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Saturday, May 24, 2025

पलामू से फ्रांस तक


कान फिल्म फेस्टिवल और प्रख्यात फिल्मकार सत्यजित राय का विशेष रिश्ता रहा है। फेस्टिवल में उपस्थित दर्शक राय की फिल्मों को दीवानगी की हद तक पसंद करते हैं। सत्यजित राय की 1970 में प्रदर्शित फिल्म अरण्येर दिन रात्रि को तकनीक का उपयोग कर प्रदर्शन योग्य बनाया गया। इस वर्ष जब रिस्टोर्ड फिल्म का कान फिल्म फेस्टिवल के दौरान प्रदर्शन किया गया तो दुनिया भर के फिल्मों से जुड़े दिग्गज इसे देखने पहुंचे। करीब 55 वर्ष पूर्व सत्यजित राय ने ये फिल्म बनाई थी। ये फिल्म बांग्ला के मशहूर लेखक सुनील गंगोपाध्याय के इसी नाम से प्रकाशित उपन्यास पर आधारित है। इस फिल्म के बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। इस फिल्म के कलाकारों में से किसी एक को कभी सुना था कि इसकी शूटिंग बिहार में हुई थी। पता करने पर मालूम हुआ कि शूटिंग अविभाजित बिहार के पलामू क्षेत्र में हुई थी। जब सत्यजित राय ने सुनील गंगोपाध्याय के 120 पेज के इस उपन्यास को पढ़ा तो काफी प्रभावित हुए। उपन्यास की कहानी पलामू के जंगल में ही सेट है। सत्यजित राय रेकी के लिए पलामू पहुंचे। काफी घूमने के बाद उन्होंने केचकी और कोयल नदी के आसपास के जंगल को अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए चुना। 

झारखंड जनसंपर्क विभाग के अधिकारी आनंद के मुताबिक 1969 में अरणेयर दिन रात्रि की शूटिंग पलामू टाइगर रिजर्व के केचकी, गारू, छिपादोहर और बेतला में हुई थी। एक सीन की शूटिंग चंदवा में भी की गई थी। फिल्म की शूटिंग के लिए सत्यजित राय पूरी टीम के साथ पलामू पहुंचे थे। अभिनेत्री शर्मिला टैगोर, सिमी ग्रेवाल, अभिनेता सौमित्रो चटर्जी, टीनू आनंद, गौतम घोष, सोमित भांजा उनके साथ थे। सभी करीब तीन महीने तक पलामू में रहे थे। दरअसल फिल्म की कहानी चार दोस्तों के के इर्द गिर्द घूमती है जो शहरी जिंदगी से ऊबकर जंगल पहुंचते हैं। वहीं उनकी मुलाकात जंगल में रहनेवाली महिलाओं से होती है। इन्हीं पात्रों के सहारे कहानी आगे बढ़ती है। सत्यजित राय ने जिस तरह से शूटिंग में प्राकृतिक दृश्यों और लाइट्स का उपयोग किया है वो देखने लायक है। आज की अभिनेत्रियों के लिए मुंबई जैसे महानगरों में शूटिंग के दौरान वैनिटी वैन खड़ी होती हैं। वो एक-दो सीन शूट करके आराम या अन्य कार्य करती हैं। कल्पना करिए 1969 में पलामू के जंगलों में शूटिंग के दौरान शर्मिला टैगोर और सिमी को कितनी परेशानी  हुई होगी। न तो वाशरूम की सुविधा और ना ही शूटिंग के अंतराल के दौरान आराम की व्यवस्था। सूरज की रोशन  के हिसाब से शूटिंग करनी होती थी। सत्यजित राय और फिल्म के कलाकार केचकी और कोयल नदी के संगम के पास बने डाक बंगला में रहते थे। इस डाकबंगला को माओवादियों ने उड़ा दिया था। अब फिर से उसका पुनर्निमाण कर रहरने योगय् बनाया गया है। 


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