इंटरनेट मीडिया के इस दौर में रील्स की लोकप्रियता बढ़ रही है। कई बार छोटे छोटे वीडियो से महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जाती हैं। पिछले दिनों इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर वीडियो देख रहा था तो राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के फेसबुक पेज पर इसी वर्ष 23 जुलाई को पोस्ट किया गया एक वीडियो पर रुक गया। ये संसद में प्रश्न काल का वीडियो है। इसमें ओडिशा से भारतीय जनता पार्टी की सांसद अपराजिता सारंगी ने नेशनल लाइब्रेरी मिशन की प्रगति जाननी चाही थी। अपराजिता सारंगी ने प्रश्न की भूमिका में ये कहा था कि पुस्तकालय किसी भी देश में ज्ञान तक पहुंचने की प्रक्रिया का एक अंग है। फरवरी 2014 में शुरु किए गए नेशनल लाइब्रेरी मिशन का उद्देश्य पूरे भारत में ज्ञान का प्रसार करना था। 2014 से लेकर अबतक इस प्रक्रिया में क्या किया गया और जनता को इसके बारे में बताने के क्या क्या उपक्रम किए गए। उत्तर संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने दिया क्योंकि ये उनके ही मंत्रालय के अंतर्गत आता है। उन्होंने बताया कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार पुस्तकालय राज्यों का विषय है। इस कारण से लोगों को इसके साथ जोड़ना, जनजागरण करना आदि की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। केंद्र सरकार राष्ट्रीय पुस्तक मिशन के द्वारा राज्य सरकारों को धनराशि और संसाधन मुहैया कराती है। इस क्रम में उन्होंने सदन को जानकारी दी कि राजा राममोहन लाइब्रेरी फाउंडेशन के माध्यम से राज्य सरकारें सहायता प्राप्त कर सकती हैं।
मंत्री जी ने जब संसद में राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन का नाम लिया तो लगा कि इस संस्थान के बारे में पता करना चाहिए। यह संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक स्वायत्तशासी संस्था है। देशभर में सार्वजनिक पुस्तकालयों को सहयोग करने और उसको मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी है। इस संस्था का प्रमुख कार्य देशभर में पुस्तकालय संबंधित गतिविधियों को मजबूत करना तो है। इस संस्था के अध्यक्ष संस्कृति मंत्री या उसके द्वारा नामित व्यक्ति होते हैं। वर्तमान संस्कृति मंत्री इसके अध्यक्ष हैं। इसके महानिदेशक का अतिरिक्त प्रभार प्रो बी वी शर्मा के पास है। फाउंडेशन के नियमों के मुताबिक संस्कृति मंत्री किसी को इस संस्था का अध्यक्ष नामित कर सकते हैं। कंचन गुप्ता जी 2021 तक इसके अध्यक्ष रहे। उनके पद त्यागने के बाद संस्कृति मंत्री ने किसी भी व्यक्ति को नामित नहीं किया। यह संस्था केंद्रीय स्तर पर पुस्तकों की खरीद करती है। राज्य सरकारों को भी पुस्तकों की खरीद के लिए अनुदान देती है। अगर राज्य सरकार 25 लाख पुस्तकों की खरीद के लिए देती है तो फाउंडेशन भी 25 लाख की राशि उस राज्य सरकार को देती है। लंबे समय से ये संस्था पुस्तकों की खरीद और राज्य सरकारों को अनुदान देने तक सिमट गई। अब तो पुस्तकों की खरीद भी नहीं हो पा रही है। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक एक अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2024 तक पुस्तक चयन समिति की केवल एक बैठक हो सकी। खरीदी गई पुस्तकों की जो सूची वेबसाइट पर है उसको देखकर ही अनुमान हो जाता है कि खरीद में कुछ न कुछ गड़बड़ है। फाउंडेशन की समिति की आखिरी बैठक भी 24 नवंबर 2022 को हुई थी। फाउंडेशन के नियमों के अनुसार वर्ष में इस समिति की एक बैठक होना अनिवार्य है। पिछले दो वर्षों से बैठक का ना होना संस्थान के प्रति संस्कृति मंत्रालय की उदासीनता को दिखाता है। संस्कृति मंत्रालय के क्रियाकलापों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है। इस वर्ष मार्च में फाउंडेशन के नए सदस्यों बनाए जा चुके हैं। छह महीने बीत जाने के बाद भी अबतक इसकी कोई बैठक नहीं हो पाई है। न ही संस्कृति मंत्री ने किसी को अध्यक्ष नामित किया जो उनकी अनुपस्थिति में बैठक कर सके।
राजा राममोहन राय लाइब्रेकी फाउंडेशन में पुस्तकों की खरीद में भ्रष्टाचार की कई कहानियां साहित्य जगत में गूंजती रहती हैं। कई बार तो ऐसा सुनने को मिलता है कि ‘हरियाणा में कैसे करें खेती’ जैसी पुस्तक मणिपुर या सिक्किम के पुस्तकालयों के लिए खरीद ली गईं। हिंदी में एक चुटकुला चलता है। अगर कोई पुस्तक महंगी है तो लोग फटाक से पूछते हैं कि क्या ये राजा राममोहन राय लाइब्रेरी संस्करण है। जो पुस्तक बाजार में या विभिन्न ईकामर्स साइट्स पर चार सौ रुपए की है वो वहां आठ सौ रुपए की खरीदने का आरोप भी संस्था पर लगता रहता है। बड़ी संख्या में चर्च लिटरेचर की खरीद की खबरें भी आईं थीं। हिंदी प्रकाशन और साहित्य जगत में माना जाता है कि राजा राम मोहनराय लाइब्रेरी फाउंडेशन भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। इस संस्थान को अगर बचाना है तो इसके क्रियाकलापों पर नए सिरे से विचार करना होगा। इसके नियमों में बदलाव करना होगा। अगर गंभीरता से देश में पुस्तकालय अभियान को चलाना है तो फाउंडेशन समिति की नियमित बैठक करनी होगी। अन्यथा करदाताओं की गाढ़ी कमाई का पैसा बर्बाद होता रहेगा।
पुस्तकालयों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले दस वर्षों से निरंतर बोल रहे हैं। याद पड़ता है कि किसी समारोह में तो उन्होंने घर में पूजा स्थान और पुस्तकालय दोनों की अनिवार्यता पर बल दिया था। उसके बाद भी कई अन्य अवसरों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पुस्तकों और पुस्तकालयों की महत्ता पर बोलते रहे हैं। जब जी 20 शिखबर सम्मेलन होने वाला था तो उस दौर में पुडुचेरी में जी 20 लाइब्रेरी समिट हुआ था। उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुस्तकालयों को मानवता का सबसे अच्छा मित्र बताया था। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक रूप से पुस्तकालय वो स्थान हैं जहां विचारों का आदान-प्रदान होता है और नए विचार जन्म लेते हैं। अपने उस भाषण में प्रधानमंत्री ने पुस्तकालयों को नई तकनीक से जोड़ने पर बल दिया था लेकिन पुस्तकों के प्रति युवाओं के मन में लगाव को बढ़ाने की कोशिश करने की अपील भी की थी। राजा राममोहन लाइब्रेरी फाउंडेशन की हालत को देखकर इस बात का अनुमान होता है कि वो संस्कृति मंत्रालय की प्राथमिकता में नहीं है। इस स्तंभ में पहले भी इस बात की चर्चा की जा चुकी है कि देश में पुस्तकालयों को लेकर एक समग्र नीति बने। पुस्तकालयों को इस तरह से बनाया जाए कि उसमें बैठकर युवा पढ़ सकें। दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर में पानी घुस जाने के कारण जब तीन छात्रों की दुखद मौत हो गई थी तब रीडिंग रूम की काफी चर्चा हुई थी। सिर्फ महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों में भी रीडिंग रूम की आवश्यकता है। वैसे अध्ययन कक्ष हों जहां कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा हो। पढ़नेवाले छात्र अपने अध्ययन के साथ साथ जब मन चाहे तो अपनी मनपसंद पुस्तकें भी पढ़ सकें। राजा रामोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन को इस तरह के पुस्तकालयों को तैयार करने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। वो राज्य सरकारों से समन्वय करके इसको तैयार करे। व्यवस्था के सुचारू रूप से चलाने के लिए उन पुस्तकालयों के खाते में सीधे पैसे भेजे जाएं। इससे सिस्टम में पारदर्शिता आएगी। लेकिन सबसे अधिक आवश्यक है कि मंत्रालय के स्तर पर एक सोच बने जो पुस्तकालयों के विकास के लिए गंभीरता से काम करे। पुस्तकों की खरीद से लेकर अनुदान तक में पारदर्शिता स्थापित करने के मानदंड बनें। अन्यथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन को जमीन पर उतारना कठिन होगा।