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Saturday, December 3, 2022

विवाद का कारण बनते गुलामी के चिह्न


स्वाधीनता के अमृत महोत्सव वर्ष में लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने पांच प्रण बताए थे। इसमें से एक प्रण गुलामी के चिह्नों को समाप्त करने का है। अमृत काल में अपेक्षा की गई कि इन पांच प्रण को आत्मसात किया जाए। प्रधानमंत्री ने जब गुलामी के चिह्नों को हटाने की बात की तो उनको इस बात का अंदाज होगा कि सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहने के कारण इसके चिह्न हमारे जीवन और सरकारी क्रियाकलापों में रच-बस गए हैं। उनको हटाना कठिन है। इसका ताजा उदाहरण है गोवा में आयोजित 53वें अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल आफ इंडिया (इफ्फी) में विवेक रंजन अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स को लेकर उठा विवाद। अंतराष्ट्रीय जूरी के चेयरमैन और इजरायल के फिल्मकार नादव लैपिड ने इस फिल्म को भद्दा और प्रोपगंडा फिल्म बताया। ये कहने के लिए उन्होंने इफ्फी के समापन समारोह के मंच का उपयोग किया। जहां उनके सामने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत, कई मंत्री और जूरी के अन्य सदस्य उपस्थित थे। ये भी गुलामी के एक चिह्न के बने रहने के कारण ही हुआ। कैसे ? इसको समझने के लिए फिल्म समारोह के नियमों को देखते हैं। 

इस वर्ष फिल्म समारोह का आयोजन राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) ने किया। एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक की तरफ से जारी नियम के बिंदु संख्या 3 (1) में कहा गया है कि फीचर फिल्म के अंतराष्ट्रीय कंपटीशन में कुल 15 फिल्में होंगी। इनमें से तीन भारतीय फिल्में होंगी। फिक्शन फिल्म की अवधि 70 मिनट या उससे अधिक होनी चाहिए। इसी नियमावली के 4.4 में कहा गया है कि अंतराष्ट्रीय कंपटीशन के लिए एक जूरी होगी जिसमें चेयरमैन और कम से कम दो सदस्य या अधिकतम चार सदस्य होंगे। इसके अगले बिंदु में ये स्पष्ट किया गया है कि फिल्मों के बारे में जूरी का फैसला उपस्थित सदस्यों के सामान्य बहुमत के आधार पर होगा। जूरी फिल्मों की प्रविष्टियों के बारे में निर्णय लेने के लिए अपने नियम बना सकती है। इसी में आगे कहा गया है कि एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक और/या उनके प्रतिनिधि जूरी के साथ फिल्मों पर मंथन के दौरान उपस्थित रहेंगे, लेकिन उनको वोट देने का अधिकार नहीं होगा। अब इस पूरी नियमावली में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि अंतराष्ट्रीय जूरी का चेयरमैन कैसे नियुक्त किया जाता है। बताया जा रहा है कि इफ्फी के अंतराष्ट्रीय जूरी के चेयरमैन का चयन एनएफडीसी करती है। इस वर्ष आयोजित मुंबई अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल, जिसका आयोजन भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत होता है, की अंतराष्ट्रीय जूरी का मैं सदस्य था। मेरे साथ इजरायल के डान वोलमैन, फ्रांस में बस गई ईरानी फिल्मकार मीना राड, फ्रांस के ही जेएन पियरे और भारत से नल्लामुत्थू सदस्य थे। इसमें सभी सदस्यों ने आम सहमति के आधार पर मीना राड का चुनाव जूरी के चेयरमैन के तौर पर किया था। इस पूरी प्रक्रिया और फिल्मों के चयन के दौरान फिल्म डिवीजन के एक सहयोगी निरंतर उपस्थित थे। सारी बातें सुन रहे थे और नोट्स भी ले रहे थे। जो नियमवाली थी उसमें भी ये स्पष्ट लिखा गया था कि सदस्य आम सहमति के आधार पर चेयरमैन का चयन करेंगे। किसी कारणवश अगर सहमति नहीं बन पाती है तो फेस्टिवल डायरेक्टर चेयरमैन की नियुक्ति करेगा। मुंबई अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल की अंतराष्ट्रीय जूरी के चेयरमैन भारतीय फिल्मकार भी होते रहे हैं। आमतौर पर वरिष्ठता को आधार बनाया जाता है।      

इफ्फी ने जो 53वें फिल्म फेस्टिवल के लिए नियमावली जारी की उसमें इस बात का भी उल्लेख नहीं है कि अंतराष्ट्रीय जूरी का सदस्य कोई भारतीय नहीं हो सकता है। लंबे समय से ये एक अलिखित सा नियम या कहें कि परंपरा चल रही है कि इंटरनेशनल जूरी का सदस्य कोई विदेशी फिल्मकार ही होगा। फिल्म फेस्टिवल में जब से अंतराष्ट्रीय जूरी बनने लगी होगी तब किसी ने कह या तय कर दिया होगा कि अंतराष्ट्रीय जूरी का सदस्य कोई विदेशी होगा। तब से ही ये चला आ रहा है। किसी ने इस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझी। इस बर्ष भी यही हुआ होगा और फेस्टिवल डायरेक्टर ने किसी की अनुशंसा पर इजरायली फिल्मकार नादव लैपिड को चेयरमैन नियुक्त कर दिया होगा। यहां ये देखा जाना चाहिए कि किसने नादव लैपिड की अनुशंसा किसने की थी। इसी तरह की स्थितियों के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुलामी के चिह्न हटाने की बात अपने पांच प्रण में की थी।

इफ्फी की नियमावली में एक और बात लिखी हुई है, जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है कि फिल्मों पर जब जूरी के सदस्य मंथन करेंगे तो एनएफडीसी के प्रबंध निदेशक या उनके प्रतिनिधि उपस्थित रहेंगे। अब यहां प्रश्न ये उठता है कि मंच से जो बात नादव लैपिड ने कही क्या उसपर मंथन के दौरान चर्चा नहीं हुई। उन्होंने तो एक साक्षात्कार में ये भी कहा कि स्पेन और फ्रांस के जूरी सदस्य से बात कर ली जाए वो भी इसी मत के थे। अंतराष्ट्रीय जूरी के एकमात्र भारतीय सदस्य सुदोप्तो सेन ये दावा कर रहे हैं कि नादव लैपिड ने जो मंच से बोला ये उनकी व्यक्तिगत राय है। एनएफडीसी को मंथन के दौरान उपस्थित अपने प्रतिनिधि से बात करनी चाहिए और सच की तह तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने मंथन के दौरान नोट्स लिए होंगे या जूरी के सदस्यों की राय भी दर्ज हुई होगी, उसको देखा जाना चाहिए कि उन्होंने क्या लिखकर दिया है। उससे राय स्पष्ट हो जाएगी। ऐसा क्यों हुआ इससे अधिक महत्वपूर्ण है कि आगे क्या किया जाए जिससे ऐसी अप्रिय घटनाएं न हों । एक तो जूरी चेयरमैन के चयन की प्रक्रिया एकदम स्पष्ट हो और दूसरा जिनको बनाया जाए उनकी पृष्ठभूमि के बारे में भी चयनकर्ता या अनुशंसा करनेवाले को जानकारी हो। 

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस वर्ष 4 जुलाई को 53वें इफ्फी के लिए मंत्री की अध्यक्षता में एक संचालन समिति का गठन किया था। इसमें कुल 26 सदस्य थे, जिनमें से 13 गैर सरकारी सदस्य थे। संचालन समिति के गठन के साथ ही इस समिति का उत्तरदायित्व और उसकी भूमिका तय की गई थी। इसमें 13वें बिंदु पर स्पष्ट है कि ये समिति इंटरनेशनल जूरी सदस्यों का चयन करेगी। गैर सरकारी सदस्यों में करण जौहर समेत कई बड़े नाम हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि जूरी के चयन में संचालन समिति के सदस्यों की कोई भूमिका थी या नहीं? अगर थी तो नादव लैपिड का नाम किसने सुझाया था। इफ्फी के लिए संचालन समिति को अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय करने की आवश्यकता है। कई नाम तो ऐसे हैं जो बस सूची में हैं। देखा जाना चाहिए कि सदस्यों की जो भूमिका और उत्तरदायित्व तय किए गए हैं उसको लेकर वो कितने गंभीर हैं। 

फिल्मों से जुड़े आयोजनों और पुरस्कारों के बारे में मंत्रालय को गंभीरता से विचार करना होगा। इनको पुराने ढर्रे पर चलते हुए काफी समय हो गया है। बदलते वक्त के साथ चलना होगा। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। उसमें इतनी अधिक श्रेणियां और पुरस्कार हैं कि पुरस्कार वितरण समारोह काफी लंबा हो जाता है। इसको तर्कसंगत बनाना होगा। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में फीचर फिल्म और लेखन का पुरस्कार एक साथ कर देना चाहिए। गैर फीचर फिल्म और अन्य पुरस्कार को मुंबई अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल से जोड़ देना चाहिए क्योंकि वो फेस्टिवल गैर-फीचर फिल्मों का ही है। फिल्म समारोहों के नियमों पर पुनर्विचार करके उसको स्पष्ट करना होगा। एक पूर्णकालिक फेस्टिवल निदेशक की नियुक्ति करनी होगी ताकि वो पूरे वर्ष फेस्टिवल को लेकर कार्ययोजना बनाकर अमल कर सकें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अह्वान के अनुसार जहां जहां गुलामी के चिह्न हैं उनको हटाने का प्रयास सरकारी स्तर पर भी करना होगा।

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