हिंदू धर्म पर कई किताब
लिखनेवाली मशहूर लेखिका वेंडी डोनिगर की किताब- द हिंदूज, एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री को पेंग्विन बुक्स ने
भारतीय बाजार से वापस लेने और
छपी हुई अनबिकी
प्रतियों को नष्ट करने का
फैसला लिया । प्रकाशक के इस फैसले के
बाद लेखकों के एक बड़े समुदाय में इस बात को लेकर खासी निराशा और क्षोभ है । पेंग्विन
के कोर्ट के बाहर किए गए इस समझौते पर लेखकों ने विरोध जताना शुरू कर दिया है । बुकर
पुरस्कार प्राप्त लेखिका अरुंधति राय ने तो पत्र लिखकर पेंग्विन से स्थिति स्पष्ट करने
की गुजारिश की है । वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सिद्धार्थ वरदराजन और लेखक ज्योतिर्मय शर्मा
ने पेंग्विन से अपनी किताबों को नष्ट करने और क़ापीराइट वापस करने का अनुरोध किया है
। सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने पत्र में साफ लिखा है कि उन्हें अब पेंग्विन पर भरोसा
नहीं रह गया है लिहाजा वो गुजरात दंगों पर लिखी गई उनकी किताब- दे मेकिंग ऑफ अ ट्रेजडी-
के अधिकार वापस कर दें । सिद्धार्थ का मानना है कि कल को अगर किसी समूह की भावना इस
किताब से आहत हो जाती है और वो भारतीय दंड विधान की धारा 295 के तहत केस कर देता है,
तो संभव है कि पेंग्विन उनकी किताब को भी वापस लेने का फैसला कर ले । विरोध के इस तरह
के स्वर ‘सहमत’ की ओर से भी उठे । पीइएन इंटरनेशनल
की भारत इकाई ने भी प्रकाशक के इस फैसले का विरोध किया । पेंग्विन विश्व के सबसे बड़े
प्रकाशकों में से एक है और उसके पास ना तो साधन की कमी है और ना ही संस्धान की तो फिर
उसके एक छोटे से संगठन के सामने घुटने टेकने
से साहित्य जगत हैरान है । दिल्ली की एक अदालतत में वेंडी डोनिगर की किताब पर शिक्षा बचाओ समिति नाम के एक अनाम संगठन ने केस किया । इसको
किताब के कुछ अंशों पर
आपत्ति थी और इसके अगुवा दीनानाथ बत्रा ने दो हजार ग्यारह में हिंदुओं की भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज करवाया था । तीन साल बाद पेंगिवन ने याचिकाकर्ता
से समझौता कर लिया । ये तो किताब के प्रकाशक की कमजोरी है जो अदालती कार्रवाई के झमेले में नहीं पड़ना चाहता है । विश्व के सबसे बड़े प्रकाशकों में
से एक, जिसके पास ना तो पैसे की कमी है और ना ही संसाधनों की, उसने अदालती कार्रवाई
के झंझट से मुक्त होने के लिए समझौता किया । वैसे भी इंटरनेट के इस युग में किसी भी कृति पर पाबंदी संभव ही नहीं है ।पेंग्विन
के फैसले के बाद जिस तरह से किंडल पर ये कृति ई बुक्स के रूप में धड़ाधड़ बिक रही है
इससे यह बात साफ हो गई है कि किताब वापसी का कोई अर्थ है नहीं । इस मामले में तो वेंडी डोनिगर चाहे तो किताब छापने का अधिकार पेंग्विन से लेकर किसी अन्य प्रकाशक को दे सकती है । दूसरा प्रकाशक इसको छापने के लिए स्वतंत्र होगा क्योंकि अदालत ने इस किताब के भारत में प्रकाशन और वितरण पर पाबंदी नहीं लगाई है ।
इस तरह का ये कोई पहला केस नहीं है
। इसके पहले भी प्रकाशकों ने भय और आशंका के मारे गुटों के सामने घुटने टेक दिए थे
। मशहूर स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की सोनिया गांधी के जीवन पर आधारित किताब भारत में
अब तक छप नहीं सकी है । अपनी किताब रेड साड़ी में जेवियर मोरो ने सोनिया गांधी की जीवन
यात्रा को इटली से लेकर भारत तक अपने नजरिए से देखने की कोशिश की है । जैसे ही इस किताब
के भारत में छपने की खबर आई तो कांग्रेस के नेताओं के कान खड़े हो गए और उन्होंने जोरदार
विरोध शुरू कर दिया । पार्टी के नेता और मशहूर वकील अभिषेक मनुसिंघवी ने अदालती कार्रवाई
की भी धमकी दी थी । अब तक जेवियर मोरो की किताब भारत में छप नहीं पाई है । इसी तरह
से महात्मा गांधी पर जब पत्रकार जोसेफ लेलीवेल्ड की किताब द ग्रेट सोल प्रकाशित हुई
तो खूब हो हल्ला मचा था । एयर इंडिया पर लिखी जितेन्द्र भार्गव की किताब के कुछ पन्ने
हटाने के बाद ही उसको प्रकाशक ने रिलीज किया । प्रकाशकों के बीच ये एक नई प्रवृत्ति
देखने को मिल रही है । पहले दुनियाभर के प्रकाशक लेखकीय स्वतंत्रता को लेकर ना केवल
सजग रहते थे बल्कि अंतिम दम तक उसको बनाए रखने के लिए संघर्ष भी करते थे । अब अगर किसी
किताब पर कहीं से धमकी आ गई तो प्रकाशक बीच का रास्ता तलाशने में लग जाते हैं । प्रकाशन
जगत के साथ साथ अभिव्यक्ति की आजादी के लिए प्रकाशकों की ये प्रवृत्ति खतरनाक है ।
वेंडी डोनिगर को इस बात की आशंका
थी कि उसकी इस किताब को लेकर कुछ हिंदुओं को आपत्ति हो सकती है । प्रोफेसर वेंडी डोनिगर
ने लिखा था– कई हिंदू धार्मिक नेता इस किताब
को समुद्र में फेंक देना चाहेंगे क्योंकि उन्हें इसमें तथ्यों के साथ खिलवाड़, धार्मिक
प्रसंगों की गलत व्याख्या आदि आदि दिखाई देंगे । लेखिका इतने पर ही नहीं रुकती हैं
उन्होंने अपनी इसी किताब में ये भी लिखा है कि – हमें
हिंदू धर्म मैं मौजूद ज्ञान और दर्शन का उपयोग करना चाहिए क्योंकि यहां मौजूद साहित्य
उच्च कोटि का है और हिंदू धर्म सर्व को समाहित करता चलता है । वेंडी डोनिगर को भारतीय
धर्म और धर्मग्रंथों की रुचि के केंद्र में रहे हैं । उन्होंने ऋगवेद, मनुस्मृति और
कामसूत्र का अनुवाद किया है । उनकी किताब- शिवा, द इरोटिक एसेटिक, द ओरिजन ऑफ एविल
इन हिंदू मायथोलॉजी काफीमशहूर है । द हिंदूज- एन ऑलटेरनेटिव हिस्ट्री की भूमिका में
वो स्वीकार करती है कि दलितों और महिलाओं ने हिंदू धर्म के फैलाव और उत्थान में बड़ा
योगदान किया है । महिलाओं और दलितों के इस योगदान को सदियों से नजरअंदाज किया जाता
रहा है । वेंडी डोनिगर ने अपनी इस किताब में हाशिए के इन लोगों की नजरों से इतिहास
को देखने की कोशिश की है । इस किताब में वेंडी डोनिगर ने हिंदू धर्म की अवधारणाओं और
प्रस्थापनाओं को लेकर पश्चिमी मानकों और कसौटी पर कसा है । उनकी इन प्रस्थापनाओं पर
कई विद्वानों में मतभेद हो सकते हैं । वेंडी डोनिगर के मुताबिक हिंदू धर्म की खूबसूरती
उसकी जीवंतता और विविधता है जो हर काल में अपने दर्शन पर डिबेट की चुनौती पेश करता
है । हमारे धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक एक आदर्श हिंदू वह है जो लगातार सवाल खड़े करता
है, जवाब को तर्कों की कसौटी पर कसता है और किसी भी चीज, अवधारणा और तर्क को अंतिम
सत्य नहीं मानता है । हिंदू धर्म की इस आधारभूत गुण को आत्मसात करते हुए वेंडी डोनिगर
ने कई व्याख्याएं की हैं और कुछ असुविधाजनक सवाल खड़े किए हैं । इस किताब में कई ऐसी
बातें हैं जो वेंडी डोनिगर ने संस्कृत में पहले से सुलभ हैं और उसको अंग्रेजी के पाठकों
के सामने प्रस्तुत किया है । अंत में फिर से सवाल वही उठता है कि क्या तथ्यों और संदर्भों
को समझे बगैर किए गए विरोध के सामने घुटने टेकना कितना जायज है । यह सवाल तब और बड़ा
हो जाता है जब पेंग्विन जैसा बड़ा संस्थान अदने से विरोध के आगे सरेंडर कर देता है
।