अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के कारण इस समय देश में राम और रामचरित के विभिन्न आयामों पर चर्चा हो रही है। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित रामकथा पर शोध हो रहे हैं। राम और रामकथा से जुड़ी अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित हो रही हैं। उनमें से चयनित पुस्तकों पर एक नजर
स्वामी मैथिलीशरण इस समय रामकथा के आधिकारिक विद्वान हैं। रामकथा के पात्रों को लेकर उनकी व्याख्या नितांत मौलिक होती है। रामकथा को केंद्र में रखकर उनकी पुस्तक आई है चरितार्थ। लेखक का मत है कि श्रीरामचरितमानस में जिस प्रकार की व्यापकता, निष्पक्षता और पूर्णता है वो अन्यत्र दुर्लभ है। वो कहते हैं कि भारतीय समाज और मानवीय संवेदनाओं का जिस प्रकार से तुलसीदास ने वर्णन किया है वो इस ग्रंथ को ऊंचाई प्रदान करता है। इस पुस्तक में श्रीरामचरितमानस के कई प्रसंग, संवाद और चरित्रों का स्वामी जी ने निरुपण किया है। पुस्तक चार खंडो में विभाजित है जिसमें अस्सी लेख हैं। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद पाठकों को श्रीरामचरितमानस को समझने की एक नई दृष्टि मिल सकती है।
पुस्तक- चरितार्थ, प्रकाशक- शिल्पायन बुक्स, नई दिल्ली, मूल्य रु 250
रामायण के पात्रों की काफी चर्चा होती है और विद्वान अलग अलग तरह से इन चरित्रों का ना केवल वर्णन करते हैं बल्कि उसपर अपने अध्ययन के अनुसार टिप्पणियां भी करते हैं। मूल ग्रंथ में वर्णित उनके आचार व्यवहार को लेकर अपनी राय भी प्रकट करते हैं। लेखक और स्तंभकार रामजी भाई तिवारी ने ब्रह्मा जी से लेकर लव-कुश तक रामायण के 108 पात्रों के बारे में विस्तार से लिखा है। इस पुस्तक का केंद्रीय भाव है कि रामराज्य की स्थापना में सभी पात्रों की अपनी भूमिका है जो किसी न किसी तरह से महत्वपूर्ण है। पुस्तक में रामजी भाई ने रामायण की इन कथाओं को इस प्रकार से लिखा है जिससे सामाजिक आदर्श स्थापित हो और पाठक प्रेरित हों।
पुस्तक- रामायण के पात्र, प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- रु 900
राम पहले तो कथा के माध्यम से आते हैं लेकिन कब कथा पीछे छूट जाती है और पाठक राम के चरित्र में रम जाते हैं पता ही नहीं चलता। रामकथा की व्यापकता और भारतीय समाज के मानस पर उसका इतना अधिक प्रभाव है कि वो सिर्फ कथा में नहीं बल्कि संगीत, नाटक, नृत्य, शिल्प और चित्रकला में भी अलग अलग रूपों में उपस्थित है। संस्कृति के जानकार और लेखक नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने बुंदेलखंड के विशेष संदर्भ में रामकथा रूपायन नाम की पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बुंदेलखंड के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में शैलचित्रों और भित्तिचित्रों से सूत्र उठाकर रामचरित की चित्रांकन परंपरा को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है। नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपनी पुस्तक के अंत में एक चित्रावली भी प्रस्तुत की है और उसका उपलब्ध विवरण भी पाठकों की सुविधा के लिए दिया गया है।
पुस्तक- रामकथा रूपायन, प्रकाशक- वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली, मूल्य रु 3000
श्रीरामचरित मानस और रामयण को आधार बनाकर तो कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं और कई पुस्तकों का प्रकाशन हो रहा है। लेकिन कुछ लोग रामकथा से जुड़ी अन्य सामग्रियों का संकलन कर पुस्तकाकार प्रकाशित करवा रहे हैं। इंडोलाजिस्ट ललित मिश्र ने श्रमपूर्वक मेवाड़ की रामायण के चित्रों को संकलित कर चित्रमय रामायण का संपादन किया है। चित्रों के साथ टिप्पणियां भी प्रकाशित हैं। मेवाड़ की रामायण को मेवाड़ राजघराने की तीन पीढियों ने तैयार करवाया। इसमें 450 चित्र हैं। लेखक का कहना है कि मेवाड़ के शासकों ने गीतगोविंद, रामायण और अन्य ग्रंथों के चित्रांकन का उपक्रम उस समय भारत के अन्य राजाओं के लिए एक आदर्श बना। इस पुस्तक के चित्र और टिप्पणियां रुचिकर हैं। ये पुस्तक अयोध्या शोध संस्थान ने तैयार करवाई है।
पुस्तक- चित्रमय रामायण, प्रकाशक- प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली- मूल्य- रु 2200
मनोज सिंह ने आर्यावर्त का इतिहास लिखने के लिए कथात्मक शैली अपनाई। जब उन्होंने मैं आर्यपुत्र हूं लिखी तो उसको सतयुग की प्रामाणिक कथा बताया था। इसी कड़ी में उन्होंने त्रेतायुग की कथा मैं रामवंशी हूं लिखा है। लेखक का मानना है कि हर काल में रामकथा लिखी गई और उन सभी रामकथाओं पर तत्कालीन समय और समाज का प्रभाव भी दिखता है। इस पुस्तक में रामकथा के अलावा भी अनेक कथाएं चलती हैं जो पुस्तक को पठनीय बना देती हैं। लेखक ने भी अपनी इस पुस्तक क सात कांडों, पूर्व कांड से उत्तर कांड तक में विभाजित किया है। पौराणिक कथा कहने की यह प्रविधि पाठकों को श्रीराम के जीवन संस्कार से रोचक अंदाज में परिचिच तकवाती है।
पुस्तक- मैं रामवंशी हूं, प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य – रु 500