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Saturday, June 19, 2021

भारतीय विचार और दृष्टिकोण की जरूरत


दिनांक 15 जून 2021, समय शाम छह बजकर 12 मिनट। केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने एक ट्वीट किया, ‘आज साहित्य अकादमी के कामकाज की विस्तृत समीक्षा की। हाई पावर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने पर जानकारी देने का निर्देश दिया।‘ संस्कृति मंत्री ने अपने इस ट्वीट को प्रधानमंत्री कार्यालय, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जे पी नड्डा, संस्कृति मंत्रालय, भारतीय जनता पार्टी और मध्य प्रदेश बीजेपी के अलावा कुछ अन्य ट्वीटर हैंडल को भी टैग किया। अपने इस ट्वीट के साथ मंत्री ने चार फोटो भी पोस्ट किए। इस ट्वीट से पता चला कि संस्कृति मंत्री दिल्ली के रवीन्द्र भवन स्थित साहित्य अकादमी के मुख्यालय पहुंचे थे। वहां उन्होंने साहित्य अकादमी के कामकाज की समीक्षा की। इस ट्वीट में उन्होंने हाई पावर कमेटी की बात करके पुरानी याद ताजा कर दी। हाई पावर कमेटी का गठन संस्कृति मंत्रालय ने अपने कार्यालय पत्रांक संख्या 8/69/2013/अकादमी दिनांक 15 जनवरी 2014 को किया था। इस कमेटी का गठन संसद की संस्कृति मंत्रालय की स्थायी समिति के प्रतिवेदन संख्या 201 के आधार पर करने की बात की गई थी। इसके चेयरमैन पूर्व संस्कृति सचिव अभिजीत सेनगुप्ता थे। उनके अलावा इसमें सात अन्य सदस्य थे, रतन थिएम, नामवर सिंह, ओ पी जैन, सुषमा यादव, संजीव भार्गव और संस्कृति मंत्रालय के तत्कालीन अतिरिक्त सचिव के के मित्तल। इस कमेटी का मुख्य काम संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, सांस्कृतिक स्त्रोत और प्रशिक्षण केंद्र की कार्यप्रणाली की समीक्षा और उसको बेहतर करने के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत करना था। इस कमेटी ने एक सौ तीस पन्नों की एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

अब मंत्री जी ने ‘हाई पावर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने पर जानकारी देने का निर्देश’ दिया है। यह अच्छी बात है, पर हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि इस कमेटी के सदस्यों में से कितने लोग वामपंथ की विचारधारा की जकड़न में थे और सांस्कृतिक संस्थाओं को देखने का उनका दृष्टिकोण क्या था? नामवर सिंह और रतन थिएम की विचारधारा के बारे में तो सबको ज्ञात है ही। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ही स्वीकार किया है कि सरकार ने उसको तीन महीने में अपने सुझाव देने को कहा था लेकिन तीन सप्ताह के कार्य विस्तार के साथ ये रिपोर्ट पांच मई 2014 को तैयार कर दी गई। पांच मई 2014 को ही इस कमेटी के चेयरमैन का हस्ताक्षर इस रिपोर्ट पर है। इस वजह से माना जा सकता है कि इसके एक-दो दिन बाद ये रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई होगी। पांच मई 2014 वो तिथि है जब देश में लोकसभा चुनाव चल रहे थे और पांच चरणों का मतदान संपन्न हो चुका था। चुनाव के बीच और नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के पहले संस्कृति मंत्रालय को ये रिपोर्ट सौंप दी गई। प्रश्न ये उठता है कि इतने महत्वपूर्ण रिपोर्ट को तैयार करने और सौंपने में इतनी हड़बड़ी क्यों दिखाई गई। जिस दिन ये रिपोर्ट फाइनल हुई उस दिन इसके एक सदस्य रतन थिएम अनुपस्थित थे और उन्होंने इंफाल से पत्र लिखकर इसकी संस्तुतियों पर अपनी सहमति जताई। इतनी जल्दबाजी क्यों? 

इस रिपोर्ट को लेकर प्रश्न यह भी उठता है कि क्या सिर्फ तीन या चार महीने में इतने महत्वपूर्ण संस्थाओं के क्रियाकलापों का आकलन और सुझाव देना संभव है? कमेटी खुद ये बात स्वीकार करती है कि संस्कृति मंत्रालय को बगैर प्रशासनिक दायित्वों को और कमेटी के तौर तरीकों को तय किए हाई पावर कमेटी नहीं बनानी चाहिए थी। इस हाई पावर कमेटी के पहले 1988 में हक्सर कमेटी बनी थी जिसने 1990 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। हक्सर कमेटी ने पूरे देशभर का दौरा किया था और संबंधित लोगों से बातचीत करके दो साल में अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। उसके पहले भी संस्कृति मंत्रालय ने अकादमियों के कामकाज के आकलन के लिए खोसला कमेटी बनाई थी। इस कमेटी का गठन भी 19 फरवरी 1970 को हुआ था और उसने अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई 1972 को सौंपी थी। संस्थाओं का आकलन करना, उसके संविधान का अध्ययन करना, उसकी परंपराओं को देखना समझना और फिर सुझाव देना बेहद श्रमसाध्य कार्य है, जिसके लिए समय तो चाहिए था। एक और बात को रेखांकित करना आवश्यक है जो कि इस कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में ही कही है। वो ये कि ये ‘हाई पावर कमेटी संस्कृति मंत्रालय के आदेश से बना दी गई इसके लिए सरकार की तरफ से कोई प्रस्ताव पास नहीं किया गया था, जैसे कि पूर्व में परंपरा रही थी। ऐसा प्रतीत होता है कि संस्कृति मंत्रालय को अपने कार्यालय आदेश पर बनाई गई हाई पावर कमेटी और सरकार के प्रस्ताव पर बनी कमेटी का अंतर मालूम नहीं था।‘

इस हाई पावर कमेटी को सुझावों को सात साल बीत चुके हैं। नरेन्द्र मोदी को दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री का पद संभाले दो साल बीत चुके हैं। संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल भी दो साल से संस्कृति मंत्री का दायित्व संभाल रहे हैं। 15 जून को संस्कृति मंत्री जिस रवीन्द्र भवन स्थित साहित्य अकादमी गए थे और वहां के काम काज का जायजा लिया था। अच्छा होता कि मंत्री जी उसी भवन में स्थित संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी भी गए होते तो उनको इस बात का एहसास होता कि उनके मंत्रालय से संबद्ध संस्थाएं कैसे काम कर रही हैं। संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी में चेयरमैन नहीं है। ललित कला अकादमी को लेकर तो कई मुकदमे भी अदालत में चल रहे हैं। बेहतर तो ये भी होता कि मंत्री जी सड़क पार करके राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय भी हो आते जहां इन दिनों करीब तीन साल बाद निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सरगर्मी है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक के चयन के लिए इस महीने की 24 और 25 तारीख को साक्षात्कार तय किए गए हैं। निदेशक के चयन के लिए बनाई गई समिति को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है, क्योंकि इसमें तीन सदस्य महाराष्ट्र से जुड़े हैं। सतीश आलेकर और विजय केंकड़े के अलावा दर्शन जरीवाला का कार्यक्षेत्र भी महाराष्ट्र ही है। आरोप स्वाभाविक हैं कि किसी अखिल भारतीय संस्था के निदेशक की खोज करने के लिए सिर्फ एक प्रदेश से जुड़े लोगों का पैनल क्यों बनाया गया है। विविधता की अपेक्षा रखना गलत नहीं है और ऐसा होता तो आरोप भी नहीं लगते। 

मंत्री जी जिस हाई पावर कमेटी की बात कर रहे हैं उसने संस्कृति मंत्रालय को लेकर भी कुछ सुझाव दिए हैं। इसमें से दो सुझाव बेहद अहम हैं जिसपर तत्काल अमल करने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। पहला सुझाव है कि संस्कृति मंत्रालय के सभी कर्मचारियों को सांस्कृतिक स्त्रोत और प्रशिक्षण केंद्र, दिल्ली में एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे कि वो देश के सांस्कृतिक परिवेश को समझ सकें। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में सांस्कृतिक प्रशासन की बुनियादी ट्रेनिंग भी हो। दूसरा सुझाव है कि संस्कृति मंत्रालय में एक आनेवाले नए अधिकारियों और कर्मचारियों को मंत्रालय से संबंधित एक नोट दिया जाना चाहिए जिसमें भारतीय सांस्कृतिक सिद्धातों और कला संबंधित जानकारी हो। ये सुझाव महत्वपूर्ण इसलिए है कि संस्कृति मंत्रालय में कभी रेलवे सेवा के तो कभी डाक सेवा के तो कभी राजस्व सेवा के अफसरों की नियुक्ति हो जाती है। ये गलत नहीं है लेकिन उन अफसरों को संस्कृति से जुड़ी बारीकियों से परिचित कराने का उपक्रम तो होना ही चाहिए। अगर अफसर सांस्कृतिक प्रशासन की बारीकियों को या कला की महत्ता से परिचित नहीं होंगे तो इसको भी अन्य प्रशासनिक मसलों की तरह देखेंगे जिससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाएंगे। सात साल पुरानी हाई पावर कमेटी की जगह बेहतर हो कि एक नई कमेटी बने जो बहुत सोच समझकर, बगैर किसी हड़बड़ी के, समग्रता में अपनी रिपोर्ट दे और फिर उसकी प्रगति रिपोर्ट के बारे में बात हो और उसकी दृष्टि और दृष्टिकोण दोनों भारतीय हो। 

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