Translate

Saturday, December 16, 2023

बढ़ती और ढ़लती उम्र का गणित


मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद भारतीय जनता पार्टी ने लंबे विमर्श और मंथन के बाद तीनों प्रदेशों में अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व को कमान सौंपी। मध्यप्रदेश में अट्ठावन वर्षीय मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसी तरह से राजस्थान में छप्पन वर्ष के भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री और बावन वर्षीया दीया कुमारी और चौव्वन वर्षीय प्रेमचंद बैरवा को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया। छत्तीसगढ़ में भी उनसठ साल के विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री और पचपन वर्षीय अरुण साव और पचास वर्षीय विजय शर्मा को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया। जबकि इन राज्यों में शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह जैसे दिग्गज सक्रिय थे। राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा होने लगी कि भारतीय जनता पार्टी ने दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को तैयार करना आरंभ कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी पूर्व में भी इस तरह के प्रयोग करती रही है। 2014 में जब नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अड़तीस साल की स्मृति इरानी को कैबिनेट मंत्री बनाया और चालीस वर्षीय अनुराग ठाकुर को मंत्रिमंडल में शामिल किया। अन्य दलों में भी ये देखने को मिलता रहा है। कांग्रेस पार्टी ने भी हिमाचल प्रदेश के विधानसभा में जीत दर्ज की तो साठ वर्ष से कम आयु के सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री बनाया। अभी तेलांगना में भी चौव्वन वर्ष के रेवंत रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया गया। यह अलग बात है कि कांग्रेस पार्टी में जब कई वर्षों के बाद पार्टी अघद्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए तो अस्सी वर्ष से अधिक आयु के मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी की पसंद बने । 

राजनीति में तो ऐसा देखने को मिलता है कि पार्टियां अपने युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने के लिए अपेक्षाकृत अधिक उम्र के नेताओं को अलग तरह की जिम्मेदारियां देती हैं। अधिक उम्र होने पर या राजनीति  मुख्यधारा से कट जाने के बाद नेताओं को राज्यपाल बनाने की परंपरा रही है। या नौकरशाह जब सेवानिवृत्त हो जाते हैं तो उनको भी राज्यपाल जैसे पद पर नियुक्त किया जाता रहा है। कई बार चुनाव हारने के बाद भी नेताओं को दरकिनार कर दिया जाता है या संगठन में भेजकर उनकी प्रतिभा का उपयोग किया जाता है। राजनीति के सामने अगर फिल्मी दुनिया को देखें तो वहां बढ़ती उम्र के बावजूद सिनेमा में काम करने की ललक जाती नहीं है। चेहरे पर स्पष्ट रूप से उम्र दिखने, चाल-ढाल, हाव-भाव में उम्र के हावी होने और दर्शकों के नकार के बावजूद रूपहले पर्दे पर बने रहने की कोशिशें जारी रहती हैं। अधिक पीछे नहीं जाते हुए अगर हाल के नायकों को देखें तो भी इस तरह की प्रवृत्ति नजर आती है। अभिनेता आमिर खान लगभग 59 वर्ष के हो रहे हैं। उनकी आखिरी हिट फिल्म 2016 में आई थी दंगल। उसके बाद उनकी दो महात्वाकांक्षी फिल्मों लाल सिंह चड्ढा और ठग्स आफ हिंदोस्तान को दर्शकों ने बुरी तरह से नकार दिया, लेकिन अब भी इस तरह की खबरें आती रहती हैं कि उनकी कोई नई फिल्म आनेवाली है। फिल्म लाल सिंह चड्ढ़ा में उन्होंने अपने से करीब पंद्रह वर्ष छोटी अभिनेत्री के साथ काम किया तो ठग्स आफ हिंदोस्तान में करीब बीस वर्ष छोटी अभिनेत्री के साथ। सात वर्षों से कोई फिल्म हिट नहीं हो रही, उम्र का असर दिख रहा है लेकिन फिल्मों में बने रहने की चाहत है। 

दूसरा उदाहरण शाहरुख खान का है। उनकी हालिया दो फिल्में अवश्य हिट रही हैं लेकिन उसके पहले उनकी भी फिल्में नहीं चल पा रही थीं। उनकी उम्र भी आमिर खान जितनी ही है। तीसरे खान सलमान खान हैं। ये शाहरुख खान से एक वर्ष छोटे हैं लेकिन सत्तावन वर्षीय अधेड़ अभिनेता की फिल्में भी उतनी नहीं चल पा रही हैं जितनी युवावस्था में चला करती थी। दर्शकों में सलमान खान को लेकर जो दीवानगी देखने को मिलती थी वो इन दिनों नहीं दिख रही है। भारत और ट्यूबलाइट जैसी फिल्में दर्शकों को नहीं भाईं। बावजूद इसके लगातार फिल्में कर रहे हैं। एक और इसी उम्र के अभिनेता हैं अक्षय कुमार। उनकी एक के बाद एक छह फिल्में लगातार पिटीं लेकिन अब भी उनके पास फिल्मों की कतार लगी हुई है। बच्चन पांडे, सम्राट पृथ्वीराज, रक्षाबंधन, रामसेतु, सेल्फी, मिशन रानीगंज को दर्शकों ने पसंद नहीं किया। बावजूद इसके अक्षय कुमार युवा अभिनेता बनने की होड़ में शामिल हैं। अपनी से आधी उम्र की अभिनेत्री मानुषी के साथ महात्वाकांक्षी फिल्म सम्राट पृथवीराज को दर्शकों ने नकारा। बच्चन पांडे से लेकर मिशन रानीगंज तक सिर्फ एक फिल्म ओमएमजी-2 चली लेकिन ये पंकज त्रिपाठी की फिल्म मानी जाएगी। अक्षय कुमार तो इसमें बहुत कम देर के लिए हैं। बावजूद इसके अगले वर्ष अक्षय की बतौर हीरे पांच नई फिल्मों की चर्चा है। अक्षय कुमार कहते भी हैं कि वो एक फिल्म के लिए 40 दिन का ही समय निकाल सकते हैं।  

राजनीति में जब नेतृत्व कमजोर होता है और वो पीढ़ीगत बदलाव करना चाहता है तो कई बार विद्रोह के स्वर सुनाई पड़ते हैं। लेकिन जब नेतृत्व सबल होता है तो पीढ़ीगत बदलाव सहज दिखता है। जैसा कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। फिल्मों में पीढ़ीगत बदलाव तभी दिखता है जब अभिनेता को निरंतर नकार का सामना करना पड़ता है। फिल्मों में भूमिका में बदलाव करके प्रासंगिक बना रहा जा सकता है। इसके सबसे बड़े उदाहरण अमिताभ बच्चन हैं जिन्होंने अपनी भूमिकाओं के चयन में अपनी उम्र का ख्याल रखा और तब जाकर दर्शकों ने उनको पसंद किया। बढ़ती उम्र के साथ वो लाल बादशाह और जादूगर जैसी फिल्में करने लगे थे तो एक समय ऐसा लगने लगा था कि बतैर हीरो उनकी पारी समाप्त हो गई है। राजेश खन्ना ने ढ़लती उम्र के साथ जीना नहीं सीखा। असफलता का सामना नहीं कर पाए। खुद को नशे के दलदल मे डुबो लिया। अगले वर्ष अगर अक्षय कुमार नहीं संभल पाए और उनकी फिल्में नहीं चलीं तो उनके सामने भी यही संकट खड़ा हो जाएगा। आमिर खान के सामने भी यही चुनौती है। शाहरुख की फिल्म डंकी अगर नहीं चल पाई तो पिछली दो फिल्मों की सफलता के धुलने का खतरा है। 

राजनीति और फिल्म दोनों में बढ़ती और ढ़लती उम्र का गणित और उसके परिणाम का आकलन जरा कठिन होता है। एक जगह कुर्सी से चिपके रहने की ख्वाहिश बनी रहती है,सत्ता सुख भोगने की चाहत होती है तो दूसरी जगह रूपहले पर्द पर मेकअप आदि के सहारे नायक बने रहने की जुगत। अब तो तकनीक के सहारे चेहरे की त्वचा आदि को भी ठीक किया जा सकता है। फिल्मी अभिनेता इस तकनीक का उपयोग करके और अपने से आधी उम्र की नायिकाओ के साथ काम करके जवान दिखना चाहते हैं। उम्र बढ़ना प्राकृतिक है। बढ़ती उम्र के साथ अपनी भूमिका में बदलाव करना और उसको यथार्थवादी बनाना व्यक्ति पर निर्भर करता है। चाहे नेता हो या अभिनेता जो इसको जितनी जल्दी समझ लेता है उसकी जिंदगी बहुत शांतिपूर्व चलती है। अभिनेत्रियों में इसका उदाहरण काजल हैं। जब वो अपने करियर के शीर्ष पर थीं तो उन्होंने विवाह करके घर बसा लिया। विवाह के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन किया और अब अपनी उम्र के हिसाब से भूमिकाओं का चयन करके फिर से मनोरंजन की दुनिया में वापस आई हैं। हमारे ग्रंथों में भी कहा गया है कि जो समय को पहचान लेता है और उसके हिसाब से अपने को ढाल लेता है वो निरंतर सफल होता है। समय और परिस्थिति के हिसाब से अपने को बदल लेना ही उचित होता है। अगर कोई समय और परिस्थिति के अनुसार नहीं बदला पाता है तो समय उसको बदल देता है। समाज, राजनीति या सिनेमा में समय से टकराकर कोई आगे बढ़ सका हो, ऐसा उदाहरण याद नहीं पड़ता।  


No comments: