फिल्म ‘गाइड’ तो लीला नायडू को नहीं मिली लेकिन उसी समय इस्माइल मर्चेन्ट ने एक कंपनी बनाई और फिल्म ‘द हाउसहोल्डर’ का निर्माण किया। इस फिल्म में लीला नायडू को लिया गया था। ‘द हाउसहोल्डर’ के बनने की प्रक्रिया में सत्यजित राय बहुत गहरे जुड़े थे और वो लीला नायडू से प्रभावित हो गए थे। उन्होंने लीला नायडू, शशि कपूर और मर्लेन ब्रांडो को लेकर एक फिल्म बनाने की योजना बनाई थी, पर ये योजना परवान नहीं चढ़ सकी। दरअसल लीला नायडू मुंबई फिल्म जगत की ऐसी अदाकारा थीं जो बेहद खूबसूरत थीं लेकिन उनकी फिल्मों को बहुत अधिक सफलता नहीं मिली। इनके पिता वैज्ञानिक थे और लंबे समय तक पेरिस में रहे। लीला नायडू अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं। स्विट्जरलैंड में पली बढ़ी और वहीं उन्होंने एक्टिंग की ट्रेनिंग भी ली। 1954 में वो मिस इंडिया बनीं और इसके आठ साल बाद उनको सुनील दत्त ने फिल्म का ऑफर दिया। फिल्मी दुनिया में आने के पहले उन्होंने ओबरॉय होटल चेन के मालिक मोहन सिंह ओबरॉय के बेटे तिलक राज ओबरॉय से विवाह कर लिया था। ये शादी बहुत लंबी नहीं चल सकी और दो बेटियों के जन्म के बाद दोनों में तलाक हो गया। बाद में लीला ने लेखक कवि डाम मारिस से दूसरी शादी कर ली। लीला नायडू ने एकाध और फिल्में की लेकिन बहुत सफलता नहीं मिल पाई। बाद के दिनों में वो अपने दूसरे पति से भी अलग हो गई और अकेले रहने लगीं। मुंबई के कोलाबा इलाके के अपने फ्लैट में अंतिम दिनों में रहीं और वहीं 29 जुलाई 2009 को उनका निधन हो गया।
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Wednesday, July 28, 2021
गाइड में लीला नहीं बन पाई 'रोजी'
नौसेना अधिकारी के एम नानावटी की जिंदगी और उनके अपनी पत्नी के प्रेमी को गोलीमार देने की घटना हर दौर में फिल्मकारों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है। सुनील दत्त ने जब फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखने की सोची तो उनको नानावटी की स्टोरी पसंद आई और उन्होंने उसपर फिल्म बनाने का ताय किया। उन्होंने ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ नाम से नानवटी की कहानी पर फिल्म बनाई। इसमें सुनील दत्त के साथ रहमान थे और नायिका के तौर पर मिस इंडिया रही लीला नायडू को चुना गया था। फिल्म बनी लेकिन बहुत चल नहीं पाई लेकिन लीला नायडू की खूबसूरती और अदायगी का हिंदी फिल्मकारों ने नोटिस लिया। नानावटी की कहानी पर बाद में गुलजार के निर्देशन में ‘अचानक’ फिल्म बनी जिसको ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखा था। इसमें विनोद खन्ना लीड रोल में थे। कई वर्षों बाद अक्षय कुमार अक्षय कुमार को लीड रोल में लेकर एकबार फिर इस कहानी पर ‘रुस्तम’ बनी। बाद की दोनों फिल्में सफल रहीं लेकिन ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ को दर्शकों का प्यार नहीं मिल पाया। 1963 में ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ रिलीज हुई थी। इसी समय विजय आनंद ने आर के नारायणन की कहानी पर ‘गाइड’ फिल्म बनाने की सोची थी तो उनके जेहन में रोजी की भूमिका के लिए लीला नायडू का नाम ही आया। वो लीला की खूबसूरती से बहुत प्रभावित थे और उनको लगता था कि ‘गाइड’ में रोजी की भूमिका के लिए वो उपयुक्त अदाकारा हैं। इस बात का कई जगह उल्लेख मिलता है कि विजय आनंद ने लीला नायडू से इस रोल के लिए बात कर ली थी। जब फिल्म के फ्लोर पर जाने का समय आया और उसका स्क्रीनप्ले लिख लिया गया तो विजय आनंद को महसूस हुआ कि रोजी के रोल में तो वही अभिनेत्री सफल हो सकती हैं जो बेहतरीन डांसर भी हो। लीला नायडू नृत्यकला में उतनी पारंगत नहीं थीं लिहाजा विजय आनंद को अपना फैसला बदलना पड़ा और लीला नायडू की जगह वहीदा रहमान को चुना गया। बाद की बातें तो इतिहास हैं।
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3 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29-07-2021को चर्चा – 4,140 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
रोचक जानकारी।
बेहतरीन समीक्षा ।
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