जब भी उत्तर भारतीय खाने की बात आती है तो लोग दाल मखनी या बटर चिकन और तंदूरी रोटी की बात करने लगते हैं। उत्तर भारत के खान-पान परंपरा को देखें तो इसका दायरा दाल मखनी और बटर चिकन आदि से काफी विस्तृत है। उत्तर भारत की जो प्राचीन खान-पान परंपरा है उसका स्वाद मसालों के साथ साथ उनको बनाने की विधि पर निर्भर करता था। धीमी आंच पर खाना पकाने की पद्धति उसके स्वाद को कई गुणा बढ़ा देती है। धीमी आंच पर बनी दाल, लोहे की कड़ाही में बना मटन इसका स्वाद ही अलग होता है। दिल्ली के चाणक्यपुरी में सरदार पटेल मार्ग पर स्थित ताज पैलेस होटल में एक रेस्तत्रां है लोया। ताज पैलेस में घुसते ही ताज समूह की सिगनेचर स्टाइल की साज सज्जा। लेकिन जैसे ही आप लोया रेस्तत्रां में प्रवेश करते हैं तो वहां की साज सज्जा बिल्कुल ही अलग है। रेस्तत्रां के बीच में बार और उसके सामने और दोनों तरफ करीने से लगी मेज और कुर्सियां। वहां बैठकर आप न सिर्फ भोजन कर सकते हैं बल्कि बार टेंडर को कलात्मक तरीके से ड्रिंक्स तैयार करते और शेफ को किचन में खाना बनाते भी देख सकते हैं। इसके मेन्यू और डेकोरेशन में भी एक थीमैटिक जुड़ाव है। इस रेस्तरां की विशेषता है कि ये उत्तर भारत के अलग अलग इलाकों में प्रचलित खाने को उसी अंदाज में बनाते हैं जैसे कि वहां वर्षों पहले बनाई जाती थीं। उत्तर भारत का मतलब हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, जम्मू कश्मीर आदि। इनका पूरा ध्यान खाने के स्वाद और उसको बनाने के तरीके पर होता है।
इस रेस्तरां में कटहल और बैंगन का भर्ता बहुत स्वादिष्ट है। लोया के शेफ गगन सिक्का ने इसकी रेसिपी बताई। किस तरह से बैंगन को रोस्ट करके और फिर कटहल और मसाले के साथ मिक्स करके ये स्वादिष्ट डिश तैयार किया जाता है। सर्व करने के पहले थोड़ी देर तक इसको धीमी आंच पर चढ़ा कर रखते हैं। इसी तरह से हिमाचल की प्रसिद्ध दाल का स्वाद उसको बनाने के तरीके से खास हो जाता है। गगन सिक्का के अनुसार यहां के स्वाद में दादी और नानी के नुस्खों का खास ख्याल रखा जाता है। उसी तरह से मसालों को पीसकर वेज नानवेज में डाला जाता है जिस तरह से पुराने जमाने में डाला जाता था। वेज की तरह नानवेज पसंद करनेवालों के लिए भी कई तरह के स्वादिष्ट डिसेज उपलब्ध हैं। दम नल्ली का स्वाद भी नानवेज खानेवालों को बेहद पसंद आता है। धीमी आंच पर काफी देर तक पकाने के कारण मसालों का स्वाद टेंडर मटन के अंदर तक चला जाता है। इसी तरह से कांगड़ा खोड़िया गोश्त, मलेरकोटला कीमा छोले आदि भी क्षेत्र विशेष की रेसिपी के हिसाब से बनाकर परोसे जाते हैं। लोया के खाने में देसी खुशबू महसूस होती है। लोये के मेन्यू में स्वीट डिश के लिए मिट्ठा शब्द का प्रयोग किया गया है। यहां भी उत्तर भारत में प्रचलित मीठे को करीने से बनाकर पेश किया जाता है। अगर आप दूध जलेबी खाना चाहते हैं तो करीने से कांसे के ट्रे में तीन छोटे ग्लास में पिस्ता, छुहारा और केसर मिल्क और उनके ऊपर रखी गई एक एक जलेबी। इसी तरह से गुड़ की रोटी और खीर की डिश भी उन दिनों की याद दिलाते हैं जब गांवों में बच्चे रात को गुड़ की रोटी खाने की जिद करते थे और दादी मां उनको मीठी रोटी खिलाकर संतुष्ट कर देती थी। कई बार ये कहा जाता है कि फाइव स्टार का खाना काफी महंगा होता है लेकिन लोया में पांच छह हजार रु में दो लोग आराम से स्वादिष्ट भोजन कर सकते हैं।
1 comment:
बहुत अच्छा लिखते हो बंधु। भाव का प्रकटीकरण सर्वश्रेष्ठ है। long way to go
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