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Sunday, August 18, 2024

कितने आदमी थे...


शोले जो भड़क न सका। करीब चार दशक पहले पढ़ा ये शीर्षक दिमाग पर इस कदर अंकित हो गया कि वर्षों बाद आज भी स्मृति में बना हुआ है। जब भी फिल्म शोले देखता हूं या इससे जुड़ी कोई चर्चा होती है तो ये शीर्षक कौंध जाता है। स्कूल में था, फिल्मों में रुचि थी। उसी समय फिल्म शोले पर एक समीक्षानुमा लेख देखा था। उसमें ये बताया गया था कि शोले फिल्म सफल नहीं हो सकी। बाद में शोले ने सफलता का इतिहास रच दिया। 15 अगस्त 1975 को शोले फिल्म के प्रदर्शन के 50 वर्ष पूरे हुए। एक बार फिर से इस शीर्षक की याद आई। इसी समय पता चला कि सलीम खान और जावेद अख्तर एक बार फिर से साथ आ रहे हैं। सलीम-जावेद की जोड़ी पर प्राइम वीडियो पर तीन पार्ट में एक डाक्यूमेंट्री आ रही है। ये सलीम जावेद की जोड़ी ही थी जिसने हिंदी सिनेमा के एंग्री यंगमैन को गढ़ा था। शोले फिल्म की कहानी और पटकथा सलीम- जावेद की है। जिसके प्रदर्शन पर लिखा गया था कि शोले जो भड़क न सका वो शोले ऐसा भड़का कि मुंबई (तब बांबे) के मिनर्वा सिनेमा हाल में लगातार पांच वर्षों तक दिखाई जाती रही। उस दौरे को जिसने देखा है उनका कहना है कि दो साल तो मिनर्वा के बाहर तक टिकट लेनेवालों की लाइनें लगा करती थी। इतना ही नहीं दिल्ली के प्लाजा सिनेमा में फिल्म देखने के लिए दूर दूर से लोग थे। पंजाब के दर्शकों को दिल्ली लाने के लिए चलनेवाली बस का नाम ही शोले एक्सप्रेस रख दिया गया था। 

यह बात सही है कि शोले फिल्म ने अपने प्रदर्शन के पहले सप्ताह में अच्छा बिजनेस नहीं किया था। रिव्यू भी अच्छे नहीं थे। तब फिल्मों के कारोबार के बारे में बताने वाली फिल्म पत्रिका द ट्रेड गाइड में सलीम-जावेद ने अपने नाम से एक विज्ञापन देकर भविष्यवाणी की थी। उन्होंने विज्ञापन में दावा किया था कि फिल्म हर वितरण के लिहाज से बनाए गए हर क्षेत्र में ये फिल्म एक करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करेगी। ये इनका आत्मविश्वास था। इसी तरह से इन दोनों से जुड़ा एक और रोचक किस्सा है। एक फिल्म प्रदर्शित होनेवाली थी। फिल्म के पटकथा लेखक सलीम-जावेद ने निर्माताओं से कहा कि पोस्टर पर उनका भी नाम होना चाहिए। निर्माता नहीं माने। पूरे मुंबई में फिल्म के पोस्टर लग गए। सलीम-जावेद ने तय किया शहर के हर पोस्टर पर अपना नाम लिखवाएंगे। रातों रात उन्होंने कुछ पेंटर्स से संपर्क किया। अगले दिन अधिकतर पोस्टर्स पर सलीम जावेद का नाम लिखा था। परिणाम ये हुआ कि भविष्य में निर्माता पोस्टर पर पटकथा लेखक के तौर पर इस जोड़ी का नाम लिखने लगे। सलीम-जावेद की जोड़ी ने जिस तरह के संवाद लिखे वो भी बेहद लोकप्रिय हुए थे। चाहे फिल्म दीवार में अमिताभ और शशि कपूर के बीच का संवाद- आज मेरे पास बिल्डिंग है,प्रापर्टी है, बैंक बैलेंस है, बंगला है गाड़ी है तुम्हारे पास क्या है? उत्तर मिलता है- मेरे पास मां है। या फिल्म शोले में अमिताभ का ये पूछना कि तुम्हारा नाम क्या है बसंती अथवा गब्बर का ये कहना कि अरे ओ साभां, कितने आदमी थे। शोले के तो कई संवाद बेहद लोकप्रिय हुए, अब भी गाहे बगाहे लोग दोहराते हैं। संवाद के कैसेट तक बिके थे। सलीम-जावेद कि संवाद की एक और विशेषता है कि वो अश्लील या द्विअर्थी नहीं होते हैं। शोले में जब गब्बर बसंती को देखकर कहता है कि- अरे ओ साभां, ये रामगढ़ वाले अपनी बेटियों को कौन सी चक्की का आटा खिलाते हैं रे, जरा दारी के हाथ पांव देख, बहुत करारे हैं। इस संवाद पर तालियां बजी थीं किसी को गुस्सा नहीं आया था। सलीम जावेद एक कथा में कई उपकथा यानि कहानी के भीतर कहानी की कला में पारंगत हैं। शोले की कथा में कई गैप हैं लेकिन उन गैप्स को उपकथाएं भर देती हैं और दर्शक मनोरंजन की सपनीली दुनिया में चला जाता है। 


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