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Saturday, March 4, 2023

ज्ञान परंपरा का प्रचार आवश्यक


हाल ही में नागपुर में एस्ट्रोनामी पार्क के शुभारंभ के अवसर पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के वक्तव्य के कुछ अंशों की चर्चा हो रही है। चर्चा इस बात की हो रही है कि मोहन भागवत ने कहा कि हमारे प्रचीन ग्रंथों की समीक्षा होनी चाहिए। इसको कुछ विद्वान इतिहास के पुनर्लेखन से जोड़कर देखने लगे हैं तो कुछ को पाठ्य पुस्तकों में बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। कुछ तो प्रचीन श्रुतियों के आधार पर ग्रंथों के होने न होने पर टीका टिप्पणी कर रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि मोहन भागवत के बयान को समग्रता में समझा जाए। अगर उनके चौंतीस-पैंतीस मिनट के वक्तव्य को ध्यान से सुना जाए तो उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं। भारत के गौरवशाली इतिहास को रेखांकित किया गया है। एस्ट्रोनामी पार्क के उद्घाटन में जब वो बोल रहे थे तो उन्होंने काल-गणना की भारतीय ज्ञान पद्धति पर विस्तार से प्रकाश डाला था। उन्होंने इस संबंध में भारत के अलग अलग प्रांतों में प्रचलित सूर्य और चंद्र की गति पर आधारित काल गणना पद्धति के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने ग्रह नक्षत्रों की स्थिति और उसकी भारतीय पद्धति से पहचान की बात भी की। इसी क्रम में उन्होंने भारत के मौखिक इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि हर अन्वेषण में हमारे पूर्वजों का किया कुछ न कुछ है। जो परंपरा से चला आ रहा है। पहले हमारे यहां ग्रंथ नहीं थे इसलिए ये बातें मौखिक परंपरा से चलीं। बाद में ग्रंथ हुए जो कुछ समय बाद इधर उधर हो गए। फिर इसमें कुछ स्वार्थी लोग घुस गए जिन्होंने उन ग्रंथों में कुछ कुछ घुसा दिया जो बिल्कुल गलत है। मोहन भागवत ने इसके अलावा यह भी कहा कि विदेशी आक्रमणों की वजह से हमारी ज्ञान परंपरा खंडित हो गई, जो व्यवस्थाएं थीं वो तहस नहस हो गईं। नियमित अंतराल पर हुए आक्रमणों की वजह से हमारी जो व्यवस्थाएं थीं वो तहस नहस हो गईं। इस पृष्ठभूमि में भागवत जी ने कहा कि उन ग्रंथों की पारंपरिक ज्ञान की एक बार समीक्षा की आवश्यकता है। 

मोहन भागवत के इस वक्तव्य में तीन महत्वपूर्ण बातें हैं जिनको रेखांकित किया जाना चाहिए और उसपर देशव्यापी विमर्श भी होना चाहिए। कुछ बातों पर तो विमर्श हो भी रहा है। मोहन भागवत ने जब भारतीय ज्ञान परंपरा की बात की तो उन्होंने यह भी कहा कि आज के विद्वानों का दायित्व है कि वो भारतीय ज्ञान परंपरा के बारे में समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लेख लिखकर नई पीढ़ी को उनकी भाषा में अवगत करवाएं। किस प्रकार से ग्रह और नक्षत्र की स्थिति होती हैं और वो कैसे कृषि और किसानों के लाभ पर आधारित है। उन्होंने एक दो उदाहरण भी दिए। उन्होंने एक तरह से उन सेमिनारवीरों को नसीहत भी दे डाली जो भारतीय ज्ञान परंपरा आदि जैसे शब्दों का उपयोग तो बार बार करते हैं लेकिन उस बारे में विस्तार में नहीं जाते। जब वो ग्रंथों में स्वार्थी तत्वों की छेड़छाड़ की बात करते हैं तो वो इतिहास लेखन के बारे में संकेत करते हैं। इतिहास लिखना क्या होता है। वैसा लेखन जिसमें भूतकाल की गतिविधियों का लेखा जोखा होता है। इतिहास कभी बदलता नहीं है, उसको देखने की दृष्टि अलग अलग हो सकती है। इतिहास तो समय के पन्नों पर दर्ज होता चलता है। इतिहासकार जब वस्तुनिष्ठ नहीं होकर किसी विचारधारा विशेष के प्रभाव या दबाव में अपनी दृष्टि को संकुचित कर लेते हैं तो समय के पन्नों पर दर्ज घटनाएं विसंगतियों के साथ सामने आती हैं। इतिहास में कई बार पुरानी स्थापनाओं को खारिज करके नई स्थापनाएं दी जाती हैं। उदाहरण के लिए स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर आदिवासी नायकों या गुमनाम नायकों के योगदान के बारे में देश की जनता को बताया गया वो इतिहास के एक नए आयाम को जनता के सामने रखने का उपक्रम था। किसी भी देश का इतिहास सिर्फ राजा रानियों या वीर सेनाननियों की गाथाओं का वर्णन नहीं होता है बल्कि उस समय की आम जनता के क्रियाकलापों का लेखा-जोखा ही उसको पूर्णता प्रदान करता है। मोहन भागवत अपने वक्तव्य में इसकी ही अपेक्षा करते नजर आ रहे हैं। 

अपनी उपरोक्त अपेक्षा को प्रकट करने के क्रम में मोहन भागवत ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति और उसके अंतर्गत बन रहे पाठ्यक्रम का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के अनुसार पाठ्यक्रम बन रहा है और कक्षा छह तक पाठ्यक्रम बन भी गया है। इस पाठ्यक्रम में कई नई बातों को भी समाहित किया गया है जो पहले के पाठ्यक्रमों में नहीं थीं। आगे भी जो पाठ्यक्रम तैयार होगा उसमें भी नई बातों को समाहित किए जाने के संकेत उन्होंने दिए। मोहन भागवत ने कहा कि एक बार पाठ्यक्रम सामने आ जाए तो उसकी समीक्षा की जाएगी, चर्चा की जाएगी और प्रयास यही रहेगा कि वो ज्ञान परंपरा के अनुसार ठीक है। इस तरह की चीजों के आने से ज्ञान भी बढ़ेगा और स्वाभिमान भी। यहां भी उन्होंने ये अपेक्षा जताई कि भारतीय ज्ञान परंपरा की कुछ प्राथमिक बातें हम अपने घर में भी बच्चों को बता सकते हैं। मोहन भागवत ने विस्तार से धर्म और विज्ञान के अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्म और विज्ञान साथ चल सकते हैं। उनके अनुसार हमारे धर्म की परंपरा में फेथ और बिलीफ जैसे शब्द नहीं हैं हमारे यहां अनुभव और प्रतीति को प्रमुखता दी गई है। उन्होंने उदाहरणों के साथ बताया कि हमारा धर्म वैज्ञानिक है। विज्ञान का दायित्व है कि वो धर्म को साथ लेकर चले। मानव कल्याण उसका उद्देश्य हो।  

मोहन भागवत ने एक और महत्वपूर्ण बात कही कि जनता को सरकार पर निर्भरता कम करनी चाहिए। आजकल ये स्वाभाविक अपेक्षा रहती है कि हर काम सरकार ही करे। यह पद्धति भारत की नहीं रही है कि सरकार ही सबकुछ करे। नौकरी भी दे, खाने को भी दे, टीवी भी दे और उसके बदले राज्य पूरी संपत्ति अरापने हाथ में रख ले। भारत में स्वायत्तशासी व्यवस्था थी। राजा का कर्तव्य सीमा का संरक्षण, कानून व्यवस्था और अधर्म का निर्धारण करना था। बाकी सारी बातें प्रजा के हाथों में थीं। मोहन भागवत ने माना कि वो जमाना चला गया और अब नया जमाना है जिसमें अपेक्षा रहती है कि सरकार ही सबकुछ करे। उन्होंने कहा कि करे तो करे लेकिन मोहन भागवत ने एकबार फिर से उस प्रश्न को छेड़ दिया है कि सरकार का दायित्व क्या हो जनता का क्या? इस बारे में कई बार चर्चा होती है कि सरकर क्या क्या करे। हमारे देश में एक सरकारी उपक्रम अब भी सिर्फ यात्रा टिकट करवाने का काम करती है। क्या सरकार का ये दायित्व होना चाहिए कि एक पूरा महकमा सिर्फ रेल और जहाज के टिकटों की व्यवस्था करने में लगे। जिस तरह से जमाना बदला और सरकार पर निर्भरता बढ़ी उसी तरह से एक बार फिर समय बदल रहा है और सरकार पर निर्भरता कम से कम करने की आवश्यकता है। 

मोहन भागवत ने जिस तरह से अपनी ज्ञान परंपरा के प्राथमिक ज्ञान की बात को महत्ता दी, धर्म और विज्ञान को साथ चलने की सलाह दी, परोक्ष रूप से सरकार पर निर्भरता कम करने की बात की अगर हम इसको समग्रता में देखें तो ग्रंथों को ठीक करने की बात नेपथ्य में चली जाती है। महत्वपूर्ण है कि भारत की जो ज्ञान परंपरा है उसका परिचय भारत की नई पीढ़ी को मिले और इसके लिए शिक्षण संस्थान और उसके कर्ताधर्ता सिर्फ मौखिक बात नहीं करें बल्कि प्रमाणिक रूप से उस ज्ञान परंपरा को सरल भाषा में जनता के सामने रखें। मोहन भागवत के वक्तव्य के इस निहितार्थ को समझकर अनुशासनबद्ध तरीके से काम करने की आवश्यकता है। 


1 comment:

Anonymous said...

Bawaaaaaaaaaal