पिछले साल जब विदेश मंत्रालय से विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान दक्षिण अफ्रीका जाने
का न्योता मिला था तो इस बात को लेकर रोमांचित था कि मोहनदास करमचंद गांधी की शुरुआती
कर्मभूमि और नेल्सन मंडेला की धरती पर जाने का मौका मिल रहा है । जब हम ओलिवर टोम्बो
एयरपोर्ट पर उतरा तो रोमांच अपने चरम पर था। विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन नेल्सन मंडेला
की कर्मभूमि जोहानिसबर्ग में उनके नाम पर बने नेशनल मंडेला स्केवायर के पास के एक होटल
में था । वहां पहुंचते ही इस बात का एहसास हो गया था कि नेल्सन मंडेला को जनता देवता
की तरह पूजती है । जोहानिसबर्ग में अश्वेत लोगों की आबादी ज्यादा है और वहां के माहौल
पर भी एक ठेठ कबीलाईपन दिखाई देता है । वहां की संस्कृति भी उसी कबीलाई संस्कृति का
हिस्सा है । लोग भी थोड़े आक्रामक । हम लोग इस बात से हैरान थे कि जोहानिसबर्ग की दुकानों
के आगे दिन में भी सुरक्षा के लिहाज से ग्रिल लगे हुए थे जिसके पीछे कारोबार होता था
। यह अपराध की वजह से था । जोहानिसबर्ग से नेल्सन मंडेला ने अपना संघर्ष शुरू किया
था । यहीं से मंडेला ने सोने की खदान में चौकीदार की नौकरी शुरू की थी और पास के अलेक्जेंड्रा
बस्ती में रहते थे । यहीं पर उनकी मुलाकात वाल्टर सिसुलू और वाल्टर एल्बरटाइन से हुई
थी । इन दोनों ने शुरुआती दिनों में नेल्सन मंडेला को राजनीतिक रूप से संस्कारित करने
में अहम भूमिका निभाई । बाद में मंडेला ने वाल्टर सिसुलू की बहन एवेलिन मेस से शादी
कर ली थी । चौकीदारी की नौकरी छोड़कर मंडेला कानूनी फर्म में दफ्तरी हो गए थे । कालांतर
में मंडेला रंगभेद के खिलाफ आंदोलन में इतने व्यस्त हो गए कि पत्नी एवेलिन ने उन्हें
छोड़ दिया । मंडेला अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआत में काफी उग्र विचारों के रहे । शुरुआत
में उन्होंने अहिंसा का रास्ता नहीं अपनाया । शार्पविले हत्याकांड जिसमें शांतिपूर्ण
प्रदर्शन कर रहे उनहत्तर अश्वेत लोगों की गोरे शासकों ने हत्या कर दी थी । उसके बाद
गोरे सरकार से लोहा लेने के लिए अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस ने स्पियर ऑफ द नेशन नाम से
एक सशस्त्र संगठन बनाया जिसके मुखिया मंडेला ही थे । इस संगठन का मुखिया रहते हुए मंडेला
ने हिंसक संघर्ष की शुरुआत कर दी थी और फिर उन्नीस सौ तिरसठ में गिरफ्तार हो गए । फिर
उनपर मशहूर मुकदमा चला जिसमें उन्होंने कहा था - मैंने एक ऐसे स्वतंत्र और लोकतांत्रिक
समाज का सपना देखा है जहां लोग मेलजोल से रह सकें । मैं अपने इसी सपने को पूरा करने
के लिए जी रहा हूं और अगर मुझे इस सपने को पूरा करने के लिए अपनी जान भी देनी पड़ी
तो हिचकूंगा नहीं । इस मुकदमे में मंडेला के तर्कों को सुनने के बाद भी उनको उम्रकैद
की सजा सुनाई गई थी । हमने तय किया कि मंडेला से जुड़ी जगहों को देखा जाए । हमने अपने
टैक्सी ड्राइवर से कहा कि मंडेला के घर ले चलो । हमारी बात सुनते ही उसके मुंह से फौरन
निकला– हू मंडेला फिर चंद सेकेंड के अंदर जब हमने कहा कि नेल्सन
मंडेला तो उसने कहा ओ ! मदीबा मदीबा । दक्षिण अफ्रीका
की जनता प्यार से मंडेला को मदीबा कहती है । दरअसल वहां खोस भाषा बोलनेवालों को थेम्बू
समूह के तौर पर जाना जाता है । उन्नीसवीं शताब्दी में थेम्बू समुदाय के मुखिया को मदीबा
कहा जाता था । बाद में मंडेला को भी दक्षिण अफ्रीका की जनता मदीबा कहने लग गई । लेकिन
हम मदीबा से जुड़ी जगहें तो देख पाए । दक्षिण अफ्रीका को गोरा-राज से मुक्त करवाकर
जहां से मंडेला ने शासन किया वहां भी पहुंचे । प्रिटोरिया की वो इमारत हमारे देश के
साउथ ब्लॉक और नार्थ ब्लॉक की तर्ज पर ही बना था । उसके सामने की फुटपाथ पर मंडेला
से जुड़ी कई चीजें प्रमुखता से बिक रही थी ।
हमलोग विश्व हिंदी सम्मेलन से फारिग होकर दक्षिण अफ्रीका के दूसरे शहर केपटाउन
चले गए थे । केपटाउन और जोहानिसबर्ग दोनों शहर एकदम से एक दूसरे के विपरीत है । एक
पर कबीलाई छाप तो दूसरा बिल्कुल आधुनिकतम यूरोपीय शहर की तरह दमकता हुआ । अपनी आदत
है कि जहां भी जाते हैं वहां किताबों की दुकानें तलाश कर कुछ समय बिताते हैं । नेशनल
मंडेला की मौत की खबर सुनकर दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क का एक वाकया याद
आ गया जहां हमलोग केपटाउन से बहुत लंबा रास्ता तय करके पहुंचे थे । क्रूगर नेशनल पार्क
के मुख्य स्वागत कक्ष में मौजूद एक किताब की दुकान पर पहुंचा तो एक रैक में सिर्फ नेल्सन
मंडेला पर लिखी गई किताबें रखी हुई थी । इसके पहले जब मैं सनसिटी गया था तो वहां भी
कैसिनों के साथ लगी किताब की दुकान में मंडेला पर लिखी किताबें और उनकी खुद की किताब
एक जगह बेहतर तरीके से प्रदर्शित थी । मैंने क्रूगर नेशनल पार्क में किताबों की दुकान
पर मौजूद लड़की एना से पूछा कि हर जगह मंडेला की किताबें अलग रैक पर क्यों रखी रहती
हैं । उसका जवाब था- (फॉर अस ही इज लाइक गॉड, एंड एनरीव्हैर इन द वर्ल्ड गॉड गेट्स
सेपरेट एंड सेक्रेड प्लेस) वो हमारे लिए भगवान जैसे हैं, और पूरी दुनिया में भगवान
को अलग और पवित्र जगह मिलती है । उससे और बात करने पर पचा चला कि नेल्सन मंडेला की
आत्मकथा- लांग वॉक टू फ्रीडम –सबसे ज्यादा बिकती है ।
1994 में प्रकाशित इस किताब का विश्व की तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद
हो चुका है । इस पर अनंत सिंह ने एक फिल्म भी बनाई है । बिडंवना देखिए कि जब लंदन के
लिसेस्टर स्कवॉयर के ओडियन ऑडिटोरियम में इसकी स्क्रीनिंग चल रही थी उसी वक्त उनकीमौत
की खबर आई । मंडेला की दो बेटियां भी इस बायोपिक को देख रही थी । एना ने ही बताया था
कि दक्षिण अफ्रीका के अलावा विदेशी सैलानियों को पहली पसंद भी यही किताब होती है ।
दक्षिण अफ्रीका में मंडेला को लेकर एक खास तरीके की दीवानगी आप महसूस कर सकते हैं ।
जब आप वहां के लोगों से मंडेला के बारे में बात करेंगे तो उनके बात करने के अंदाज से
ही एक खास किस्म का आदर और एहसानबोध आपको दिखाई देगा । इस किताब के अलावा नेल्सन मंडेला
पर लिखी रिचर्ड एस्टेंगल की –नेल्सन मंडेला, पोट्रेट
ऑफ एन एक्सट्राऑर्डिनरी मैन –की भी काफी बिक्री होती
है ।
इन दोनों किताबों में नेल्सन मंडेला के आंदोलन के दौर पर ज्यादा फोकस किया गया
है । मंडेला पर चले चर्चित मुकदमे का भी जिक्र है जिसमें उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई
गई थी । उम्रकैद भी केपटाउन के पास के रोबिन आइलैंड पर बने एक कारागार के छह फीट गुना
छह फीट के कमरे में काटना था । वो कमरा नहीं बल्कि यातना गृह था । उस कमरे में एक चटाई
और एक बल्ब की रोशनी थी । दिन में रोशनी आने के लिए कमरे में सूराखनुमा खिड़की थी । दिन में दस घंटे तक पत्थर तोड़ने जैसा हाड़तोड़
मेहमत का काम और फिर रात में उस नर्क में यातना जेलना । रोबिन आइलैंड जेल के गार्ड
कई बार मंडेला के खाने में पेशाब कर उनको जबरन खिलाते थे । मंडेला की यातना की कल्पना
नहीं की जा सकती है, सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं । हमें तो अफसोस सिर्फ इस बात का
रहा कि केपटाउन तक जाकर भी रोबिन आइलैंड के उस जेल में नहीं जा सके जहां मंडेला को
दशकों तक यातना झेलनी पड़ी थी क्योंकि वहां जाने के पहले तकरीबन सप्ताह भर से लेकर
महीने भर पहले तक फेरी की बुकिंग करवानी पड़ती है ।
इन दो किताबों के अलावा
मंडेला पर केंद्रित एक और किताब पाठकों को अपनी ओर खींचती है । वह है – कनवर्सेशन विद माइसेल्फ । इस किताब में मंडेला के तकरीबन सारे खत हैं जो उन्होंने
अपने सत्ताइस साल के जेल जीवन के दौरान अपने परिवारवालों को लिखे थे । शुरुआत में हिंसक
क्रांति के समर्थक रहे नेल्सन मंडेला ने जेल जीवन के दौरान अहिंसा को अपना सबसे बड़ा
हथियार बनाया । जब दक्षिण अफ्रीका को आजादी मिली तो पूरे विश्व को इस बात का डर सता
रहा था कि वहां गृह युद्ध होंगे । मई उन्नीस सौ चौरनवे में चुनाव नतीजों के बाद जब
यह तय हो गया था कि अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की सरकार बनेगी तो मंडेला ने देश की जनता
से राष्ट्र निर्माण के काम में लग जाने की अपील की थी और साथ ही देश में हर कीमत पर
शांति बनाए रखने की अपील भी की थी । लोगों ने मदीबा का सम्मान किया था और शांतिपूर्व
सत्ता हस्तांतरण हो गया था। शांति के मसीहा मदीबा अलविदा ।
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