लता मंगेशकर लगातार को भक्ति के पद गाने में बहुत आनंद आता था। उन्होंने मीरा के कई पद गाए। उनको जयदेव का गीत गोविन्द भी बेहद प्रिय था। लता मंगेशकर बचपन से ही कृष्ण के प्रति आकर्षित रहती थीं। बाद में जब मीरा, सूरदास और जयदेव के पदों को पढ़ा तो उनकी कृष्ण में आस्था और गहरी हो गई। वो कोई भी गीत कागज पर लिखती थीं तो सबसे पहले वहां श्रीकृष्ण लिखती थीं और उसके बाद गीत के बोल। इससे जुड़ा एक प्रसंग लता जी ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था। लता जी का उदयपुर के महाराज महाराणा भागवत सिंह से पारिवारिक रिश्ता था। एक बार वो, पंडित नरेन्द्र शर्मा, उषा मंगेशकर और ह्रदयनाथ मंगेशकर उदयपुर गए और महाराणा मेवाड़ भागवत सिंह से मिलने उनके महल पहुंचे। भागवत सिंह बहुत प्रसन्न थे। महाराणा ने उनसे कहा कि आप तो कृष्ण की भक्त हैं, आपको मीरा के पद गाना और सुनना दोनों बेहद पसंद है। आपको अपनी पूर्वज मीराबाई के भगवान का दर्शन करवाते हैं। फिर महाराज उनको एक कमरे में लेकर गए। वहां बेहद करीने से रखे गए कृष्ण की छोटी सी मूर्ति के दर्शन करवाए। भागवत सिंह ने लता मंगेशकर को बताया कि ये कृष्ण की वही मूर्ति है जिसको गोद मे लेकर मीराबाई पूजा किया करती थीं। कृष्ण की उस मूर्ति को देखकर लता जी की आंखों में आंसू आ गए। कृष्ण भक्त लता अपने अराध्य की मूर्ति का दर्शन कर बेहद रोमांचित थीं।
दूसरा वाकया राम भक्ति से जुड़ा है। लता मंगेशकर ‘राम रतन धन पायो’ वाला रिकार्ड तैयार कर रही थीं। उसी समय उनके बेहद नजदीकी पंडित नरेन्द्र शर्मा ने उनसे कहा कि ‘राम ऐसे अकेले भगवान हुए हैं कि अगर कोई उनकी तन मन से सेवा करे तो तो उसका सारा कार्य सिद्ध होता है। राम ही वो ईश्वर हैं जो सत्य के छोर पर खड़े होकर आपको अंत में निर्वाण की दशा में ले जाते हैं। लता मंगेशकर ने यतीन्द्र मिश्र को बताया कि, पंडित नरेन्द्र शर्मा की ये बात उनको गहरे तक छू गई और पता नहीं क्या हुआ कि इस रिकार्ड के बनते बनते तक उनकी राम में श्रद्धा बढ़ने लगी। लता जी ने आगे कहा कि, ‘तभी से मैं राम भक्त हूं और मैं मानती हूं कि उनके जैसा चरित्र बल किसी दूसरे पौराणिक किरदार में ढूंढने से नहीं मिलेगा। पंडित नरेन्द्र शर्मा ने लता जी से कहा था कि देखना तुम्हारा ये रिकार्ड सबसे अधिक चलेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि जब ये रिकार्ड रिलीज हुआ तब से लेकर आजतक उसके मुकाबले कोई रिकार्ड नहीं चला। बधाई और आशीर्वाद के जितने भी पत्र आजतक मुझे मिलते रहे हैं वो पहले या बाद में कभी इस तरह से नहीं मिले। इसको मैं रामजी का आशीर्वाद मानती हूं।‘ इन दो प्रसंगों से स्पष्ट है सकता है कि लता जी बेहद धार्मिक और आस्थावान महिला थीं।
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