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Monday, August 31, 2020

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ढकोसला


दिल्ली दंगों पर लिखी किताब ‘दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी’ के प्रकाशन रोकने के प्रकाशक ब्लूम्सबरी के फैसले को लेकर वामपंथी लेखक-पत्रकार या कलाकार आदि बेहद खुश नजर आ रहे थे। उनको लग रहा था कि मोनिका अरोड़ा, सोनाली चीतलकर और प्रेरणा मल्होत्रा की इस किताब का प्रकाशन ब्लूम्सबरी प्रकाशन से रुकवाकर उन्होंने बड़ा तीर मार लिया है। लेकिन वो यह भूल गए कि ये भारत भूमि है जहां शब्दकोश में विकल्पहीनता शब्द नहीं है। ब्लूम्सबरी के प्रकाशन से इंकार के फौरन बाद गरुड़ प्रकाशन ने इस पुस्तक को प्रकाशित करने की घोषणा करते हुए प्री बुकिंग शुरू कर दी। पाठकों का इतना प्यार मिला कि एकबार तो गरुड़ प्रकाशन की वेबसाइट ही क्रैश कर गई। प्रकाशक के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी को बंपर ओपनिंग मिली और चंद घंटों में ही 15000 प्रतियों की प्री बुकिंग हो गई। यह तो खैर इसकी लोकप्रियता का एक पक्ष है। लेकिन इस पूरी घटना से वामपंथी बौद्धिकों का खोखलापन उजागर हो गया। वामपंथ के ये झंडाबरदार लगातार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर छाती कूटते रहते हैं। हर छोटी बड़ी घटना पर उनको लगता है कि देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया जा रहा है और उनको जब ये लगता है तो सोशल मीडिया पर हाथों में तख्ती लेकर फोटो लगाने लगते हैं। इस बार जब उन्होंने दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी को रोकने के लिए अभियान चलाया तो वो ये भूल गए कि इस अभियान से उनकी खुद की पोल खुलने वाली है, उनका दुचित्तापन उजाहर होनेवाले है, उनके चेहरे पर लगा मुखौटा तार-तार होनेवाला है। जब वो इस किताब को रोक कर जश्न मनाने में लगे थे तो वो कुछ सालों पहले का एक वाकया भूल गए थे। भूल तो ये भी गए थे कि उस वक्त उन्होंने क्या क्या कहा था। वामपंथियों की स्मरण शक्ति कमजोर होती है लेकिन वो इतनी कमजोर होती है इसका अंदाजा नहीं था। ज्यादा समय नहीं बीते हैं छह साल पहले की ही बात है। हिंदू धर्म पर कई किताब लिखनेवाली लेखिका वेंडी डोनिगर की किताब- द हिंदूज, एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री को पेंग्विन बुक्स ने भारतीय बाजार से वापस लेने और छपी हुई अनबिकी प्रतियों को नष्ट करने का फैसला लिया । यह फैसला अदालत में उस किताब पर चल रहे केस के मद्देनजर याची के साथ समझौते के बाद हुआ । दरअसल दिल्ली की एक संस्था को इस किताब के कुछ अंशों पर आपत्ति थी और उस संगठन से जुड़े दीनानाथ बत्रा ने दो हजार ग्यारह में इस किताब के कुछ अंशों को हिंदुओं की भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज करवाया था। किताब के खिलाफ याचिका दायर होने के तीन साल बाद आउट ऑफ द कोर्ट एक समझौता हुआ जिसके तहत किताब को वापस लेने का फैसला हुआ । दीनानाथ बत्रा ने पुस्तक को पढ़ने के बाद उसपर अपनी आपत्ति जताई थी। वामपंथियों की तरह नहीं कि बगैर ‘दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी’ को पढ़े उसके खिलाफ नारे लगाने लगे या षड़यंत्र करने लगे।

वेंडि डोनिगर की पुस्तक छपने के बाद से ही उसपर विवाद शुरू हो गया था, अमेरिका में इसको खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ, लंदन में तो लेखिका पर अंडे तक फेंके गए थे। तब पेंग्विन के फैसले के बाद कुछ लोग इसको अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार देने लगे थे। कुछ वामपंथियों ने इसको हिंदू संगठनों की कथित फासीवादी मानसिकता करार दिया था। सेक्युलरिज्म के नाम पर अपनी दुकान चलानेवालों को हिंदू संगठनों पर हमलावर होने का बहाना चाहिए होता है। पेंग्विन के उस फैसले में भी उनको संभावना नजर आई थी और वो फासीवाद-फासीवाद चिल्लाने लगे थे। तब भी मैंने सवाल उठाया था कि वर्ष दो हजार नौ में किताब छपी उसके पांच साल बाद इस किताब को वापस लेने का फैसला प्रकाशक ने लिया। इसमे फासीवाद कहां से आ गया था । क्या शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताना और संविधान से प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करना फासीवाद है? यह तो वैश्विक ट्रेंड है कि अगर किसी किताब पर या उसके अंश पर आपत्ति हो तो अदालत का दरवाजा खटखटाया जाता है। वेंडि डोनिगर की पुस्तक के खिलाफ भी याचिकाकर्ता ने भी भारतीय संविधान के तहत मिले अपने नागरिक अधिकारों का उपयोग करते हुए कोर्ट में केस किया था । अदालत में मुकदमा चल ही रहा था कि दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया था।


प्रकाशक के उस फैसले के बाद लेखकों के एक बड़े समुदाय में इस बात को लेकर खासी निराशा का प्रदर्शन हुआ था।  विवादास्पद लेखिका अरुंधति राय से लेकर पत्रकार और लेखक सिद्धार्थ वरदराजन आदि भी उस वक्त विवाद में कूदे थे। सिद्धार्थ ने तो पेंग्विन से अपनी किताबों को नष्ट करने और क़ापीराइट वापस करने की मांग भी की थी। सिद्धार्थ वरदराजन ने अपने पत्र में साफ लिखा था कि उन्हें अब पेंग्विन पर भरोसा नहीं रह गया, लिहाजा वो गुजरात दंगों पर लिखी गई उनकी किताब- दे मेकिंग ऑफ अ ट्रेजडी- के अधिकार वापस कर दें । सिद्धार्थ वरदराजन ने तब कहा था कि ‘अगर किसी समूह की भावना इस किताब से आहत हो जाती है और वो भारतीय दंड विधान की धारा 295 के तहत केस कर देता है, तो संभव है कि पेंग्विन उनकी किताब को भी वापस लेने का फैसला कर दे’। पता नहीं उनकी पुस्तकें नष्ट की गई या नहीं लेकिन अब भी सिद्धार्थ वरदराजन की ये किताब पेंग्विन बेच रहा है। ये है इनका विरोध। समय पर घोषणा करो, प्रचार हासिल करो और फिर भूल जाओ। ये है मार्क्सवाद का अर्धसत्य। वामपंथियों का झूठ का प्रचार एक बार होकर रुकता नहीं है वो सतत चलता रहता है। वेंडि डोनिगर के मसले के दो साल बाद पीईएन इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट पेश की थी, इमपोजिंग साइलेंस, द यूज ऑफ इंडियाज लॉज टू सप्रेस फ्री स्पीच। पेन कनाडा, पेन इंडिया और यूनिवर्सिटी ऑफ टोरेंटो के फैकल्टी ऑफ लॉ ने संयुक्त रूप से इस अध्ययन को करने का दावा किया था। पेन इंटरनेशनल कवियों, लेखकों और उपन्यासकारों की एक वैश्विक संस्था, जिसका दावा है कि वो पूरी दुनिया में साहित्य और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए काम करती है। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर स्थिति बेहद विकट है । उस रिपोर्ट की आरंभिक पंक्तियों से ही शोधकर्ताओं के मंसूबे साफ दिखे थे– भारत में इन दिनों असहमत होनेवालों को खामोश कर देना बहुत आसान है...दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए ये स्थिति बेहद शर्मनाक है। भारत में धर्म पर लिखना मुश्किल होता जा रहा है।‘ इस संबध में वेंडी डोनिगर की ही किताब का उदाहरण दिया गया था। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पेन इंटरनेशनल की रिपोर्ट में ‘दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी’ के प्रकाशन को रोकने का जिक्र होता है या नहीं। वो इस तरह का शोध प्रस्तुत करते भी हैं या नहीं। अगर इनकी की रिपोर्ट में एक पुस्तक के प्रकाशन को रोकने की इन चालों का जिक्र नहीं होता है तो इनकी साख पर बड़ा सवालिया निशान लगेगा। दरअसल ‘दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी’ के प्रकाशन का ब्लूम्सबरी ने प्रकाशन नहीं होने देना एक प्रकार की साहित्यिक माफियागीरी भी है। जिस तरह से पाकिस्तानी पिता की संतान लेखक आतिश तासीर ने ब्रिटेन के लेखक विलियम डेलरिंपल को ‘दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी’ के प्रकाशन को रोकने के लिए सार्वजनिक रूप से बधाई दी उससे भारत के खिलाफ अंतराष्ट्रीय साजिश के भी संकेत मिलते हैं। ‘दिल्ली रॉयट्स 2020, द अनटोल्ड स्टोरी’ का प्रकाशन रोका जाना कोई साधारण घटना नहीं है बल्कि इसके दूरगामी असर होंगे। 

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