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Thursday, March 11, 2021

जीवन का 'आनंद'


किसी भी फिल्म को अगर क्लासिक का दर्जा मिलता है तो उसके पीछे कई कारण होते हैं, कई लोगों की मेहनत होती है। फिल्म ‘आनंद’ को अगर आज 50 साल बाद भी लोग पसंद कर रहे हैं तो इसके पीछे कहानी, संवाद, निर्देशन, अभिनय, गीत, संगीत और संपादन का समुच्चय है। ‘आनंद’ एक ऐसी फिल्म है जिसके निर्माण को लेकर कई बेहद रोचक किस्से हैं। इस फिल्म के निर्देशक ह्रषिकेश मुखर्जी ने जब पहली बार एक कैंसर के युवा मरीज और उसके दोस्त को केंद्र में रखकर फिल्म बनाने की सोची थी तब उनके दिमाग में आनंद सहगल की भूमिका के लिए राज कपूर का नाम था। दोनों गहरे मित्र भी थे। तय भी हो गया था कि राज कपूर इस फिल्म में काम करेंगे। ये साल था 1955। लेकिन उसके बाद ह्रषिकेश मुखर्जी और राज कपूर की अन्य व्यस्तताओं की वजह से फिल्म का निर्माण टलता रहा। जब ह्रषिकेश मुखर्जी और एन सी सिप्पी ने फिल्म निर्माण के लिए हाथ मिलाया तो मुखर्जी ने सिप्पी को कैंसर मरीज वाली कहानी सुनाई। उनको कहानी बेहद पसंद आई। फिल्म पर काम शुरू हुआ। लेकिन तबतक राज कपूर की उम्र चालीस पार हो चुकी थी और वो युवा मरीज के रोल में फिट नहीं बैठ रहे थे। शशि कपूर के बारे में विचार चल रहा था कि एक दिन अचानक ह्रषिकेश मुखर्जी के घर राजेश खन्ना पहुंचे और इस फिल्म में काम करने की इच्छा जताई। मुखर्जी ने साफ तौर पर राजेश खन्ना को कहा कि वो उनकी फीस नहीं दे पाएंगे क्योंकि फिल्म का बजट बहुत कम है। तब राजेश खन्ना एक फिल्म के पांच लाख रुपए लेते थे। राजेश खन्ना ने कहा कि उनको फीस नहीं चाहिए इसके बदले में उनको बांबे(अब मुंबई) क्षेत्र में फिल्म वितरण का अधिकार दे दिया जाए। मुखर्जी ने कहा कि वो सिप्पी से बात करके बताएंगे। उनके घऱ से निकलने के पहले राजेश खन्ना ने उनसे एक वादा ले लिया कि अब वो शशि कपूर से बात नहीं करेंगे। इसी तरह से अभिनेता ओमप्रकाश ने अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया था और अमिताभ से मिलने के बाद ह्रषिकेश मुखर्जी उनसे बहुत प्रभावित हुए थे। 

सिप्पी की स्वीकृति के बाद फिल्म की शूटिंग शुरू हो गई। राजेश खन्ना सेट पर हर रोज देर से आते थे। एक दिन जब राजेश खन्ना देर से आए तो ह्रषिकेश मुखर्जी भन्नाए हुए बैठे हुए थे। उन्होंने राजेश खन्ना को खूब खरी-खोटी सुनाई, कई पुस्तकों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि उन्होंने खन्ना को जमकर गालियां भी दी और फिल्म बंद करने की घोषणा करके घर चले गए। राजेश खन्ना परेशान थे, परेशान तो बाकी के कलाकार भी थे ही। दो तीन दिन बाद इस फिल्म के ही एक और कलाकार रमेश देव ह्रषिकेश दा के घर पहुंचे। अपने साथ राजेश खन्ना को लेकर भी गए थे, बगैर ह्रषिकेश मुखर्जी को बताए। राजेश खन्ना को नीचे बैठकर वो दादा के पहली मंजिल के कमरे में पहुंचे और उनसे बातचीत करने लगे।बातचीत के क्रम में उन्होंने पूछा कि क्या वो सच में फिल्म बंद करना चाहते हैं? दादा बोले नहीं यार! मैं को ये सोच रहा हूं कि गुस्से में राजेश खन्ना को बहुत बुरा भला कह दिया, क्या वो फिर से फिल्म में काम करने को तैयार होगा। जब ये बात हो रही थी तो राजेश खन्ना पहली मंजिल पर पहुंच गए थे और कमरे के बाहर खड़े होकर सुन रहे थे। जैसे ही उन्होंने ह्रषिकेश मुखर्जी की बात सुनी तो कमरे में घुसे और जाकर दादा के चरण पकड़ कर फर्श पर लेट गए। कहने लगे कि क्षमा कर दीजिए अब कभी शूटिंग के लिए लेट नहीं करूंगा। ह्रषिकेश मुखर्जी पिघल गए। लेकिन राजेश खन्ना नहीं माने और बोले कि जबतक आप सिप्पी साहब को फिर से फिल्म शुरू करने के लिए फोन नहीं करेंगे तबतक वो पांव नहीं छोड़ेगे। दादा ने सिप्पी को फोन कर दिया और फिल्म फिर से शुरू हो गई। राजेश खन्ना दो तीन दिन तो समय से शूटिंग के लिए आए लेकिन फिर वही रवैया लेकिन तबतक मुखर्जी समझ चुके थे कि इस मसले पर कुछ हो नहीं सकता। राजेश खन्ना देर से आते रहे और शूटिंग चलती रही, फिल्म पूरी हो गई।

राजेश खन्ना इस फिल्म के नायक जरूर थे लेकिन पूरी फिल्म में ह्रषिकेश दा ने इस बात का ध्यान रखा कि कहानी पर नायकत्व हावी न हो सके। कहीं भी राजेश खन्ना अपने स्टाइल में अभिनय करते नजर नहीं आते हैं, न तो गरदन झटकते हैं न ही हाथ मोड़ कर अपने विशेष अंदाज में संवाद अदायगी करते हैं। 11 मार्च 1971 को फिल्म रिलीज हुई और आज पचास साल होने के बाद भी ‘आनंद’ को उतना ही प्यार मिल रहा है।  


3 comments:

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

रोचक किस्से रहे।

Shivam shukla said...

https://hindikavitamanch.blogspot.com

Shivam shukla said...

Please sir come on my blog