अभिव्यक्ति की आजादी की बात करनेवाले बहुधा ये
भूल जाते हैं कि इमरजेंसी के दौरान सिर्फ समाचारपत्रों पर ही दबाव नहीं बनाया गया
था बल्कि कलात्मक और रचनात्मक अभिव्यक्ति को भी बाधित किया गया था। दबाव था सरकार
को समर्थन देने का, इमरजेंसी को सही ठहराने का। देवानंद अपनी आत्मकथा में विस्तार
से इमरजेंसी के दौर के बारे में लिखते हैं। देवानंद के मुताबिक इमरजेंसी के दौर
में यूथ कांग्रेस से जुड़ी एक आकर्षक युवा नेत्री मुंबई ( उस वक्त बांबे) आई थीं और
बड़े फिल्मी सितारों से मिलकर संजय गांधी की दिल्ली में होनेवाली रैली में बुलाने
आईं। वो जब उस नेत्री के आमंत्रण पर दिल्ली पहुंचे तो उनको वहां दिलीप कुमार भी
मिले थे। जब वो लोग रैली में पहुंचे तो वहां कांग्रेस के सभी बड़े नेता कांग्रेस
संजय गांधी की चमचागिरी कर रहे थे। रैली खत्म होने के बाद जब देवानंद और दिलीप
कुमार वहां से बाहर निकल रहे थे तो दोनों को कांग्रेस के एक नेता ने टीवी स्टेशन
जाकर यूथ कांग्रेस के समर्थन में बयान रिकॉर्ड करवाने का आदेश दिया। देवानंद को तब
लगा था कि कोई फासीवादी प्रोपगंडा मशीनरी संजय गांधी के लिए काम कर रही है। जब
देवानंद ने यूथ कांग्रेस के लिए बयान रिकॉर्ड करवाने से मना कर दिया तो सरकार ने दूरदर्शन
पर उनकी फिल्मों के प्रदर्शन पर पाबंदी लगा दी। उसके बाद देवानंद ने तत्कालीन
सूचना प्रसारण मंत्री से बात भी लेकिन कुछ हुआ नहीं। मुंबई वापस लौटने पर देवानंद
की मुलाकात नर्गिस से हुई तो उन्होंने देवानंद को यूथ कांग्रेस के पक्ष में टीवी
के लिए बयान रिकॉर्ड करवाने की वकालत की। देवानंद लिखते हैं कि वो जानते थे कि
नर्गिस, गांधी परिवार की करीबी है लेकिन उनका दिल इस बात के लिए तैयार नहीं था कि वो
यूथ कांग्रेस और इमरजेंसी के लिए तत्कालीन सरकार के पक्ष में बयान दें। लिहाजा
इमरजेंसी के दौर में उनकी फिल्में टीवी पर नहीं आईं।
इसी तरह का वाकया किशोर कुमार के साथ भी हुआ था। इमरजेंसी
के बाद बीस सूत्री कार्यक्रम को प्रचारित करने के लिए हिंदी फिल्मों से जुड़े
कलाकारों और सितारों को बुलाकर उनसे प्रचार करवाए जाने की योजना बनी। इसी कड़ी में
किशोर कुमार को भी संदेश भेजा गया । सूचना प्रसारण मंत्रालय के उस वक्त के संयुक्त
सचिव ने जब किशोर कुमार को फोन किया तो उन्होंने अपनी खराब तबीयत का हवाला देते
हुए दिल्ली आने और सरकार के पक्ष में बयान देने से मना कर दिया। इससे खफा होकर
मंत्रालय ने किशोर कुमार के गानों को दूरदर्शन और आकाशवाणी पर पाबंदी लगा दी। इतना
ही नहीं उनकी फिल्मों पर भी नजर रखने का आदेश हुआ और उनके गाए गानों के ग्रामोफोन
की बिक्री की राह में भी रोड़े अटकाए गए। किशोर कुमार को जब इतना तंग किया और दबाव
डाला गया तो वो सहयोग को तैयार हो गए लेकिन तब भी सरकार ने कहा कि पाबंदी हटाने के
पहले ये देखा जाए कि वो कितनी देर और दूर तक सहयोग करते हैं।
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