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Sunday, April 18, 2021

साहित्य का शीर्ष कलश


पिछले दिनों नरेन्द्र कोहली की एक पुस्तक आई थी, ‘समाज जिसमें मैं रहता हूं’। उस पुस्तक की आरंभिक प्रतियों में से एक उन्होंने मुझे भिजवाई थी। ये उनके संस्मरणों और भाषा आदि को लेकर लिखे लेखों का संग्रह है। उनकी इच्छा थी कि मैं इस पुस्तक को पढ़कर उनसे चर्चा करूं। मैंने पुस्तक को तत्काल पढ़कर उनको फोन किया और पुस्तक के बारे में खूब अच्छी अच्छी बातें उनसे कहीं, कई उल्लिखित प्रसंगों पर उनसे चर्चा भी की। बातचीत के दौरान मुझे लगा कि वो अपनी तारीफ से इतर वो कुछ सुनना चाह रहे थे। मेरे पास वो बातें थीं लेकिन मैं कह नहीं पा रहा था। बात आई गई हो गई। इस बीच मैंने उनके प्रकाशक को फोन करके बता दिया कि कोहली जी की उक्त पुस्तक में प्रूफ की अनेक गलतियां हैं जो उनकी प्रतिष्ठा के विपरीत हैं। अभी पांच अप्रैल को उनसे बहुत लंबी बात हुई, देश दुनिया, समाज, राजनीति और साहित्यिक जगत की। उस दौरान भी मेरे दिमाग में ये बात आई कि पुस्तक की खामियों की ओर उनका ध्यान दिला दूं , लेकिन हिम्मत नहीं पड़ी। लेकिन मेरे मन के किसी कोने में अंतरे में ये बात अटकी हुई थी कि कोहली जी को ये तो बताना ही होगा कि उनकी पुस्तक में भी कमियां हैं। ये इस वजह से भी था कि वो हमेशा शब्दों के प्रयोग और उसको लिखने के तरीके को लेकर सचेत रहते थे। अगले दिन उनको व्हाट्सएप पर संदेश भेजा, ‘आपकी पुस्तक में प्रूफ की कई गलतियां हैं जो नहीं होनी चाहिए थीं’। तुरंत जवाबी संदेश आया, ‘तुमने सही प्रतिक्रिया देने में बहुत देर कर दी, पता नहीं क्यों?’ मैंने लिखा, ‘आपसे डरकर’ । उनका उत्तर, ‘सत्य कहने में भय किस बात का और तुम कब से डरकर सत्य बोलने से बचने लगे?’ मैंने हाथ जोड़ लिए। मेरी कोहली जी से ये अंतिम बातचीत थी, लेकिन इस बातचीत ने मुझे बहुत शक्ति दी थी। वो इसी तरह से बातचीत के दौरान और कभी कभार संदेश भेजकर मुझे शब्दों के प्रयोग और मेरे लेख पर प्रतिक्रिया दिया करते थे, ये उनका सिखाने का तरीका था। 

नरेन्द्र कोहली से मेरा परिचय मेरे मित्र और वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी ने करवाया था। वर्ष ठीक से याद नहीं है लेकिन करीब दस साल से अधिक तो हो ही गए होंगे। फिर हम लोगों ने देश-विदेश की कई यात्राएं साथ-साथ कीं। इन यात्राओं के भी कई दिलचस्प किस्से हैं, प्रसंग हैं। कोहली जी की श्रीराम में जबरदस्त आस्था थी। वो हर बात में ये कहा करते थे कि रामजी की यही इच्छा रही होगी। उनकी इस आस्था का प्रकटीकरण तब हुआ जब वो एक कार्यक्रम के सिलसिले में अयोध्या गया। कार्यक्रम की आयोजक मालिनी अवस्थी के सामने उन्होंने शर्त रखी कि वो अयोध्या तभी जाएंगें जब रामलला के दर्शन की व्यवस्था हो पाएगी। आयोजकों ने उनकी बात मानी। वो अयोध्या गए। रामलला के दर्शन भी किए। दर्शन के बाद कोहली जी फफक फफक कर रोने लगे। उन्होंने अपने जीवनकाल में पहली बार अयोध्या में रामलला के दर्शन तक किए जब सुप्रीम कोर्ट का राम जन्मभूमि पर फैसला आ गया। मालिनी अवस्थी और युवा कवि राहुल नील इस पल के गवाह बने थे। बाद में पता चला कि उन्होंने ये तय किया हुआ था कि रामलला के दर्शन करने अयोध्या तभी जाएंगे जब जन्मभूमि के तमाम विवाद समाप्त हो जाएंगे। 

दैनिक जागरण में जब हमने ‘हिंदी हैं हम’ अभियान का आरंभ किया तो नरेन्द्र कोहली जी पहले कार्यक्रम के अतिथि थे। दैनिक जागरण बेस्टसेलर की जब शुरुआत हुई तो पहली सूची नरेन्द्र कोहली ने जारी की थी। संवादी लखनऊ से लेकर बिहार संवादी तक में कोहली जी की भागीदारी रही थी। अपनी भाषा हिंदी को लेकर उनमें एक जबरदस्त प्रेम था और उनका यह प्रेम बहुधा गोष्ठियों में दिख भी जाता था। उनके निधन से हिंदी को अपूरणीय क्षति हुई है। वो हिंदी साहित्य के शीर्ष कलश थे।  


4 comments:

शिवम कुमार पाण्डेय said...

ईश्वर इनकी आत्मा को शांति दे।
नमन।🙏🌻

Anonymous said...

जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
20/04/2021 मंगलवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......


अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

kuldeep thakur said...

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Ananta Sinha said...

आदरणीय सर,
हार्दिक आभार इस सुंदर लेख को ब्लॉग पर हमारे साथ साझा करने के लिए और यह भी कहना चाहूँगी कि आपका बहुत सौभाग्य था की आपका उनसे परिचय हुआ और आज हम सब का यह सौभाग्य है कि हमने उनके बारे में आपके माध्यम से जाना।
श्री नरेंद्र कोहली जी कि लिखी हुई पुस्तक "मेरी राम-कथा" हमारे पास है और मैं ने पढ़ी भी है पर आज आपसे उनकी राम-भक्ति और विशाल व्यक्तित्व जान कर अत्यंत आनंद हुआ ।
पुनः आभार इस सुंदर लेख के लिए व आपको प्रणाम ।