जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को मशहूर करने में विवादों की बड़ी भूमिका रही है । चाहे वो समाजशास्त्री आशीष नंदी के पिछड़ों पर दिए गए बयान और आशुतोष के प्रतिवाद से उपजा विवाद हो या फिर सलमान रश्दी के जयपुर आने को लेकर मचा घमासान हो । उत्तर प्रदेश मे जब विधानसभा चुनाव होनेवाले थे उसी वक्त जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सलमान रश्दी आमंत्रित थे । उस वक्त सियासी दलों ने सलमान रश्दी की भागीदारी और भारत आने को भुनाने की कोशिश की थी । मामला इतना तूल पकड़ गया था कि सलमान रश्दी का भारत दौरा रद्द करना पड़ा था । उस विवाद की छाया लंबे समय तक जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल को प्रसिद्धि दिलाती रही । पिछले साल अमेरिकी उपन्यासकार जोनाथन फ्रेंजन ने यह कहकर आयोजकों को झटका दिया था कि - जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल जैसी जगहें सच्चे लेखकों के लिए खतरनाक है, वे ऐसी जगहों से बीमार और लाचार होकर घर लौटते हैं । दरअसल जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में साहित्य के साथ साथ बहुधा राजनीतिक टिप्पणियां भी होती रही हैं । पिछले साल नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन ने आम आदमी पार्टी के उभार को भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती के तौर पर पेश किया था । वहीं अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के नेत्रहीन लेखक वेद मेहता ने नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि उनका पीएम बनना देश के लिए घातक हो सकता है । साहित्य से व्यावसायिकता की राह पर चल पड़े जयपुर साहित्य महोत्सव को तमाम लटके झटकों के बावजूद इस बात का श्रेय तो दिया ही जाना चाहिए कि इसने पूरे देश में साहित्यक उत्सवों की एक संस्कृति विकसित की है जिससे देश में एक साहित्यक माहौल बनने में मदद मिली है ।
इस बार जयपुर लिटरेचर फस्टिवल बगैर किसी विवाद के खत्म हुआ । दो साल पहले इस फेस्टिवल की आयोजक नमिता गोखले ने मुझसे कहा था कि उनकी विवादों में कोई रुति नहीं है क्योंकि इससे गंभीर विमर्श नेपथ्य में चला जाता है । वो लगातार हो रहे विवादों से चिंतित भी थी । इस बार उनरी यह चिंता दूर हो गई और जनवरी में खत्म हुए जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में साहित्य की कई विधाओं पर जमकर विमर्श हुआ और लेखकों और साहित्य प्रेमियों की भागीदारी रही । हिंदी को भी इस बार मेले में काफी प्रमुखता मिली । फेस्टिवल क पहले दिन हिंदी के वरिष्ठ लेखक विनोद कुमार शुक्ल का सत्र हुआ जिसमें कविता को लेकर गंभीर बातें हुई । वैसे भी इन दिनों हिंदी कविता को लेकर काफी सवाल खड़े हो रहे हैं । भारी मात्रा में लिखी जा रही हिंदी कविता की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि इस वक्त हिंदी में हजार से ज्यादा कवि सक्रिय हैं । कविता पर आलोचना की इस जाले को साफ करने में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हुए विमर्श आनेवाले दिनों में मददगार साबित होंगे । हिंदी के वरिष्ठ कवि विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि कविता कुंए का पानी होती हैजिसकी ताजगी हमेशा बरकरार रहती है । उनका मानना था कि बेशक कुंए का पानी एक जगह जमा रहता है लेकिन जितनी बार उससे पानी बाहर निकालो तो वो पीने लायक और ताजा होता है । उन्हें कुंए के पानी की इसी ताजगी से कविता की तुलना करत हुए कहा कि वो भी हर वक्त नई ही रहती है । फिल्म गीतकार प्रसून जोशी ने भी कविता को लेकर अपनी राय प्रकट की । प्रसून के मुताबिक कविताएं मनोरंजन मात्र के लिए नहीं होती हैं । उसके अंदर हमेशा कोई ना कोई संदेश छुपा होता है जो समाज के लिए हितकारी होता है। उन्होंने कविता को सम्मान का हकदार भी बताया और कहा कि वो चाहे किसी भी जुबान में लिखी जाए उसको इज्जत बख्शनी चाहिए । इस सत्र में उन्होंने कविता ऐऔर संवाद के फर्क पर भी विस्तार से प्रकाश डाला । गीतकार जावेद अख्तर ने भी गीतों और उसके चित्रण पर अपनी बात रखी थी । उनका मानना था कि गीत और उसका चित्रण दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक के बगैर दूसरे की कल्पना भी बेमानी है । अगर गीतों का चित्रण प्रभावी नहीं है तो वो प्रभावोत्पादक नहीं हो सकता है । हिंदी कविता के बारे में ये बातें अच्छी लग सकती हैं लेकिन जिस तरह से कविता का स्तर लगातार गिर रहा है उसपर इन कवियों ने कोई बात वहीं की । कविता के जनता से दूर जाने को लेकर और उसके लगातार बदलते फॉर्म पर भी गहन विमर्श होना चाहिए ।
इसके अलावा एक बेहद दिलचस्प सत्र था स्त्री शक्ति पर । इसको संचालित कर रहे थे
संपादक और लेखक ओम थानवी और प्रतिभागी थीं लता शर्मा, अंशु और मृदुला बिहारी । यह सत्र
शुरुआत में थोड़ा उबाऊ था पर संचालक के सवालों और सत्र में हिस्सा ले रहे लोगों ने
इसे दिलचस्प बना दिया । यह भी दिलचस्प संयोग था कि चर्चा में शामिल सभी का संबंध राजस्थान
से था । इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए मृदुला बिहारी ने साफ कहा कि इन दिनों स्त्री
विमर्श के नाम पर देह विमर्श हो रहा है और कुथ नई लेखिकाएं अपनी रचनाओं में देह का
वर्णन करती हैं जो कि काफी अश्लील होता है । इस चर्चा में ही स्वतंत्रता और स्वाधीनता
पर भी बहस हुई लेकिन वहां मौजूद युवा साहित्यप्रेमियों ने लेखिकाओं को घेर लिया । बहस
में हस्तक्षेप करते हुए कहानीकार गीताश्री ने मृदुला बिहारी को कठघरे में खड़ा किया
और उनसे अश्लील लेखन करनेवाली लेखिकाओं के नाम पूछे तो सभागार में सन्नाटा छा गया ।
मृदुला बिहारी सफाई देते इलके पहले ओम थानवी ने एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर दिया जो
कि हिंदी के समूल महिला लेखन पर प्रश्नचिन्ह लगाता है । ओम थानवी ने कहा कि सती प्रथा
राजस्थान के चेहरे पर एक दाग है लेकिन इस कुरीति पर स्त्री लेखन ने अबतक आपत्ति दर्ज
क्यों नहीं करवाई । स्त्री विमर्श की दुंदुभि बजानेवाली लेखिकाओं को यह सवाल क्यों
नहीं मथता है । यह हिंदी साहित्य के स्त्री विमर्श पर एक बड़ा सवाल है ।
इसी तरह से एक दिलचस्प सत्र था – सेवन डेडली सिन्स
ऑफ ऑवर टाइम । सत्र में हिस्सा ले रहे थे अशोक वाजपेयी, इस्थर डेविड और एमियर मैकब्राइड
। इस सत्र में होमी भाभा ने चर्चा में हिस्सा ले रहे लेखकों से उनके पापों के बारे
में पूछ लिया । अपनी वाकपटुता के लिए मशहूर अशोक वाजपेयी ने साफ कहा कि दूसरों को पीड़ा
पहुंचाने से बड़ा पाप कोई नहीं है । इस सत्र में कई मनोरंजक अवधारणाएं भी सामने आई
। एक और सत्र में पौराणिक धर्मग्रंथों और पैराणिक मिथकीय चरित्रों पर लिखनेवाले देवदत्त
पटनायक ने भी आम जीवन में मिथत की भूमिका पर अपने विचार रखे । सच क्या है जैसे विराटसवाल
से मुठभेड़ करते हुए रचनायक ने कहा कि एक सच वो होता है जिसे देखा या नापा जा सकता
है दूसरा वह होता है जिसे महसूस किया जाता है । उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि विज्ञान
ये तो बता सकता है कि आप दुनिया में कैसे आए लेकिन आप क्यों आए इस सवाल के सामने जाकर
विज्ञान बेबस हो जाता है । दरअसल सत्रहवीं अठारहवीं शताब्दी यानि बुद्धिवाद के आरंभिक
युग में मिथकों को कपोल कल्पना माना जाता था परंतु बदलते समय के साथ इसको इतिहास या
विज्ञान लेखन के पूरक के तौर पर देखा जाने लगा । साहित्य में कई बार ख्यात और अख्यात
लोक मिथक का जबरदस्त प्रयोग हुआ है । डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी अपने लेखन में
मिथकों और लोक ख्यात संकेतों का प्रयोग किया है ।
सोनिया गांधी की फिक्शनालाइज्ड
जीवनी लेखक जेवियर मोरो, फ्लोरेंस नोविल और मधु त्रेहान का सत्र भी विचारोत्तेजक रहा
। मोरो ने कहा कि उन्हें यह बहुत रहस्यमयी लगा था कि कैसे इटली की एक गांव की लड़की
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे ताकतवर महिला बन गई । इस सत्र में जीवनी लेखन
से लेकर मानवीय संबंधों की रचनाओं पर विमर्श हुआ जिसके केंद्र में नोविल की रचना अटैचमेंट
रही । इस रचना में एक युवा लड़की और उसके प्रोफेसर के बीच के प्रेम संबंध को उकेरा
गया है । एक और बेहद महत्वपूर्ण सत्र रहा पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर और मिहिर
शर्मा की भागीदारी वाला जिसे अपनी विद्वतापूर्ण टिप्पणियों से युवा अंग्रेजी लेखिका
अमृता त्रिपाठी ने नई ऊंचाई दी । विवादों की छाया से दूर इस बार का जयपुर साहित्य महोत्सव
मीना बाजार सरीखा तो रहा लेकिन साहित्य पर गंभीर विमर्श ने इस मीना बाजार को एक बार
फिर से नमिता गोखले के सपने को सच किया ।
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