है । अरविंद केजरीवाल अब कह रहे हैं कि आज भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चौराहे पर खड़ी है । कहां जाना है इस बात को लेकर सशंकित है । आशंका इस बात को लेकर भी है कि एक गलत निर्णय इस पूरे मुहिम को बर्बाद कर सकता है इसलिए उन्हें जनता की राय चाहिए । अरविंद जी जनता उसी चौराहे पर खड़ी है जहां भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम खडा़ है जरूरत इस बात की है कि उसे हमेशा विश्वास में लेने की कोशिश की जानी चाहिए सिर्फ उस वक्त नहीं जब वो आपसे मुंह फेर ले । दूसरी बात कि सरकार के प्रतिनिधि ने जब आपसे दिसंबर में कहा था आप चुनाव की राजनीति में उनको नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं, चाहे कितना भी अनशन-आंदोलन कर लें तो इतने दिन तक आप खामोश क्यों रहे। क्या मुंबई के मंच से आपको जनता को यह बात नहीं बतानी चाहिए थी। किसी भी आंदोलन को लेकर सरकार का दंभ जितना खतरनाक होता है उतना ही खतरनाक आंदोलनकारियों के नेतृत्व का सेलेक्टिव ट्रासपेरेंट होना भी होता है

2 comments:

Pravin Kashyap said...

सही कहा आपने कि अरविंद ने जो बातें जनता को न बताई और अब वो बातें बताकर सहानुभूति चाहते हैं तो ये कैसे होगा...आंदोलन की निरंतरता के लिए निष्पक्षता जरूरी है...और अरविंद वही नहीं कर पाये....आखिरकार कवो भी राजनीति (बीजेपी) के झांसे में आ गये...तो यही होगा...दूसरा मेरा मानना है कि अन्ना का जादू उनकी आवाज में भी हैं...जो मुंबई में तबीयत खराब होने के कारण नहीं दिखा....लेकिन मुझे लगता है अन्ना एक बार फिर अप्रैल-मई में गरजेंगे.....

Pravin Kashyap said...

सही कहा आपने कि अरविंद ने जो बातें जनता को न बताई और अब वो बातें बताकर सहानुभूति चाहते हैं तो ये कैसे होगा...आंदोलन की निरंतरता के लिए निष्पक्षता जरूरी है...और अरविंद वही नहीं कर पाये....आखिरकार कवो भी राजनीति (बीजेपी) के झांसे में आ गये...तो यही होगा...दूसरा मेरा मानना है कि अन्ना का जादू उनकी आवाज में भी हैं...जो मुंबई में तबीयत खराब होने के कारण नहीं दिखा....लेकिन मुझे लगता है अन्ना एक बार फिर अप्रैल-मई में गरजेंगे.....