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Saturday, September 24, 2022

आंकड़ों और दावों के तिलिस्म में ‘ब्रह्मास्त्र’


पिछले पखवाड़े एक फिल्म आई जिसका नाम है ब्रह्मास्त्र पार्ट वन शिवा। फिल्म त्रयी की ये पहली फिल्म है। इसके निर्माता करण जौहर और अन्य हैं। इसका निर्देशन अयान मुखर्जी ने किया है। रणबीर कपूर और आलिया भट्ट मुख्य भूमिका में हैं। ब्रह्मास्त्र को हिंदी की सबसे महंगी फिल्मों में से एक कहकर प्रचारित किया गया था। फिल्म के निर्माताओं की ओर से बताया गया था कि इस फिल्म को बनाने में 410 करोड़ रुपए खर्च हुए। फिल्म के प्रदर्शित होने के पहले से ये चर्चा आरंभ हो गई थी कि ये फिल्म चलेगी या नहीं। इसके पहले प्रदर्शित आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा और अक्षय कुमार अभिनीत रक्षाबंधन को दर्शकों का प्यार नहीं मिल पाया था। ये दोनों फिल्में अपनी लागत भी नहीं निकाल पाईं। फिल्म ब्रह्मास्त्र की सफलता को लेकर भी फिल्मों से जुड़े लोग आशंकित थे। इस फिल्म के बायकाट का ट्रेंड भी इंटरनेट मीडिया पर चल रहा था। फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो गई। इसके निर्माताओं और निर्देशक की तरफ से ये दावा किया गया कि पहले ही दिन इस फिल्म ने पूरी दुनिया में 75 करोड़ रुपए का कारोबार किया। इसको हिंदी फिल्मों की सबसे बड़ी ओपनिंग में से एक बताया गया। इंटरनेट मीडिया पर इस फिल्म के बायकाट की बातें निर्माताओं के दावे में दबने सी लगी। लेकिन कुछ लोग इस फिल्म के पहले दिन के कुल कारोबार की रकम को लेकर प्रश्न भी उठा रहे थे। आमतौर पर किसी भी हिंदी फिल्म की ओपनिंग देशभर के सिनेमाघरों में प्रदर्शन का कुल कारोबार माना जाता रहा है। करण जौहर और उनकी टीम ने पहले दिन कुल वैश्विक कारोबार का ब्यौरा देकर माहौल बनाने का प्रयास किया। निर्देशक अयान मुखर्जी भी कुल वैश्विक कारोबार को ही प्रचारित कर रहे हैं। बावजूद इसके फिल्म 15 दिनों में अपनी लागत 410 करोड़ रुपए का कारोबार नहीं कर पाई है। 

एक और बात जिसपर ध्यान दिया जाना चाहिए। फिल्म ब्रह्मास्त्र के बारे में बताया गया कि वो देशभर में 8000 पर्दे पर प्रदर्शित की गई। फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों का अनुमान है कि एक स्क्रीन पर किसी फिल्म को प्रदर्शित करने का औसत खर्च करीब 30 हजार रुपए आता है। अगर ब्रह्मास्त्र को 8000 स्क्रीन पर प्रदर्शित किया गया तो फिल्म के प्रदर्शन का कुल खर्च 24 करोड़ रुपए होता है। इसके अलावा फिल्म के प्रचार प्रसार पर हुए खर्च को दस करोड़ रुपए भी माना जाए तो ब्रह्मास्त्र पर निर्माण से लेकर रिलीज तक कुल खर्च 444 करोड़ रुपए होता है। दस दिनों के कुल वैश्विक कारोबार को देखा जाए तो 10 दिनों में ब्रह्मास्त्र ने 360 करोड़ का कारोबार किया है। फिल्म उद्योग से जुड़े ट्रेड विश्लेषकों की मानें तो इस फिल्म का चौदह दिनों में देश में सकल कारोबार करीब 266 करोड़ रुपए का है। विदेश में इस फिल्म का सकल कारोबार करीब 93 करोड़ रुपए का है। इस लिहाज से इस फिल्म का सकल वैश्विक कारोबार लागत तक नहीं पहुंच पाई है। लाभ की बात तो दूर । चूंकि करण जौहर को फिल्म उद्योग जगत के अग्रणी निर्माताओं में से एक माना जाता है इसलिए उनकी कारोबार दिखाने के इस तरीके का प्रभाव इंडस्ट्री पर पड़ेगा। इसको विपणन का एक तरीका माना जा सकता है। इस तरीके का प्रभाव सकारात्मक होगा या नकारात्मक इसका आकलन आनेवाले समय में ही हो पाएगा। 

ब्रह्मास्त्र के प्रचार के इस तरीके को देख कुछ वर्षों पूर्व नई दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले की एक घटना की याद आ गई। एक पुस्तक प्रकाशित होकर आनेवाली थी। मेले में इस बात का खूब प्रचार किया जा रहा था कि अमुक पुस्तक अमुक दिन अमुक समय पर प्रकाशित होकर बिक्री के लिए मेले में उपलब्ध होनेवाली है। अमुक दिन भी आ गया। तय समय पर जब पाठक पुस्तक खरीदने पहुंचे तो बताया गया कि पुस्तक का पहला संस्करण बिक गया है। मेले में इस बात की खूब चर्चा रही। प्रकाशक ने भी ये प्रचारित किया कि पुस्तक का पहला संस्करण चंद घंटों में बिक गया। अगले दिन ढेर सारे पुस्तक प्रेमी उस पुस्तक को खरीदने के लिए प्रकाशक के स्टाल पर पहुंचे। वहां वो पुस्तक उपलब्ध थी लेकिन उसके कवर पर छपा था, दूसरा संस्करण। पुस्तक की जमकर बिकी हुई। खरीदनेवाले ये बात करते हुए जा रहे थे कि कुछ तो बात होगी इस पुस्तक में कि कुछ ही समय में पहला संस्करण खत्म हो गया। बाद में पता चला कि ये मार्केटिंग का तरीका था। पुस्तक के पहले संस्करण का प्रकाशन ही दूसरे संस्करण की मुहर के साथ हुआ था। ये बात दूसरे प्रकाशक को पता चली तो वो और आगे चला गया। उसने एक युवा लेखक की पुस्तक प्रकाशित की तो पुस्तक के अंदर लिखवा दिया प्रथम संस्करण जनवरी और द्वितीय संस्करण जनवरी। मतलब एक महीने में दो संस्करण। ये भी प्रचार का एक तरीका था। दूसरे प्रकाशक की पुस्तक अपेक्षित संख्या में नहीं बिकी क्योंकि तबतक पाठकों के बीच ये बात फैल गई थी कि संस्करणों का खेल पुस्तक की बिक्री बढ़ाने और किताब के पक्ष में माहौल बनाने का एक तरीका है। इस तरह से प्रकाशन जगत की साख संदिग्ध हो गई। ब्रह्मास्त्र को लेकर जिस तरह से वैश्विक कारोबार को प्रचारित कर एक माहौल बनाने की कोशिश की गई उससे ये आशंका है कि इससे हिंदी फिल्म जगत की साख कम हो सकती है। माहौल बनाने से नुकसान कम हो सकता है लेकिन फिल्म जब चलती है तो उसका पता चल जाता है। जैसे द कश्मीर फाइल्स की लागत 25-30 करोड़ बताई जाती है लेकिन इसने करीब 300 करोड़ का कारोबार किया। इसको हिट कहा जाता है।     

दरअसल फिल्मों के कारोबार को समझने के लिए हमें सिनेमाघरों से बाहर निकलना होगा। पहले तो किसी फिल्म के हिट या फ्लाप होने का पैमाना सिनेमाघरों से होनेवाले कारोबार या वहां से अर्जित होनेवाले लाभ पर आधारित होता था। बदलते समय और मनोरंजन के अन्य माध्यमों के आने के बाद परिदृश्य बदल गया है। अब माना जाता है कि सिनेमाघरों से 50 प्रतिशत और ओवर द टाप प्लेटफार्म(ओटीटी) और अन्य माध्यमों पर उसको दिखाने के समझौते से पचास फीसदी कारोबार होता है। अब फिल्मकार अपनी फिल्मों को सिनेमाघर में रिलीज होने के पहले ही ओटीटी पर बेच देता है। उससे पैसे मिलते हैं। टेलिवजन पर दिखाने का अधिकार, अन्य भारतीय भाषाओं में रिमेक का अधिकार, म्यूजिक का अधिकार आदि से भी निर्माता अपनी लागत निकाल लेना चाहते हैं। कुछ फिल्मकार तो अपनी फिल्में सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर ही रिलीज करने लगे हैं। अक्षय कुमार की कटपुतली और मधुर भंडारकर की बबली बाउंसर तो ओटीटी पर ही रिलीज हुई। ब्रह्मास्त्र के बारे में भी फिल्म उद्योग जगत में चर्चा है कि इसको ओटीटी पर 150 करोड़ में बेचा गया है। अगर इस राशि को सही मानकर उसके सकल कारोबार में जोड़ भी दिया जाए तो ब्रह्मास्त्र अपनी लागत से कुछ अधिक राशि का कारोबार करेगा। 

जानकारों का ये भी मानना है कि अगर किसी फिल्म पर 450 करोड़ खर्च किया जाता है और पांच सवा पांच सौ करोड़ का कारोबार होता है तो उसको हिट नहीं माना जा सकता है। अगर फिल्म के बनने में अधिक समय लग गया तो उसमें निवेश की गई राशि पर लगनेवाले ब्याज को भी जोड़ा जाता है। ब्रह्मास्त्र को रिलीज करनेवाली सिनेमाघरों की शृंखला चलानेवाली एक कंपनी के शेयर में गिरावट देखी गई। बाजार हमेशा सेंटिमेंट्स पर चलता है और अगर उसको ब्रह्मास्त्र के रिलीज में उपरोक्त कंपनी को लाभ मिलता दिखता तो शेयर चढता। फिल्मों के हिट या फ्लाप की तिलस्मी दुनिया की चर्चा होती रहेगी लेकिन इतना तय है कि फिल्म की विषयवस्तु और उसका ट्रीटमेंट ही उसको हिट बनाती है, विपणन का कोई औजार नहीं।  

2 comments:

Nitish Tiwary said...

सब झोल है सर जी।

Nitish Tiwary said...

बहुत झोल है सर जी।