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Thursday, October 29, 2009

संविधान को चुनौती

अभी कुछ दिनों पहले एक खबर पढ़कर चौंक गया । चित्तौड़गढ़ के वाणमाता में एक कुंवारी मां के दो साल के बच्चे के पिता का पता लगाने के लिए पंचायत बैठी । बगरिया समाज के इस पंचायत में युवती के मां बनने पर चली सुनवाई में ये सच सामने आई कि उसका जीजा ही उसके बच्चे का बाप है । युवक के इस सच को स्वीकारने के बाद पंचायत ने उसपर पंद्रह हजार का दंड लगाया और दो साल के बच्चे को उसे सौंप दिया । सवाल ये उठता है कि इस अपराध के लिए इतनी छोटी सी सजा माकूल है । लेकिन पंचायत का फैसला सर माथे पर लेते हुए लड़की ने अपने दो साल के बच्चे को उसके पिता को सौंप तो दिया लेकिन एक अनब्याही मां के दर्द को कौन समझेगा, जिसने ना केवल अपना कौमार्य गंवाया बल्कि जिंदगीभर समाज की जिल्लत झेलने को अभिशप्त हो गई । लेकिन पुरुष प्रधान समाज में महलाओं की फिक्र किसे हैं । ये सिर्फ चित्तौड़गढ़ की कहानी ही नहीं है बल्कि पंचायत का अलग कानून, राजस्था के अलावा, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बदस्तूर जारी है ।
कुछ दिनों पहले बिजनौर में हुई एक पंचायत के बाद हुई रंजिश में बाप बेटी ने दो लोगों को गोलियों से भून दिया था । दरअसल उस पंचायत के बीच खड़े सत्तर साल के बाप और उसकी बाइस साल की बेटी के बीच नाजायज रिश्तों का आरोप लगा था । इससे पहले कि वो दोनों अपनी सफाई में कुछ कह पाते पंचायत ने फरमान सुना दिया कि दोनों सुधर जाएं नहीं तो गांव से निकाल दिया जाएगा... इस मसले को लेकर तीन बार पंचायत हुई लेकिन चौथी पंचायत में भी जब इनकी सफाई नहीं सुनी गई तो आजिज आ कर बाप बेटी पंचों को गोली मार दी । लेकिन ये दुस्साहस कम ही लोग कर पाते हैं ।
हरियाणा में तो प्रेमी जोडों पर बहुधा पंचायत का कहर मौत बन कर बरपती है । लेकिन वोट बैक की राजनीति में उलझे नेताओं को ना तो कानून की फिक्र है और ना ही संविधान की । जाति के आधार पर बनी पंचायतें खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाती रहती हैं और संविधान को चुनौती देती रहती हैं लेकिन कानून के रखवाले उनके आगे बेबस और लाचार नजर आते हैं । आजादी के साठ साल बाद भी पंचायतों का ये रुख आरतीय लोकतंत्र पर एक ऐसा घाव है जिसकी सर्जरी अगर जल्द नहीं की गई तो वो नासूर बनकर हमारे समाज को लहलुहान करता रहेगा ।

1 comment:

अजय कुमार said...

५९ साल के बाद भी पूरे देश में संविधान नहीं लागू हो
पाया ????