Translate

Thursday, July 4, 2013

एनकाउंटर पर सियासत

इशरत जहां एनकाउंटर केस की जांच नौ साल तक कई एजेंसियों अदालतों के चक्कर काटते हुए दो हजार ग्यारह में सीबीआई तक पहुंची थी । इस मामले की जांच कर रही स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम की जांच में इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया जा चुका था । गुजरात हाईकोर्ट ने आरोपी पुलिसवालों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था, साथ ही इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने का भी हुक्म दिया था। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने तकरीबन डेढ साल की जांच के बाद अपनी पहली चार्जशीट अहमदाबाद की विशेष अदालत में दायर की । इस चार्जशीट में गुजरात पुलिस के कई आला पुलिसवालों को हत्या, गैरकानूनी हिरासत आदि आदि धाराओं में आरोपित किया गया है । चार्जशीट में गुजरात पुलिस के अफसरों के खिलाफ बेहद संगीन इल्जाम लगाए गए हैं । इन पर इशरत और उनके साथियों को बेहोश करके मारने और उसके बाद उनके शवों के पास आईबी के मुहैया कराए गए हथियार रखने की बात कही गई है । सीबीआई ने इस फर्जी मुठभेड़ में देश की शीर्ष खुफिया एजेंसी आईबी के अफसर की संलिप्पता की ओर भी संकेत किया है लेकिन साफ साफ कुछ भी नहीं कहा गया है । सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि आईबी के उस वक्त के ज्वाइंट डायरेक्टर राजेन्द्र कुमार और तीन अन्य अफसरों के खिलाफ और जांच की जरूरत है । यहां यह भी सवाल उठता है कि सीबीआई के सामने क्या विवशता थी कि वो बगैर जांच पूरी किए पहली चार्जशीट दायर कर दे और फिर अदालत में और जांच की जरूरत बताकर सप्लीमेंट्री चार्जशीट का रास्ता खुला रखे । क्या सीबीआई 31 जुलाई तक आईबी के स्पेशल डायरेक्टर राजेन्द्र कुमार के रिटायर होने का इंतजार कर रही है, ताकि उनको भी दूसरी चार्जशीट में आरोपी बनाया जा सके । सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों से जुड़े रहे लोगों का मानना है कि इस मामले में सीबीआई एक गलत ट्रेंड की शुरूआत कर रही है । जिस फोन कॉल डिटेल और आईबी अधिकारियों की पुलिस और नेताओं से मुलाकात जैसे फिल्मी सूबतों को सीबीआई आधार बना रही है वो साफ तौर किसी दबाव की ओर इशारा कर रहे हैं । सीबीआई इस बात को बाखूबी जानती है कि खुफिया एजेंसियों में यह बेहद सामान्य बात होती है कि उसके किसी भी यूनिट का हेड स्थानीय पुलिस अधिकारियों से लागातर मिलता जुलता रहता है । खुफिया अधिकारियों की राजनेताओं के साथ भी मुलाकात सामान्य और उनके रोजमर्रा के कामों में शुमार होता है । आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दे अगर बेहद अहम हैं और उसपर फौरन फैसले लेने की आवश्यकता होती है तो मुलाकातों और फोन कॉल्स की संख्या भी बढ़ जाती है । लेकिन इस केस में सीबीआई इसको साजिश का हिस्सा मानकर बतौर सबूत पेश कर रही है ।  
दूसरी अहम बात- सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि फर्जी मुठभेड़ के पहले मारे गए सभी लोगों को अलग अलग जगहों से उठाया गया था । मुठभेड़ में मार गिराने के पहले उनको गैरकानूनी तरीके से अलग अलग जगहों पर हिरासत में रखा गया था । सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक पुलिस ने इशरत जहां और जावेद शेख को ग्यारह जून को उठाया था और उनको एनकाउंटर करने के पहले चार दिनों तक एक फॉर्म हाउस में रखा था । यहां सवाल यह उठता है कि अगर इशरत जहां को पुलिस ने चार दिन पहले गैरकानूनी हिरासत में ले लिया था तो क्या इशरत के परिवारवालों ने मुंबई में गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट दर्ज करवाई थी । सीबीआई को इस बिंदु पर जांच करके अपनी चार्जशीट में स्थिति साफ करनी चाहिए थी । इससे अदालत में सीबीआई का पक्ष और मजबूत होता और आरोपियों को सजा दिलवाने में आसानी होती । सीबीआई की चार्जशीट इस बात पर भी खामोश है कि इशरत जहां आतंकवादी थी या नहीं । यहां यह भी अहम है कि इशरत जहां के एनकाउंटर के बाद लश्कर की बेवसाइट और उसके मुखपत्र ख्वाजा टाइम्स में उसको शहीद बताकर महिमामंडन किया गया था । इसके अलावा आतंकवादी हेडली ने भी इशरत के आतंकवादियों से संबंध के बारे में एनआईए को जानकारी दी थी । सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में इन बातों को नजरअंदाज किया है । इन बातों को नजरअंदाज करने की वजहों का खुलासा होना चाहिए ताकि सीबीआई की जांच पर उठ रहे सवालों को संतुष्ट किया जा सके ।  सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में यह तो माना है कि पाकिस्तानी नागरिक जीशान और अहमद लश्कर के आतंकवादी थे लेकिन इस बात से इंकार किया है कि वो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की मंशा से अहमदाबाद आए थे । जब आप किसी बात को काटते हैं तो उसके समर्थन में आपके पास तर्क होने चाहिए लेकिन सीबीआई से पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि लश्कर के दोनों आतंकवादी अहमदाबाद में क्या कर रहे थे। वो किस मंशा से भारत आए थे और गुजरात तक पहुंच गए थे ।
दरअसल, ऐसा लगता है कि, इस एनकाउंटर के बहाने से एक सियासी खेल खेला जा रहा है । अश्विनी कुमार के इस्तीफे के बाद जब कपिल सिब्बल ने देश के कानून मंत्री का पदभार संभाला तभी इस बात के संकेत दे दिए थे कि इशरत मामले में पत्रकारों को एक बडा़ मसाला हाथ लगनेवाला है । उसके बाद से ही सीबीआई की तरफ से इस मामले में आईबी अफसरों की संलिप्पता की बात लगातार लीक की जाने लगी, अखबारों में खबरे छपने लगी । गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके खास सिपहसालार अमित शाह का नाम भी उछाला जाने लगा । उधर राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानि एनआईए पर भी आरोप लगा कि उसने इशरत के बारे में आतंकवादी हेडली के बयान को नजरअंदाज कर दिया है । सियासत के इस खेल ने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियों में बेवजह की खटास पैदा कर दी । सिसायी फायदे के लिए जिस तरह से सीबीआई के इस्तेमाल के आरोप लग रहे हैं वह देश की सुरक्षा के लिए बेहतर संकेत नहीं है । जिस तरह से आईबी के अधिकारियों को टारगेट किया जा रहा है उससे पूरी एजेंसी की कार्यक्षमता पर असर पड़ सकता है । खुफिया एजेंसियों का काम राज्य सरकारों और पुलिस को आतंकवादी खतरों से आगाह करते हुए इनपुट देने का होता है । अगर आतंकवाद या आतंकवादी वारदातों के इनपुट मात्र के आधार पर किसी को आरोपी बनाया जाने लगेगा तो आईबी के अफसर इनपुट देने में हिचकने लगेंगे । और तब उस स्थिति की सिर्फ कल्पना की जा सकती है । सीबीआई की चार्जशीट के बहाने से अब सियासत का खेल खेला जानेवाला है। एजेंसियों का इस्तेमाल होनेवाला है । जैसे 2014 के लोकसभा चुनाव नजदीक आएंगें वैसे वैसे हवाई आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगनेवाली है । लेकिन आरोपों के इन घटाटोप के बीच देश के सियासतदानों को बेहद गंभीरता से इस बात पर विचार करना होगा कि सत्ता की राजनीति में वो सुरक्षा एजेंसियों का किस हद तक इस्तेमाल करें । राजनीति में सीबीआई के इस्तेमाल का आरोप इस देश की हर पार्टी पर लंबे सनमय से लगता रहा है । सुप्रीम कोर्ट तक इस एजेंसी के बारे में बेहद सख्त टिप्पणी कर चुकी है । लेकिन जिस तरह से इस बार देश की दो एजेंसियों को राजनीति में घसीटा जा रहा है वह भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है । आज बीजेपी सीबीआई के इस्तेमाल का आरोप लगा रही है लेकिन जब उनका शासन होता है तो उनपर भी यही आरोप लगते हैं । जरूरत इस बात कि एक ऐसा सिस्टम बने जिसमें जांच एजेंसियां और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियों का इस्तेमाल राजनीतिज्ञ अपने फायदे के लिए नहीं कर सकें । अगर ऐसा होता है तो इशरत जहां एनकाउंटर जैसे केस नहीं होंगे ।  

 

No comments: