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Monday, August 31, 2020

किताबों से झांकती राजनीति

जुलाई 1969 में राज्यसभा की सबसे पीछे वाली सीट पर बैठने वाले प्रणब मुखर्जी जब जुलाई 2012 में देश के प्रथम नागरिक बने तब उन्होंने सक्रिय राजनीति को अलविदा कहा। राष्ट्रपति बनने के बाद प्रणब मुखर्जी ने अपनी यादों को संजोना शुरू किया था। प्रणब मुखर्जी के बारे में कहा जाता है कि उनकी याददाश्त हाथी के जैसी थी। वो जिस घटना के साक्षी बनते थे वो उनको याद रहता था, वो जिस कागज को एक बार देख लेते थे वो उनके मस्तिष्क पर छप जाता था। प्रणब मुखर्जी ने अपने राजनीति दौर को तीन पुस्तकों में समेटा, ‘द ड्रामैटिक डिकेड:द इंदिरा गांधी इयर्स’, ‘द टर्बुलेन्ट इयर्स’ और ‘द कोएलीशन इयर्स’। पहली किताब में प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी के दौर के कांग्रेस की राजनीति का सूक्ष्मता से विवरण दिया। 1971 में पाकिस्तान से युद्ध जीतने वाली नायिका किस तरह से चार साल में ही देश में इमरजेंसी लगाने को मजबूर होती हैं, इसके कारण भी गिनाए। प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में सिद्धार्थ शंकर रे को परोक्ष रूप से आपातकाल लगाने के लिए पृष्ठभूमि बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया।

अपनी दूसरी किताब द टर्बुलेंट इयर्स में उन्होंने 1980 से लेकर 1996 की भारतीय राजनीति का विवरण दिया। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके बुरे दिन शुरू हो गए थे। यहां उन्होंने एक दिलचस्प टिप्पणी की है कि वो पार्टी और सरकार के काम में इतने व्यस्त हो गए थे कि काम लगानेवाले पर नजर नहीं रख सके थे। जितना जरूरी काम करना है उतना ही अहम काम लगानेवालों पर नजर रखना है।तीनों पुस्तकों में प्रणब मुखर्जी ने बहुत ही शास्त्रीय ढंग से राजनीतिक घटनाक्रम का विवरण पेश किया है, विवादों से दूर । तीसरी किताब द कोएलीशन इयर्स में उन्होंने कांची के शंकराचार्य की गिरफ्तारी के प्रसंग पर कैबिनेट की चर्चा का वर्णन किया है वो भी सपाट। लिखा कि ‘कैबिनेट की बैठक में शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की गिरफ्तारी की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए गुस्सा हो गया और पूछा कि इस देश में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ हिंदुओं के लिए ही है, किसी की हिम्मत है कि वो ईद के समय किसी मुस्लिम धर्मगुरू को गिरफ्तार कर ले?’ इसके बाद फौरन शंकराचार्य की रिहाई के आदेश हो गए। इस तरह के प्रसंग बहुत कम हैं लेकिन कांग्रेस के संविधान, कांग्रेस कार्यसमिति के नियम और अधिकार से लेकर संसदीय नियामवलियों का कब कैसे उपयोग हुआ है उसकी विस्तार से जानकारी है। यह अकारण नहीं था कि जब उनका राष्ट्रपति चुनाव के लिए उन्होंने मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दिया तो उस वक्त 97 मंत्रिमंडलीय समूह के अध्यक्ष थे।    

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

नमन और श्रद्धांजलि।

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क