Translate

Tuesday, September 26, 2023

क्लासिक फिल्मों की जीवंत अभिनेत्री


कौन कल्पना कर सकता है कि जिस लड़की को कैमरा एंगल के बारे में, फ्रेमिंग के बारे में, क्लोजअप शाट में चेहरे के भावों को बदलने के बारे में, अन्य शाट्स में शरीर के मूवमेंट के बारे में जानकारी न हो उसको एक दिन भारतीय फिल्मों का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। उस लड़की ने दशकों तक हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच लोकप्रियता बटोरी। जिसने अपने अभिनय क्षमता से प्यासा जैसी फिल्म में गुलाबो के चरित्र को अमर कर दिया। जिसको शाट्स का नहीं पता था, जिसको मूवमेंट का नहीं पता था उसने जब पर्दे पर जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैंने कही गाया तो उसके सभी मूवमेंट और शाट्स परफेक्ट लगते हैं। सिर्फ इस गाने में ही नहीं बल्कि देवानंद के साथ फिल्म गाइड में कांटो से खींच के आंचल गाती हैं तो ट्रैक्टर से लेकर ऊंट तक में उनके चेहरे पर जो भाव आते हैं वो इस गीत की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। शोख, चुलबुली अदा के साथ जब भरटनाट्यम में पारंगत वहीदा रहमान नृत्य करती हैं तो चेहरे के भाव जीवंत हो उठते हैं। इसके पीछे की भी एक दिलचस्प कहानी है। एक ही स्टूडियो में सीआईडी और प्यासा की शूटिंग होती थी। गुरुद्दत सीआईडी के प्रोड्यूसर थे और प्यासा के निर्देशक। फिल्म सीआईडी के निर्देशक राज खोसला जब वहीदा रहमान के शाट्स के व्याकरण को नहीं समझ पाने को लेकर निराश हो जाते तो गुरुदत्त के पास पहुंच जाते। फिर गुरुद्दत सीआईडी के सेट पर आते और वहीदा को अभिनय करके बताते कि इस तरह से इस शाट्स में मूवमेंट करना है और चेहरे पर भाव लाने हैं। साथ ही गुरुद्दत वहीदा को नसीहत देते कि उनकी नकल न करे। वो कहते कि तुम अपनी तरह से करो क्योंकि अभिनेता और अभिनेत्री के भाव अलग होंगे। इसके बाद तो वहीदा रहमान ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

वहीदा रहमान को इस बात के लिए भी याद किया जाता है कि उन्होंने अपने दौर में डायलाग डिलीवरी के अंदाज को बदल दिया। नाटकीय संवाद को उन्होंने स्वाभाविक अंदाज में कहना आरंभ किया था। याद कीजिए प्यासा का एक दृश्य। नायक विजय के पास पैसे नहीं होने की वजह से रेस्तरां का वेटर उसकी थाली खींचता है तो वहीं थोड़ी बैठी गुलाबो खान के पैसे देती है। गुलाबो उससे कहती है कि खाना खा लो, तुम्हें मेरी कसम। दुखी विजय कहता है आप अपनी कसम क्यों देती हैं, आप ठीक तरह से मुझे जानती भी नहीं। इसके बाद कुछ और संवाद और फिर गुलाबो का उत्तर, जब तुम्हारी नज्मों  और गजलों से, जब तुम्हारे ख्यालात और और जज्बात को जान लिया तो अब जानने को क्या बचा है। इस संवाद का दृश्यांकन भी बेहतरीन है और वहीदा की संवाद कला भी एकदम स्वाभाविक। यह अकारण नहीं है कि सीआईडी और प्यासा दोनों फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनाई थी। ये बहुत कम अभिनेत्रियों के साथ होता है कि उनके जीवन काल में उनकी फिल्म क्लासिक का दर्जा पा ले। वहीदा की दो फिल्म प्यासा और गाइड अपने प्रदर्शन के साठ-सत्तर वर्ष बाद भी पसंद की जाती हैं। 


No comments: