हिंदी के मशहूर कथाकार और साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ के संपादक
राजेन्द्र यादव हमेशा कहा करते थे कि विश्वविद्यालयों के हिंदी विभाग प्रतिभाओं की
कब्रगाह हैं। उनकी इस भावना का हिंदी के कई
साहित्यकार समर्थन भी करते रहे हैं। यादव जी कहा करते थे कि विश्वविद्यालय और कॉलेजों
के हिंदी विभागों में रचनात्मक लेखन करनेवाले लोग कम होते जा रहे हैं और जो हैं वो
भी बेहद शास्त्रीय किस्म का लेखन कर रहे हैं। हो सकता है ऐसा कहने के लिए उनके पास
अपनी वजहें हों लेकिन उनके वक्तव्य के पहले भी और बाद में भी कम से कम दिल्ली
विश्वविद्लय के हिंदी विभाग से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के हिंदी
विभागों में भी कई रचनात्मक लेखक हुए। एक दौर था जब दिल्ली के जाकिर हुसैन कॉलेज के
हिंदी विभाग में गंगाप्रसाद विमल, सुधीश पचौरी, कमलकिशोर गोयनका और प्रताप सहगल
जैसे लेखक शिक्षण कार्य कर रहे थे। उसी कॉलेज के अंग्रेजी विभाग में भीष्म साहनी
भी पढ़ाते थे। नरेन्द्र कोहली जैसे हिंदी के शीर्ष लेखक भी दिल्ली विश्वविदयालय के
कॉलेज के हिंदी विभाग में पढ़ा चुके हैं। यह सूची बहुत लंबी है। मौजूदा दौर में भी
दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के हिंदी विभागों में कई लेखक हैं। इनमें से कुछ
लेखकों की कृतियां तो इतनी लोकप्रिय हैं कि वो दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर की
सूची में भी शामिल हो चुकी हैं।
दिल्ली के देशबंधु कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर संजीव
कुमार हिंदी की युवा पीढ़ी के शीर्ष आलोचकों में शुमार किए जाते हैं। उन्होंने
कहानी पर कई अच्छी आलोचनात्मक टिप्पणियां लिखी हैं। संजीव कुमार ने अनुवाद का काम
भी किया है। संजीव कुमार ने कहानी भी लिखी है। उनको आलोचना के लिए दिया जानेवाले प्रतिष्ठित
देवीशंकर अवस्थी सम्मान भी मिल चुका है। संजीव कुमार ने जैनेन्द्र और अज्ञेय का सृजनात्मक
मूल्यांकन भी किया है। संजीव कुमार की अभी हाल ही में कहानी आलोचना पर एक किताब भी
आई है।
जाकिर हुसैन इवनिंग कॉलेज में हिंदी के चर्चित
लेखक प्रभात रंजन भी हिंदी पढ़ाते हैं। मनोहर श्याम जोशी पर अभी प्रभात रंजन की
संस्मरणात्मक पुस्तक ‘पालतू बोहेमियन’
प्रकाशित होकर चर्चित हो रही है। इसके पहले प्रभात रंजन ने मुजफ्फरपुर की बाइयों
को केंद्र में रखकर ‘कोठागोई’ ने नाम से एक
औपन्यासिक कृति की रचना की थी। प्रभात रंजन जमकर अनुवाद भी करते हैं। उनकी अनूदित
पुस्तक ‘आई डू व्हाट आई डू’, जिसके
लेखक रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन हैं, दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर
की अनुवाद श्रेणी में अपना स्थान बना चुकी है।
दिल्ली विश्वविद्लय के सत्यवती कॉलेज में हिंदी
के शिक्षक प्रवीण कुमार ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य में सार्थक
हस्तक्षेप किया है। उनकी कृति ‘छबीला रंगबाज का शहर’ दैनिक जागरण हिंदी बेस्टसेलर की कथा श्रेणी में
अपना स्थान बना चुकी है। उनकी इस कृति की खूब चर्चा भी हुई थी। मशहूर कथाकार
काशीनाथ सिंह ने इसपर लिखा था-दूसरे शहर झख मारें बिहार के इस अलबेले छबीला रंगबाज के शहर के आगे, इसे लंबी कहानी कहूं या लघु उपन्यास, जितना ही जबरदस्त है उतना ही मस्त।
इसी तरह किरोड़ीमल कॉलेज में हिंदी विभाग से
संबद्ध प्रज्ञा ने भी हाल के दिनों में एक कहानीकार के तौर पर अपनी पहचान बनाई है।
उनकी कहानी ‘मन्नत टेलर्स’ को पाठकों ने खूब
सराहा। इसी नाम से उनका एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय
के ही श्रद्धानंद कॉलेज के हिंदी विभाग में कार्यरत उमाशंकर चौधरी ने भी अपनी
कहानियों से हिंदी जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा। उनका हाल ही में एक उपन्यास आया है,
‘अंधेरा कोना’। बिहार की राजनीतिक
पृष्ठभूमि पर लिखे गए इस उपन्यास को लेकर पाठकों में उत्सुकता है।
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