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Saturday, December 9, 2023

मोदी विजय रथ को रोक पाएंगे राहुल?


राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चा आरंभ हो गई है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के हौसले बुलंद हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में हैट्रिक का विमर्श शुरु कर दिया है। उधर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों में मायूसी का वातावरण है। तेलांगना के विधानसभा चुनाव में जीत के बावजूद कांग्रेस पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार नहीं कर पा रही है। कुछ दिनों पूर्व बने विपक्षी दलों के गठबंधन आईएनडीआईए को लेकर कुछ ठोस सामने नहीं आ रहा है। विशेषज्ञ ऐसा होगा तो ऐसा होगा के तर्कों के सहारे भारतीय जनता पार्टी की कठिनाइयों को गिनाने में लगे हैं। चुनावी विश्लेषक विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों को मिले वोटों की संख्या के आधार पर लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सामने चुनौती पेश करने का प्रयास कर रहे हैं। यही विश्लेषक ये कहते हुए नहीं थकते थे कि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मतदान का पैटर्न अलग होता है। स्मरणीय है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव हार गई थी लेकिन अगले ही वर्ष 2019 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो भारतीय जनता पार्टी को 2014 में मिली सीटों से अधिक सीटें प्राप्त हुईं। इसी तरह से दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बंपर जीत मिली थी लेकिन लोकसभा चुनाव में सातों सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत का परचम लहराया। आंकड़ों से संकेत तो मिल सकते हैं लेकिन उसे परिणाम का सटीक आकलन नहीं लग सकता है। 

लोकसभा के चुनाव में जनता यह तय करती है कि कौन सा नेता ऐसा है जो राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदान कर सकता है। वैश्विक मंच पर राष्ट्रीयय हित को मजबूती से पेश कर सकता है। पूरे देश को साथ लेकर चल सकता है और जिसकी नीतियों से देश का विकास होगा। किस नेतृत्व में स्थायित्व और स्थिरता प्रदान करने की क्षमता है। वर्तमान राजनीति परिदृष्य में नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं और पार्टी 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी के नेतृत्व में लड़ेगी। विपक्ष में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है और उसकी उपस्थिति हर राज्य मैं है। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे हैं लेकिन अगर प्रधानमंत्री बनने की नौबत आई तो राहुल गांधी ही आगे आएंगे। आईएनडीआईए में भी सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण कांग्रेस का नामित नेता ही उसका नेतृत्व कर सकता है। यहां भी राहुल गांधी का ही नाम आ सकता है। इस बात की संभवाना कम है कि राहुल गांधी किसी अन्य के नेतृत्व में 2024 के लोकसभा चुनाव मैदान में जाएं। राहुल गांधी के कुछ स्वयंभू सलाहकार और गठबंधन के कुछ दल राहुल गांधी के नाम पर असहमति जता सकते हैं लेकिन जिस प्रकार अन्य दलों के नेताओं के नाम पर मतभिन्नता है उसमें राहुल के नाम पर ही मतैक्य हो सकता है। विपक्षी गठबंधन नेतृत्व के प्रश्न को लोकसभा चुनाव के बाद के लिए टालने की घोषणा कर सकते हैं लेकिन उसका कोई लाभ होगा, इसमें संदेह है। स्वाभाविक है कि विपक्षी गठबंधन मजबूरी में ही सही लेकिन राहुल गांधी को नेता चुन सकते हैं। अगर राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों का गठबंधन आईएनडीआए चुनाव मैदान में जाता है तो फिर मुकाबला नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के बीच होगा। 

राहुल गांधी के बारे में देश में एक राय है। कांग्रेस पार्टी में भी। सोमवार को पूर्व राष्ट्रपति और लंबे समय तक कांग्रेस पार्टा के महत्वपूर्ण नेता रहे प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी की पुस्तक बाजार में आ रही है। पुस्तक का नाम है प्रणब, माई फादर। इस पुस्तक में सोलह स्थानों पर राहुल गांधी का उल्लेख है और कई स्थानों पर तो प्रणब मुखर्जी के डायरी के अंश भी उद्धृत किए गए हैं। प्रणब मुखर्जी की डायरी के अंश संभवत: पहली बार सार्वजनिक होने जा रहे हैं। प्रसंग 29 जनवरी 2009 के कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का है।  प्रणब मुखर्जी अपनी डायरी में लिखते हैं, राहुल गांधी ने गठबंधन के विरोध में अपनी बात जोशीले अंदाज में रखी। मैंने (प्रणब) उनसे कहा कि जोश तो ठीक है लेकिन अपने आयडिया को विस्तार से कारण समेत व्याख्यायित करें। प्रणब मुखर्जी के इतना कहने पर राहुल गांधी ने उनकी तरफ देखा और कहा कि वो उनसे अलग से बात कर लेंगे। उसके बाद प्रणब मुखर्जी ने राहुल के बारे में अपनी डायरी में लिखा कि वो बेहद शिष्ट हैं और उनके मन में काफी प्रश्न कुलबुलाते रहते हैं जो ये दर्शाते हैं कि वो सीखना चाहते हैं लेकिन अभी राहुल गांधी को राजनीतिक रूप से परिपक्व होना बाकी है। परिपक्वता के प्रश्न पर ही प्रणब मुखर्जी 27 सितंबर 2013 की एक घटना का उदाहरण देते हैं। उस दिन राहुल गांधी दिल्ली में अजय माकन के एक प्रेस कांफ्रेंस में पहुंच गए थे और उन्होंने एक अध्यादेश की काफी सार्वजनिक रूप से फाड़ दी थी। भन्नाए प्रणब मुखर्जी लिखते हैं कि राहुल गांधी खुद को क्या समझते हैं? वो कैबिनेट के सदस्य नहीं हैं। वो होते कौन हैं जो कैबिनेट के निर्णय को सार्वजनिक रूप से फाड़ डालें। प्रदानमंत्री विदेश में हैं। उनको(राहुल) को इस बात का अनुमान भी है कि उनके इस कदम का परिणाम और प्रधानमंत्री पर क्या असर होगा? राहुल को प्रधानमंत्री को इस तरह अपमानित करने का अधिकार किसने दिया? राहुल में गांधी-नेहरू खानदान से होने अहंकार तो है लेकिन राजनीतिक कौशल नहीं। कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन उपाध्यक्ष की इस हरकत को लेकर प्रणब मुखर्जी बेहज नाराज दिखते हैं और कहते हैं कि राहुल का यह कार्य कांग्रेस पार्टी के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित हुई। वो प्रश्न उठाते हैं कि लोग कांग्रेस को इसके बाद वोट क्यों देंगे। वो इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को फिर से सक्रिय कर पाएंगे। वो लिखते हैं कि सोनिया जी राहुल को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहती हैं लेकिन उनमें (राहुल) करिश्मा और राजनीतिक समझ की कमी के कारण कठिनाई हो रही है। 

राहुल गांधी को लेकर सिर्फ प्रणब मुखर्जी की ही ये राय नहीं है। अपनी पुस्तक अमेठी संग्राम लिखने के दौरान मैंने युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष से बात की थी तो उन्होंने भी कमोबेश इसी तरह की बात कही थी। उन्होंने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही थी वो ये राहुल गांधी अगर किसी नेता से नाराज होते हैं तो वो उसको दंडित नहीं करते हैं और जब खुश होते हैं तो पारितोषिक भी नहीं देते। खफा होने से उससे बातचीत बंद कर देते हैं जिसका नुकसान संगठन को होता है। दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी हैं जो दोनों स्थितियों में निर्णय लेते हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव अगर नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी होता है तो आज की स्थिति में मोदी का हैट्रिक तो तय ही है। राहुल गांधी या आईएनडीआईए को अगर नरेन्द्र मोदी को चुनौती देनी है तो उनको एक परिपक्व राजनीतिक चेहरा ढूंढकर उसपर सभी दलों के बीच सहमति बनानी होगी। उस नेता को अपनी  नीतियों और विजन को जनता के सामने रखना होगा। आईएडीआईए ने अबतक दो ढाई दिन ही काम किया है। विपक्षी गठबंधन की तरफ से हाल ही में एक बैठक आहूत करने का समाचार आया था लेकिन अज्ञात कारणों से वो बैठक टाल दी गई। आमचुनाव में छह महीने से भी कम समय बचा है। भारतीय जनता पार्टी अपनी चुनावी तैयारियां कर चुकी है लेकिन विपक्षी गठबंधन को बहुत कुछ करना शेष है। अगर विपक्ष ने समय का सदुपयोग नहीं किया तो परिणाम हैट्रिक की ओर ही जाता दिख रहा है। 


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