भारतीय
राजनेताओं में महात्मा गांधी के बाद इंदिरा गांधी लेखकों और राजनीति टिप्पणीकारों की
पसंद हैं । उनपर प्रचुर मात्रा में लिखा गया और अब भी लिखा जा रहा है । महात्मा गांधी
अपने विचारों को लेकर लेखकों को चुनौती देते हैं वहीं इंदिरा गांधी अपनी राजनीति और
अपने निर्णयों और उसके पीछे की वजह सें लेखकों के लिए अब भी चुनौती बनी हुई है । इंदिरा
गांधी पर एक अनुमान के मुताबिक सौ के करीब किताबें लिखी जा चुकी हैं जिनमें कैथरीन
फ्रैंक, इंदर मल्होत्रा और पुपुल जयकर आदि प्रमुख हैं । मशहूर पत्रकार और लंबे समय
तक न्यूजवीक और न्यूयॉर्क टाइम से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रणय गुप्ते ने इंदिरा
गांधी की राजनीतिक जीवनी लिखी है- मदर इंडिया, अ पॉलिटिकल बॉयोग्राफी ऑफ इंदिरा गांधी
। तकरीबन छह सौ पन्नों में लिखी गई इस किताब में आजाद भारत की सबसे जटिल राजनीतिक शख्सियत
इंदिरा गांधी के दर्द गिर्द भारतीय राजनीति का भी द्स्तावेजीकरण किया गया है । इंदिरा
गांधी की इस किताब के बारे में लेखक का मानना है कि यह सामान्य पाठकों के लिए है खासकर
उन विदेशी फाठकों के बारे में जो समकालीन भारतीय इतिहास में रुचि रखते हैं । इसमें
इंदिरा गांधी का जीवन तो है ही साथ ही साथ गुटनिरपेक्ष आंदोलन और बढ़ती जनसंख्या जैसी
समस्या पर भी लेखक ने विस्तार से लिखा गया है । ये दोनों विषय़ इंदिरा गांधी के लिए
बेहद अगम थे । जब पूरे विश्व में शीत युद्ध चल रहा था तो उस वक्त इंदिरा गांधी ने बेहद
संतुलन और राजनैतिक कौशल के साथ अमेरिका और रूस के खेमों से अलग हटकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन
को मजबूती देकर विश्व नेता के तौर पर अपनी छवि मजबूत की । इस किताब में जनसंख्या नियंत्रण
पर इंदिरा गांधी की नीतियों को प्रणय ने कसौटी पर कसा है और बहुधा आलोचनात्मक दृष्ठि
के साथ ।
इमरजेंसी
इंदिरा गांधी के जीवन का काला दाग है । 1975 में जब इंदिरागांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट
के एक फैसले के बाद देश में लोकतंत्र को खत्म करने की ठानी तो पूरा देश उनके खिलाफ
एक जुट हो गया । ट्रांसफॉरमिंग डेमेक्रेसी नाम के अध्याय में प्रणय गुप्ते ने मिनट
दर मिनट का हवाला देते हुए पूरे घटनाक्रम को परखा है । इंदिरा गांधी ने किन परिस्थितियों
में इमरजेंसी लगाने का फैसला लिया और कौन कौन से सलाहकार थे जिनकी सलाह पर लोकतंत्र
पर हमले की साजिश रची गई । इमरजेंसी में हुए ज्यादतियों के अलावा उस दौर में किस तरह
से जयप्रकाश नारायण ने संघर्ष का ताना बाना बुना, उसका भी दस्तावेजीकरण है इस किताब
में । 1936 में जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस की नीतियों से मतभेद होने के बाद पार्टी
से इस्तीफा दे दिया था लेकिन करीब 40 साल के बाद फिर जब जयप्रकाश नारायण को लगा कि
देश का लोकतंत्र खतरे में है तो उन्होने मोरारजी
देसाई के साथ मिलकर जनता मोर्चा बनाया और संघर्ष का बिगुल फूंक दिया। इस किताब में
प्रणय गुप्ते ने बेहद बारीकी से उस दौर की राजनीति को पकड़ते हुए उसका विश्लेषण किया
है ।
इस
किताब में इंदिरा गांधी के विचारों को उनके दोस्तों के हवाले से, उनको लिखे पत्रों
के हवाले से और उपलब्ध सामग्री के आधार सामने रखा गया है । लेखक खुद मानते हैं कि यह
किताब दूसरों के शोध पर आधारित है । लेकिन उन्नीस सौ चौरासी में इंदिरा गांधी की हत्या
के बाद देश में जो वातावरण बना था उसके गवाह लेखक खुद बने हैं । उस वक्त उन्होंने देशभर
में दौरा किया, पंजाब में लंबा वक्त बिताया और सिखों के मनोविज्ञान को समझा और फिर
उन अनुभवों के आधार पर संकट के उन क्षणों को याद किया है । मोटो तौर पर लेखक ने इंदिरा
गांधी की इस जीवनी को पांच भागों में बांटा है । शुरुआत उनकी हत्या और बाद के हालातों
से की गई है । दूसरे भाग में उनके किशोरावस्था से लेकर फिरोज गांधी से उनके प्रेम विवाह
और फिर उनसे अलगाव की गाथा है । तीसरे भाग में इंदिरा गांधी की राजनीति शिक्षा से लेकर
पार्टी में उनके ताकतवर होकर उभरने के कालखंड को परखा गया है । इन अध्यायों में प्रणय
गुप्ते ने इस दौर के नेताओं के बयानों और बाद के लेखकों को उद्धृत करके इंदिरा गांधी
के व्यक्तित्व को सामने लाया है । चौथे भाग में इंदिरा गांधी के शक्तिशाली नेताओं से
टकराव और उनकी जीत के बाद खुद को देश की राजनीति की केंद्रीय धुरी बनने की कहानी है
। इसी अध्याय में इंदिरा गांधी की राजनीति के काले चेहरे इमरजेंसी के बारे में विस्तार
से वर्णन है कि किन परिस्थितियों में वो इमरजेंसी तोपने पर मजबूर हुई और फिर किन हालातों
में उनको लोकतंत्र के सामने मजबूर होकर हथियार डालना पड़ा ।
प्रणय
गुप्ते की इस किताब में इंदिरा गांधी के बारे में नया कुछ भी नहीं है लेकिन जिस तरह
से इंदर मल्होत्रा से अपनी किताब में तथ्यों को प्रधानता दी है और कैथरीन फ्रैंक ने
अपनी किताब को सनसनीखेज बनाया था उससे अलग हटकर प्रणय गुप्ते ने वस्तुनिष्ठता के साथ
घटनाओं, तथ्यों और उपल्बध सामग्री को एक जगह इकट्ठा कर अपने सामान्य पाठकों के लिए
किताब के लिखने के उद्देश्य में सफलता पाई है । इस किताब में घटनाओं औप प्रसंगों के
दुहराव को रोकने के लिए सख्त संपादन की जरूरत है ।
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