मीना कुमारी भारतीय फिल्मी दुनिया में एक ऐसा नाम है जिनकी जिंदगी के अनगिनत किस्से जुड़े हैं । उनके बचपन, उनकी किशोरावस्था से लेकर जवानी और फिर मौत तक । साठ के दशक में बॉलीवुड पर मीना कुमारी का राज चलता था । उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचाती थी । उसी तरह उनके अफसाने भी अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं की सुर्खियां बनते थे । कमाल अमरोही से शादी फिर अलगाव और उसके बाद प्रेमियों की फेहरिश्त फिल्मी पत्रिकाओं के लिए जरूरी विषय और गॉसिप मुहैया करवाते थे । फिल्मी पत्रिकाओं में उनकी मौत के बाद तो उनके किस्से धारावाहिक के तौर पर छपते रहे हैं । मुझे याद आ रहा है कि सन 2000 में एक फिल्मी पत्रिका में एच आई पाशा ने मीना कुमारी की मौत पर धारावाहिक सत्यकथा लिखी थी, जिसमें पात्रों के नाम बदल दिए गए थे । मीना कुमारी ने अपनी जिंदगी मुफलिसी में शुरू की और जब उनकी मौत हुई तो भी अस्पताल के बिल भरने का पैसा नहीं था । बीच में उन्हें मिली शोहरत, बेशुमार दौलत, इज्जत, कई फिल्म फेयर पुरस्कार लेकिन प्यार की तलाश में भटकते भटकते उन्होंने शराब का दामन थाम लिया । यहां उन्हें सुकून तो मिला लेकिन शराब का गिलास उन्हें मौत के रास्ते पर ले गई । मौत का अफसाना भी मशहूर हो गया । जब मशहूर संपादक विनोद मेहता ने अपनी आत्मकथा लिखी थी उसमें उन्होंने 1972 में मीना कुमारी की जिंदगी पर लिखी एक किताब का जिक्र किया था । किताब उस वक्त जयको पब्लिकेशन से छपी थी लेकिन बाद में उसके संस्करण नहीं छपे और वो बाजार में अनुपलब्ध हो गई । अपनी आत्मकथा की सफलता से उत्साहित विनोद मेहता ने इस किताब को फिर से छपवाने का फैसला किया। इस किताब को लिखने की भी बेहद दिलचस्प कहानी है । मीना कुमारी की मौत मार्च 1972 में होती है जब वो अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थी । मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ उनकी मौत के महीने भर पहले रिलीज हुई थी । शुरुआत में फिल्म को दर्शकों का प्यार नहीं मिला और मुंबई का मराठा मंदिर सिनेमा हॉल पहले हफ्ते में ही खाली रह गया था । फिल्म रिलीज के महीने भर बाद ही मीना कुमारी की मौत हो जाती है और उसके बाद ‘पाकीजा’ ने लोकप्रियता के सारे मानकों को ध्वस्त कर दिया था । दर्शकों ने ‘पाकीजा’ देखकर मीना कुमारी को अपनी श्रद्धांजलि दी । मीना कुमारी की मौत के बाद ‘पाकीजा’ की सफलता से उत्साहित प्रकाशक ने विनोद मेहता को उनकी जीवनी लिखने का प्रस्ताव दिया ।
इस किताब में विनोद मेहता ने माई हिरोइन कहकर मीना कुमारी को संबोधित किया है और उनके कहने का अंदाज आम जीवनियों से जुदा है । मीना कुमारी के बचपन से लेकर मौत तक की कहानी को विनोद मेहता ने बेहतर तरीके से कहने की कोशिश की है लेकिन मीना कुमारी के जीवन के इतने सिरे हैं कि विनोद मेहता सबको पकड़ नहीं पाए हैं । मीना कुमारी की जीवनी धर्मेंन्द्र और गुलजार के बगैर पूरी नहीं होती है । विनोद मेहता की इस किताब में मीना कुमारी की जिंदगी के इन दो अध्याय पर सरसरी तौर पर लिखते हुए निकल गए हैं । हलांकि धर्मेन्द्र और मीना कुमारी के बारे में नहीं लिख पाने की सफाई विनोद मेहता ने नए संस्करण में दी है । उन्होंने लिखा है कि – ‘मुझे धर्मेन्द्र ने धोखा दिया जिसने मीना कुमारी का इस्तेमाल किया और फिर उसे छोड़ कर आगे बढ़ गया । धर्मेन्द्र ने मुझे कई बार मिलने का वक्त दिया लेकिन हर बार वो नहीं मिला ।‘ विनोद मेहता दूसरे संस्करण की भूमिका में यह स्वीकार करते हैं कि धर्मेन्द्र मीना कुमारी के जीवन का वो दौर है जिसके बिना उनके हिरोइन की कहानी पूरी नहीं होती है । गुलजार और मीना कुमारी के बारे में विनोद मेहता खामोश हैं और ये इस किताब की कमजोरी है । मीना कुमारी मास्टर अली बख्श और इकबाल बेगम की संतान थी और विनोद मेहता के मुताबिक उनका जन्म एक अगस्त 1932 को मुंबई के परेल अस्पताल में हुआ था । मीना कुमारी के पिता अली बख्श उर्दू में थोड़ा बहुत लिखते थे जिसकी वजह से वो मास्टर अली बख्श कहलाने लगे । वो बेहतरीन हारमोनियम भी बजाते थे । वो दौर मूक फिल्मों का दौर था और वो काम की तलाश में इस वक्त के पाकिस्तान के बहेरा से चलकर मायानगरी पहुंचे और यहां उन्होंने मूक फिल्मों के दौरान संगीत देने का काम शुरू किया । यहां आकर उन्हें महाकवि टैगोर के परिवार की लड़की प्रभावती से दिल लगा लिया । प्रभावती मूक फिल्मों के दौरान डांस किया करती थी और मास्टर हारमोनियम बजाता था । सुर ऐसे मिले कि प्रभावती इकबाल बेगम बनकर मास्टर के घर आ गई । इकबाल ने इस शादी के बाद तीन लड़कियों – खुर्शीद, महजबीन और मधु को जन्म दिया । मास्टर और इकबाल की जोड़ी यश और पैसा दोनो कमा रहे थे । फिर घर पर बीमारी का साया आया । पहले अली बख्श और फिर इकबाल बीमार पड़ी । दोनों की बीमारी की वजह से बड़ी बहन खुर्शीद पर घर चलाने के लिए पैसे कमाने की जिम्मेदारी थी लेकिन वो इतना नहीं कमा पा रही थी कि मां-बाप का इलाज भी हो और घर का खर्च भी चले । तब अली बख्श ने तय किया उनकी तीनों बेटियां फिल्मों के लिए अलग अलग तरीके का काम करेंगी । उस वक्त मीना कुमारी चार साल की थी । उनके पिता लगातार प्रोड्यूसर्स को फोन पर उसके लिए काम मांग रहे थे । इस दौर में निर्माता निर्देशक विजय भट्ट ‘लेदर फेस’ नाम की फिल्म बना रहे थे । इस फिल्म में जयराज और महताब की जोड़ी काम कर रही थी । एक छोटी बच्ची की जरूरत थी । उन्होंने मास्टर को महजबीन को लेकर आने को कहा । इस फिल्म की शूटिंग प्रकाश स्टूडियो में चल रही थी जो मास्टर के घर के सामने ही था और महजबीन वहां खेलने जाया करती थी । जब विजय भट्ट ने महजबीन को कैमरे के सामने खड़ा किया तो उसने बेहद सहजता से अपना काम निबटा दिया । इस छोटे से रोल के लिए विजय भट्ट ने मास्टर को उस वक्त 25 रुपए दिए । इसके बाद कई सालों तक महजबीन ने कई फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभाई जिनमें अधूरी कहानी, पूजा, नई रोशनी, विजया, कसौटी और गरीब प्रमुख हैं । उसी दौर में एक और बाल कलाकार बेबी मुमताज भी फिल्मों में काम कर रही थी जो बाद में मधुबाला के तौर पर प्रसिद्ध हुई । दोनों की दोस्ती छुटपन से ही थी लेकिन बाद में प्रोफेशनल प्रतिद्वंदिता और बीच के लोगों की वजह से दोस्ती कमजोर पड़ गई थी ।
उसी वक्त कमाल अमरोही को सोहराब मोदी की फिल्म जेलर के लिए एक सात साल की लड़की की तलाश थी । किसी की सलाह पर वो मास्टर के घर पहुंचे ।दिलचस्प प्रसंग है – मास्टर ने महजबीन को आवाज लगाई और जब वो बाहर आई तो उसके पूरे चेहरे में मसला हुआ केला लगा था । यहीं पहली बार कमाल अमरोही ने महजबीन को देखा । ये फिल्म महजबीन को नहीं मिली लेकिन उसकी प्रसिद्धि का दौर जारी रहा और वो विजय भट्ट के लिए काम करती रही । जैसे जैसे वो बड़ी होने लगी तो विजय भट्ट ने एक दिन उसका नाम बेबी मीना कर दिया । मास्टर अली बख्श को ये अच्छा नहीं लाग लेकिन वो उस वक्त इस हैसियत में नहीं थे कि विजय भट्ट के प्रस्ताव का विरोध कर सकें । इस तरह से महजबीन, मीना कुमारी बन गई ।
बाल कलाकार की शोहरत के साथ मीना कुमारी फिल्म की हिरोइन बनी और फिर कमाल अमरोही से प्यार हुआ । कार दुर्घटना में अस्पताल में भर्ती होने के दौरान कमाल और उसके बीच नजदीकियां बढ़ी । कमाल के लिए मीना कुमारी मंजू और मीना के लिए कमाल चंदन बन गए । प्यार इतना परवान चढ़ा कि कालांतर में दोनों ने छुपकर निकाह कर लिया । बाद में जब मास्टर को पता चला तो वो आगबबूला हुए लेकिन होनी हो चुकी थी । फिर कमाल से झगड़ा और अलगाव । अपनी हिरोइन की कहानी में विनोद मेहता ने कई जगह पर इस बात के संकेत भी दिए हैं कि बाद के दिनों में मीना कुमारी कमाल अमरोही से झूठ बोलकर कार्यक्रमों और पार्टियों में जाने लगी थी । जब कमाल को इसका पता चलता था तो जमकर झगड़ा होता था । उसके बाद कमाल लगातार मीना कुमारी की जासूसी करने लगे । उसपर शक करने लगे । एक पार्टी में मीना कुमारी दिलीप कुमार के साथ बैठे बातें कर रहे थे तो कमाल अमरोही ने वहां पहुंचकर बाधा डाली थी । फिर उनकी जिंदगी में मशहूर थप्पड़ कांड आया । मीना कुमारी की जिंदगी में शराब का प्रवेश तो दवा के तौर पर होता है लेकिन धर्मेन्द्र के आने के बाद शराब नियमित साथी हो गया । नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि ब्रांडी से शुरुआत करनेवाली मीना कुमारी बाद के दिनों में ठर्रा भी पी लेती थी ।
जैसा कि मैंने उपर कहा कि मीना कुमारी का चित्रण या उनपर लिखना आसान काम नहीं है । 1972 में लिखी गई विनोद मेहता की इस किताब से सिर्फ मीना कुमारी के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है । जिन परिस्थियों में 1972 में आठ महीनों में ये किताब लिखी गई थी उन परिस्थियों के आलोक में ही इस किताब को देखना होगा । मुझे याद आ रहा है कि रविवार पत्रिका दीपावली उपहार अंक में मीना कुमारी पर काफी सामग्री प्रकाशित हुई थी । संभवत: मीना कुमारी की डायरी । उसमें मीना कुमारी का दर्द और मोहब्बत के अफसाने बेहतर तरीके से उबर कर सामने आए थे । (बॉलीवुड सेल्फी, वाणी प्रकाशन)