शनिवार से अगले बाइस फरवरी तक दिल्ली में विश्व पुस्तक
मेला शुरू हो चुका है । इस बार के पुस्तक मेले में सम्मानित अतिथि देश सिंगापुर है
और थीम पू्र्वोत्तर भारत के उभरते स्वर तो
फोकस देश दक्षिण कोरिया है । पिछले दो तीन सालों में विश्व पुस्तक मेले ने एक नया शक्ल
अख्तियार किया है। अब इस विष्व पुस्तक मेले को सही में वैश्विक शक्ल ले चुकी है । इस
बार भी कई देशों के प्रकाशक इस पुस्तक मेले में हि्ससा ले रहे हैं । अंग्रेजी के प्रकाशकों
के बरक्श अब हिंदी के भी बड़े प्रकाशकों ने भी योजनाबद्ध तरीके से पुस्तक मेले में
पुस्तकों का प्रकाशन शुरू कर दिया है । विश्व पुस्तक मेले में हिंदी के
प्रकाशको के स्टॉल को देखकर संतोष होने लगा है । वहां उनके स्टॉल की साज सज्जा और व्यवस्था
देखकर वर्ल्ड क्लास होने का एहसास होता है । दूसरे अब पुस्तक मेले में विमोचनों की
होड़ तो रहती है लेकिन इन कार्यक्रमों को अब व्यवस्थित कर दिया गया है । इसके लिए अलग
से जगह नियत कर दी गई है । विश्व पुस्तक मेले की आयोजन नेशनल बुक ट्रस्ट ने साहित्य
मंच बनाकर हर दिन कई घंटे तक विमर्श और साहित्यक चर्चा के लिए मंच भी मुहैया करवा दिया
है । इस बार भी पुस्तक मेले में सैकड़ों किताबें रिलीज हो रही हैं । इन दिनों फेसबुक
पर इन साहित्यक कार्यक्रमों की जानकारी की बाढ आई हुई है । हर तरह के लेखकों की किताबें
रिलीज हो रही हैं और तो और एक प्रकाशक ने तो फेसबुक पर प्रकाशित कविताओं का एक संग्रह
ही प्रकाशित कर दिया है । इस संग्रह में फेसबुक पर सक्रिय सौ कवियों की कविताओं हैं
। हर तरह के आयोजन में कवि और कविता सबसे ज्यादा जगह छेक लेते हैं । कविता है ही ऐसी
विधा जो कम स्थान में समाती ही नहीं ।
इस बार पुस्तक मेले में कई युवा लेखकों की किताबों के
अलावा कुछ आत्मकथाएं भी प्रकाशित हो रही हैं जिसका हिंदी के पाठकों को इंतजार था ।
जैसे वाणी प्रकाशन से पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह और सिने सुपर स्टार दिलीप कुमार
की आत्मकथा भी प्रकाश्य है । इसी तरह से प्रभात प्रकाशन से पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे
अब्दुल कलाम मेरी जीवन यात्रा प्रकाशित हो रही है । इस बार भी पुस्तक मेले में प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी को केंद्र में रखकर कई किताबें प्रकाशित हो रही है । इस बार पुस्तक
मेले में वाणी प्रकाशन एक बेहद नई पहल कर रहा है । वेलेंटाइन डे पर लाल गुलाब देने
की वर्षों पुरानी परंपरा से मुठभेड़ करते हुए हे बसंत नाम से एक ऑन लाइन रोमांस फेस्टिवल
शुरू हो रहा है । इसका टैग लाइव है वैलेंटाइन पर गुलाब नहीं किताब । यह एक बेहतरीन
पहल है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए । अगर उपहार में किताब देने की परंपरा शुरू हो
गई तो हिंदी समाज में घट रही पुस्तक संस्कृति को एक जीवनदान मिलेगा । पाठकों को किताबों
को ओर लाने में सफलता मिल सकेगी । अगर इस योजना को जनता ने स्वीकार कर लिया तो किताबों
के जो संस्करण घटते-घटते तीन सौ तक आ गए हैं उसको बढ़ाने में भी मदद मिलेगी । लेकिन
यह काम एक दो महीनों का नहीं है इस आंदोलन को महीनों नहीं सालों तक लगातार चलाते रहने
की आवश्यकता है । अगर ऐसा हो सकता है तो हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को एक बेहतर समाज दे
सकेंगे जहां पुस्तकों का एक अहम स्थान होगा ।
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