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Saturday, February 27, 2021

कलात्मक(?) अराजकता पर अंकुश


हाल के दिनों में दो तीन ऐसी खबरें आईं जो मनोरंजन की दुनिया की दशा और दिशा दोनों बदल सकती है। एक खबर है कि अमेजन प्राइम वीडियो से जुड़ीं अपर्णा पुरोहित का पुलिस ने बयान दर्ज करवाया। ये बयान वेब सीरीज ‘तांडव’ में आपत्तिजनक कटेंट को लेकर दर्ज कराए गए केस के संबंध में लिया गया है। साढे तीन घंटे तक अपर्णा पुरोहित से लखनऊ के हरतगंज कोतवाली में पुलिस ने पूछताछ की। इससे ही जुड़ी एक और खबर आई प्रयागराज से। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपर्णा पुरोहित को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया। अपर्णा पुरोहित पर वेब सीरीज ‘तांडव’ तो लेकर नोएडा में भी केस दर्ज हुआ था, उस सिलसिले में वो हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत चाहती थीं। पिछले कई सालों से वीडियो स्ट्रीमिंग साइट, जिसको ओवर द टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म भी कहते हैं, पर दिखाई जानेवाले वेब सीरीज की सामग्री को लेकर तो कई बार वहां दिखाई जानेवाली फिल्मों को लेकर विवाद होते रहे हैं। पिछले तीन साल से इन वेब सीरीज पर दिखाए जानेवाली सामग्री में हिंसा, यौनाचार, मनोरंजन की आड़ में विचारधारा की पैरोकारी, हिंदू धर्म प्रतीकों का गलत चित्रण से लेकर अन्य कई तरह के आरोप लगते रहे हैं। जब भी इन बातों को लेकर विवाद उठते थे तो सरकार से ये मांग भी की जाती थी कि ओटीटी पर दिखाई जानेवाली सामग्री के संदर्भ में विनियमन नीति लागू की जानी चाहिए। इस स्तंभ में भी लगातार इस बारे में चर्चा जाती रही है कि इस क्षेत्र में बढ़ रही अराजकता पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को दिशा निर्देश या कटेंट के प्रमाणन की व्यवस्था करनी चाहिए। सरकार के स्तर पर विनियमन लागू करने के लिए इस क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ कई दौर के  संवाद भी हुए थे, लेकिन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका था। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी पर दिखाई जानेवाली सामग्री को लेकर 2018 में सख्त टिप्पणी की थी, संसद में भी ये मामला कई बार उठा । इस पृष्ठभूमि में सरकार ने ओटीटी पर दिखाई जानेवाली सामग्री को लेकर अब एक दिशा निर्देश जारी कर दिया है।

केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश में ओटीटी पर दिखाई जानेवाली सामग्री के लिए स्वनियमन की बात की गई है। स्वनियमन की बात तो की गई है लेकिन ये नियमन कैसे हो और इसका दायरा क्या हो इसको सरकार ने स्पष्ट कर दिया है। ये स्पष्ट कर दिया गया है कि कोई भी प्लेटऑर्म भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को आघात पहुंचानेवाले दृश्य और संवाद नहीं दिखाएंगें। कलात्मक स्वतंत्रता की आड़ में कोई भी ऐसी सामग्री दिखाने की अनुमति नहीं होगी जो कानून सम्मत नहीं है। लेकिन सरकार ने दिशा निर्देश जारी करते हुए सेवा प्रदताओं को इसका तंत्र विकसित करने को कहा है। अच्छी बात ये है कि सरकार ने जो व्यवस्था बनाई है उसमें कार्यक्रमों को दिखाने के पहले किसी से अनुमति लेने की बात नहीं है यानि की प्री सेंसरशिप का रास्ता सरकार ने नहीं अपनाया। उन्होंने सबकुछ इन प्लेटफॉर्म पर छोड़ दिया है। नए नियमों के अनुसार सेवा प्रदाता कंपनियों को खुद अपनी सामग्रियों का वर्गीकरण करना होगा। बच्चों के देखने लायक सामग्री से लेकर अलग अलग उम्र की मनोरंजन सामग्रियों का वर्गीकरण कर दिया गया है। सेवा प्रदाता कंपनियों को इसका पालन करना होगा। अगर किसी को शिकायत होती है या किसी प्रकार से इन नियमों का उल्लंघन होता है तो उससे निबटने के लिए तीन स्तरीय व्यवस्था बनाई गई है। ये व्यवस्था लगभग उसी तर्ज पर है जिस तर्ज पर टेलीविजन के कार्यक्रमों का स्वनियमन होता है। 

सरकार के इस स्वनियम के दिशा निर्देशों को लेकर तमाम तरह की शंकाएं जताई जा रही हैं। फिल्म इंडस्ट्री के कुछ स्वयंभू निर्देशक इस कदम की आलोचना कर रहे हैं और इसको कलात्मक स्वतंत्रता को बाधित करनेवाला कदम बता रहे हैं। दरअसल जब वो कलात्मक स्वतंत्रता की बात करते हैं तो उनको इस बात का ध्यान नहीं रहता कि ये स्वतंत्रता असीमित नहीं है। भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं को भी स्पष्ट किया गया है। ऐसा भी नहीं है कि इंटरनेट मीडिया पर चलनेवाले इन मनोरंजन के माध्यमों के लिए दिशानिर्देश जारी करनेवाला भारत दुनिया का पहला देश है। कई देशों में ओटीटी के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश हैं। सिंगापुर में तो बकायदा इसके लिए एक प्राधिकरण है जिसको इंफोकॉम मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी कहते है। इसकी स्थापना ब्राडकास्टिंग एक्ट के तहत की गई थी। इसमें सभी सेवा प्रदताओं को ब्राडकास्टिंग एक्ट के अंतर्गत इस प्राधिकरण से लाइसेंस लेना पड़ता है। ओटीटी, वीडियो ऑन डिमांड और विशेष सेवाओं के लिए एक विशेष कंटेंट कोड है। इसमें सामग्रियों के वर्गीकरण की स्पष्ट व्यवस्था है। सिंगापुर की इंफोकॉम मीडिया डेवलपमेंट प्राधिकरण को अधिकार है कि वो ओटीटी प्लेटऑर्म पर दिखाई जानेवाली सामग्री को अगर कानून सम्मत नहीं पाती है तो उसका प्रसारण रोक दे।इसके अलावा नियम विरुद्ध सामग्री दिखाने पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है। सिर्फ सिंगापुर ही नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया में भी इस तरह के प्लेटऑर्म पर नजर रखने के लिए ई सेफ्टी कमिश्नर हैं। उनका दायित्व है वो डिजीटल मीडिया पर चलनेवाली सामग्रियों पर नजर रखें। वहां तो विनियमन इस हद तक है कि ई सेफ्टी कमिश्नर अगर पाते हैं कि किसी मनोरंजन सामग्री का वर्गीकरण अनुचित है या गलत तरीके से उसको किया गया है तो वो दंड के तौर पर उसको प्रतिबंधित भी कर सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया में भी ओटीटी पर चलनेवाली सामग्री की शिकायत मिलने पर उसके निस्तारण की एक तय प्रक्रिया है। इसके अलावा भी दुनिया के कई देशों में किसी न किसी तरह के दिशा निर्देश लागू हैं। हमारे देश में अबतक ओटीटी की सामग्री को लेकर किसी तरह का कोई नियमन नहीं था। इसका नतीजा यह था कि कई प्लेटफॉर्म पर तो बेहद अश्लील सीरीज भी परोसे जा रहे थे, बिना किसी वर्गीकरण के। कहीं किसी कोने में छोटा सा अठारह प्लस लिख दिया जाता था लेकिन किसी प्रकार की कोई रोक टोक नहीं थी। कोई भी उसको देख सकता था।

जहां तक कलात्मक स्वतंत्रता को बाधित करने की बात है उसको लेकर जो लोग प्रश्न खड़े कर रहे हैं वो यह भूल रहे हैं कि हमारे देश में फिल्मों को भी रिलीज के पहले प्रमाणन करवाना होता है। क्या इस प्रमाणन की व्यवस्था से हमारे देश में फिल्मों की कलात्मक स्वतंत्रता बाधित हुई? टीवी चैनलों को लेकर स्वनियमन लागू है क्या टीवी चैनलों पर दिखाई जानेवाली सामग्रियों में कलात्मक स्वतंत्रता बाधित दिखती है? दरअसल इस तरह के नियमनों से अराजकता पर रोक लगती है। ये कौन सी कलात्मक स्वतंत्रता है जिसमें वेब सीरीज की आड़ में राजनीति की जाती हो, भारतीय सेना की छवि को धूमिल किया जाता हो, कश्मीर में सेना के क्रियाकलापों को गलत तरीके से पेश किया जाता हो, हिंसा, गाली गलौच और यौनिकता के दृश्यों को प्रमुखता से दिखाया जाता हो। कोई भी माध्यम समाज सापेक्ष होना चाहिए, समाज से, संस्कृति से, निरपेक्ष होकर कला का विकास नहीं हो सकता है। समाज और संस्कृति को छोड़कर कोई भी कला अपने उच्च शिखर को प्राप्त नहीं कर सकती है। और इस मामले में तो सरकार ने बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा की कि ओटीटी प्लेटफॉर्म अपनी तरफ से कोई स्वनियमन की नीति बनाकर देंगे लेकिन जब उनके बीच सहमति नहीं बन सकी तो सरकार ने दिशा निर्देश जारी कर दिए। जो लोग इसको बाधा मान रहे हैं उनको ये पता होना चाहिए कि कला भी अनुशासन की मांग करती है। सरकार ने ओटीटी के लिए दिशा निर्देश जारी करने में थोड़ी देरी अवश्य की लेकिन अब जब ये जारी हो गा है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि ओटीटी पर हम वाक्य में गाली गलौच नहीं होगी और अश्लीलता की सीमाएं भी नहीं टूटेंगीं।  

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