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Saturday, February 4, 2023

तकनीक से समृद्ध होगी संस्कृति


एक फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में बजट पेश किया। बजट पर चर्चा हो रही थी। अचानक एक सज्जन का फोन आया। कहने लगे कि इस बार प्रकाशन जगत के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया। उल्टे डिजीटल पुस्तकालयों की घोषणा करके पुस्तक व्यवसाय के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। इतना कहने के बाद उन्होंने कहा कि हिंदी के एक शीर्ष प्रकाशक की बजट पर प्रतिक्रिया भेज रहे हैं, उसको देख लीजिएगा। उनके फोन रखते ही हमने मेल चेक की तो प्रकाशक महोदय की हिंदी और अंग्रेजी में बजट पर प्रतिक्रिया थी। बजट में प्रकाशन जगत की उपेक्षा पर वो झुब्ध नजर आ रहे थे। इसके अलावा उन्होंने डिजीटल पुस्तकालयों की घोषणा की भी आलोचना की थी और कहा था कि कोरोना के समय से संकटग्रस्त प्रकाशन व्यवसाय को सरकार की इस पहल से झटका लगेगा। यात्रा पर होने की वजह से बजट भाषण सुन नहीं पाया था। प्रकाशक महोदय की प्रतिक्रिया पढ़ने के बाद ये जानने की इच्छा हुई कि बजट में ऐसी क्या घोषणा हुई है जिसपर हिंदी के इस शीर्ष प्रकाशक ने इतनी कठोर प्रतिक्रिया दी है।

इस बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बच्चों और किशोरों के लिए नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी बनाने की घोषणा की। अपनी घोषणा में वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस डिजीटल पुस्तकालय में सभी भाषाओं और विषयों की उत्कृष्ट पुस्तकें होंगी। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा कि वो पंचायत और वार्ड स्तर पर पुस्तकालयों की स्थापना करें। इन पुस्तकालयों में इस तरह की व्यवस्था की जाए कि बच्चे और किशोर वहां बैठकर नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी की पुस्तकों तक पहुंच सकें। इसके साथ ही वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार देश में पढने की संस्कृति का विकास करने के लिए गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर हर आयुवर्ग के छात्रों के लिए पठनीय सामग्री उपलब्ध करने का प्रयास करेगी। इस कार्य में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास और चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट का सहयोग भी लिया जाएगा। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से अपेक्षा की गई है कि वो नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी के लिए सभी भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट पुस्तकें उपलब्ध कराए। नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी में सिर्फ पुस्तकें ही नहीं होंगी बल्कि किशोरों और बच्चों को कई अन्य चीजें सीखने को मिलेंगी। ये डिजीटल पुस्तकालय शिक्षा मंत्रालय के अधीन होगा। 

अवधारणा के स्तर पर नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी की स्थापना एक बेहतर प्रयास दिखाई देता है। इसको आरंभ करके उत्कृष्टता प्रदान करने के लिए शीघ्रता से कार्य करना होगा। यह प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भी बल प्रदान कर सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्कूलों में जिस तरह से भारतीय भाषाओं को वरीयता देने की बात की गई है उसको लागू करने में भी डिजीटल लाइब्रेरी सहायक हो सकता है। पिछले बजट में सरकार ने देश में एक डिजीटल विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा की थी। तब ये कहा गया था कि इस विश्वविद्लाय की स्थापना से छात्रों को लाभ होगा और वो कहीं से बैठकर उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। एक वर्ष बीतने के बाद अभी तक उस विश्वविद्यालय को शुरू नहीं किया जा सका है। कहा जा रहा है कि इस वर्ष जून जुलाई तक ये विश्वविद्लय अस्तित्व में आ जाएगा। इसी तरह से कुछ वर्षों पूर्व इंडियन इंस्टीट्यूट आफ हेरिटेज की स्थापना की बात की गई थी। उसको लेकर कई बैठकें हुईं। समितियां भी बना दी गईं, लेकिन उस घोषणा का क्या हुआ ये अभी तक सार्वजनिक नहीं हो सका है। उस समय दावा किया गया था कि संस्कृति के क्षेत्र में ये आईआईएम और आईआईटी की तरह कार्य करेगा। इसका आरंभ नहीं होना या इसपर धीमी गति के काम होना चिंताजनक है। खैर ये संस्कृति मंत्रालय से जुड़ा मामला है, इसपर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी। 

अभी हम बात कर रहे थे नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी की। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी की स्थापना के साथ राज्यों में हर पंचायत और वार्ड में पुस्तकालय की स्थापना की बात भी की गई है। इस समय प्रकाशन जगह की जो स्थिति है उसमें प्रकाशकों से ये अपेक्षा करना व्यर्थ है कि वो पंचायतों तक पुस्तकों को पहुंचाने की कोई योजना बनाकर उसको साकार करें। पुस्तकों की पाठकों तक पहुंच इस वक्त प्रकाशन जगत की सबसे बड़ी समस्या है। प्रकाशकों तक की तरफ से इस समस्या को दूर करने की कोई कार्ययोजना सामने नहीं आई है। ग्राम पंचायत तो बहुत दूर की बात है महानगरों में भी पुस्तकों की दुकानें बहुत कम हैं। पुस्तकों की उपलब्धता भी। ऐसे वातावरण में नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी की सहायता से देश के हर पंचायत में बच्चों और किशोरों तक अपने देश का साहित्य और इतिहास पहुंचाया जा सकता है। उनको अपने गौरवशाली अतीत और वर्तमान की उपलब्धियों के बारे में आसानी से बता सकते हैं।  

दूसरा एक और लाभ नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी का है जिसको रेखांकित किया जाना बेहद आवश्यक है। बजट घोषणा में ये भी कहा गया है कि इसमें बच्चों औ किशोरों के लिए प्रचुर मात्रा में साहित्य और पठनीय सामग्री उपलब्ध होगी। अगर हम सिर्फ हिंदी की बात करें तो यहां बाल साहित्य बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है। बाल साहित्य न तो लेखकों की प्राथमिकता में है और न ही प्रकाशकों की। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हिंदी में बाल साहित्य लेखन पूरी तरह से उपेक्षित है। बच्चों की जो पत्रिकाए निकला करती थीं वो बंद हो चुकी हैं। एक दो पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है लेकिन उनकी पहुंच पाठकों तक नहीं बन पा रही है। हिंदी में बाल साहित्य की कमी को लकर कभी-कभार गोष्ठियों और सेममिनारों में चिंता तो व्यक्त की जाती है लेकिन इस कमी को दूर करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं दिखाई देता है। हिंदी के लेखक एक विशेष विचारधारा के वशीभूत होकर खास प्रकार का साहित्य लिखते रह गए। उनका अधिक ध्यान समाज में फैले कथित असामनता, गरीबी और मजदूरों की समस्या पर रहा और वो इन्हीं विषयों को केंद्र में रखकर लिखते रह गए। अब अगर नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी को समृद्ध करने के लिए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास और चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट की ओर से पहल की जाती है तो हिंदी की इस कमी को पूरा करने की दिशा में प्रयास आरंभ हो सकता है। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास बच्चों को ध्यान में रखकर पुस्तकें लिखवा सकता है।        

ज्ञान के साथ साथ संस्कृति के विकास और उसको मजबूत करने में भी डिजीटल लाइब्रेरी उपयोगी हो सकती है। संस्कृति को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि नई पीढ़ी के लोग अपनी विरासत के बारे नें विस्तार से जानें। नेशनल डिजीटल लाइब्रेरी भारत की सांस्कृतिक विरासत को हर ग्राम पंचायत तक पहुंचाने का एक उपक्रम भी बन सकता है। रही बात प्रकाशकों को इस पहल से चुनौती की तो तकनीक कभी भी किसी व्यवस्या के लिए चुनौती बनकर नहीं आती है बल्कि वो उस व्यवसाय के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलती है। जब देश में कंप्यूटर आया था तो कई दलों के लोगों ने इसका ये कहते हुए विरोध किया था कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी लेकिन कालांतर में कंप्यूटर की उपयोगिता हर क्षेत्र में बढ़ी और इसने रोजगार की असमीति संभावनाओ को जन्म दिया। प्रकाशकों के सामने भी अब इस डिजीटल लाइब्रेरी के लिए बच्चों और किशोरों के लिए पुस्तकें उपलब्ध करवाने की चुनौती होगी। ऐसा नहीं है कि छपी हुई पुस्तकों की महत्ता खत्म हो जाएगी लेकिन इसका डिजीटल स्वरूप आने और उसकी लाइब्रेरी बनने से उसकी व्याप्ति बढ़ेगी। अगर पुस्तकों की व्याप्ति बढ़ती है तो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रकाशकों को ही लाभ होगा। जरूरत इस बात की है कि प्रकाशक तकनीक को अपने व्यावसायिक हितों के लिए उपयोग करें। 


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