एक पुरानी कहावत है कि कामयाबी के बाद लोग थोड़े ढीले पर जाते हैं,
सेना भी जीत के बाद अपने बैरक में जाकर आराम कर रही होती है। आजादी के बाद लगभग
सात दशकों में देश की राजनीति ने वो दौर देखा जब ये कहा जाता था कि नेता चुनाव में
जीत के बाद पांच साल बाद ही नजर आते हैं। भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी युग के
उदय के बाद स्थितियां बदलती नजर आ रही हैं। अमित शाह ने तीन साल पहले जब भारतीय
जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद संभाला तो उन्होंने अपनी कार्यशैली से भारतीय
राजनीति में एक अलग तरह की शुरुआत की। जीत दर जीत के बाद भी उनके काम करने के
अंदाज में किसी तरह की ढिलाई नजर नहीं आई। उनके सियासी सिपाही भी चुनावी जीत के
बाद बैरक में नहीं पहुंचे बल्कि अपने सेनापति की रणनीति पर अमल करने के लिए अगले
सियासी मैदान की ओर कूच करने लगे। इस वक्त जबकि दो हजार उन्नीस में होनेवाले
लोकसभा चुनाव में करीब पौने दो साल बाकी हैं, तो अमित शाह ने उसकी रणऩीति बनाकर
अपने मोहरे फिट करने शुरू कर दिए हैं। खुद अध्यक्ष हर राज्य में जाकर वहां संगठन
की चूलें तो कस ही रहा है सरकार में बैठे लोगों को यह संदेश भी दे रहा है कि बगैर
जनता के बीच में गए सफलता संदिग्ध है।
एक तरफ जहां पूरा विपक्ष बिखरा हुआ है और विपक्षी एकता की सफल-असफल
कोशिशें जारी हैं वहीं अमित शाह ने 2019 के लोकसभा चुनाव का लक्ष्य निर्धारित कर
दिया है। मिशन 360 यानि लोकसभा की तीन सौ साठ पर जीत का लक्ष्य। अमित शाह ने अपने
इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ब्लूप्रिंट बनाकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और
केंद्रीय मंत्रियों के साथ सीटों पर जीत की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है। पहले
तो उन लोकसभा सीटों की पहचान की गई है जहां बीजेपी के जीतने की संभावना काफी है,
उन सीटों के बारे में भी मंत्रियों और नेताओं के साथ मंथन कर जीत पक्की करने की
रणनीति बनाकर उसपर काम शुरू हो गया है। इसके बाद उन सीटों पर काम शुरू किया जा
चुका है जहां 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे नंबर पर आई थी। इन सीटों पर
जीत की संभावनाओं के लिए अमित शाह ने पिछले दिनों दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में
पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की थी। उस बैठक में बीजेपी के सभी राष्ट्रीय
महासचिवों के अलावा केंद्रीय मंत्री, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के दो तीन मंत्री
के अलावा पार्टी के चुनिंदा सांसदों ने भी हिस्सा लिया था। कुल बाइस नेताओं की इस
बैठक में हरेक को पांच से छह लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। माना जा रहा है
कि उस बैठक में तमिलनाडू, केरल और पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी की सीटें
बढ़ाने की रणनीति को अंतिम रूप दिया गया। केरल में बीजेपी अपना आधार बढ़ाने के लिए
एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए है। केरल में आरएसएस के कार्यकर्ताओं की हत्या को
मुद्दा बनाकर बीजेपी के वरिष्ठ मंत्री से लेकर संगठन के नेताओं के लगातार दौरे हो
रहे हैं। हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली भी केरल गए थे । आरएसएस के बड़े नेता
भी उस मोर्चे पर सक्रिय हैं। दिल्ली से लेकर केरल तक में सेमिनार और धरना प्रदर्शन
कर माहौल बनाया जा रहा है ।
बीजेपी की एक रणनीति जो देखने को मिली वो ये कि चुनाव के पहले सूबे
में विपक्ष के महत्वपूर्ण नेता को अपने पाले में लाने की कवायद। चाहे असम में हेमंता
सरमा हो, दिल्ली में अरविंदर सिंह लवली हों, उत्तर प्रदेश में स्वामी प्रसाद मौर्य
हों या अब गुजरात में शंकर सिंह वाघेला हों। विपक्षी नेताओं को अपने पाले में लाने
की अमित शाह की इस रणनीति का बड़ा मनोवैज्ञानिक फायदा मिलता है। यह पाला बदल कई
बार चुनाव के ऐन पहले भी करवाया जाता है ताकि वोटरों के बीच परोक्ष रूप से यह
संदेश जाए कि फलां पार्टी जीत रही है क्योंकि विपक्ष के अहम नेता पार्टी छोड़कर
उधर चले गए हैं।
बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 289 सीटों पर विजय प्राप्त की
थी और पारंपरिक आंकलन यह है कि कुछ सीटों पर बीजेपी को एंटी इनकंबेसी झेलनी पड़
सकती है। एंटी इंनकंबेंसी की धार को कुंद करने के लिए या फिर इससे होने वाले
नुकसान की भारपाई के लिए रणनीति तो बनाई ही गई है, साथ ही मिशन 360 का लक्ष्य भी
रखा गया है। अमित शाह की चुनावी रणनीति में जोरशोर से लगने से ये कयास भी लगाए जा
रहे हैं कि 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव को प्रीपोन कर 2018 में भी करवाया जा
सकता है। दो हजार अठारह में कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं । इऩ
चुनावों के लिए भी अरुण जेटली समेत केंद्रीय मंत्रियों को प्रभारी नियुक्त किया
गया है। संभव है कि
प्रधानमंत्री मोदी के राज्य और केंद्र में साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव पर अमल हो
जाए। हलांकि पार्टी के कई नेता इसमें दो हजार चार के चुनाव में शाइनिंग इंडिया के
बावजूद पार्टी की हार का हवाला देकर ऐसा नहीं करने की सलाह दे रहे हैं। लेकिन अमित
शाह की कार्यशैली को देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि वो सारे संभावनाओं और
आशंकाओं पर विचार करने के बाद व्यूह रचना रचते हैं और वो व्यूह रचना ऐसी होती है
जिसमें एक दो बार को छोड़कर हमेशा उनको सफलता ही मिली है। मिशन 360 को पूरा करने
के लिए जुटे शाह को विपक्ष के बिखराव का लाभ भी मिल सकता है। लाभ तो राहुल गांधी
के पार्टी अध्यक्ष पद को संभालने को लेकर जारी भ्रम का भी होना लगभग तय है।