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Wednesday, May 5, 2010

विश्वास के कातिल गुरू

अभी एक छोटी सी पर अहम खबर अखबारों में आई जो देश से गद्दारी करनेवाली माधुरी गुप्ता के कवरेज में गुम होकर रह गई । केरल के कोझीकोड जिले के छोटे से कस्बे पुलियाकावू के एक प्राइमरी स्कूल के शिक्षक को चौथी क्लास में पढ़नेवाली छह लड़कियों के यौन शोषण करने का दोषी पाया गया और उसे तीस साल की जेल और बीस हजार रुपये का जुर्माने की सजा सुनाई गई । दरअसल उनतालीस साल के इस गुनहगार ने आज से तेरह साल पहले चौथी क्लास की लड़कियों के साथ क्लारूम और कंप्यूटर लैब में छेड़छाड़ की थी और उन्हें अपने हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी । शिक्षा के मंदिर की पवित्रता को अपनी हरकतों से बदनाम करनेवाले इस शख्स का जब राज खुला था तो केरल में तूफान उठ खड़ा हुआ था । तेरह साल बाद उन छह मासूम लड़कियों को इंसाफ मिला है । संभवत देश का यह पहला मामला है जहां यौन शोषण के मामले में किसी आरोपी को तीस साल की कैद और बीस हजार रुपये का जुर्माना किया गया है । अदालत के इस तरह के रुख से इस तरह की घिनौनी हरकत करनेवालों पर लगाम लगाने में मदद मिल सकती है या फिर इस तरह के कुंठित लोग कानून के खौफ की वजह से इस तरह की नापाक हरकतों को अंजाम ना दें ।
हाल के दिनों में इस तरह की बेचैन करनेवाली खबरें लगातार आने लगी हैं । प्राइमरी स्कूल से लेकर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय तक से शिक्षकों के अपने छात्र-छात्राओं के यौन शोषण की खबरें लगातार सुर्खियां बनती रही हैं । जिस दिन केरल की अदालत में यौन शोषण के जुर्म में आरोपी को तीस साल की सजा की खबर छपी उसी दिन ये खबर भी आई कि देश के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक - जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में एक शिक्षक ने एक विदेशी छात्रा के साथ जोर-जबरदस्ती करने की कोशिश की । जब छात्रा ने इसका विरोध किया तो उक्त शिक्षक ने मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की, लेकिन मामला पुलिस तक पहुंच गया । इसके पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में एक दलित छात्रा के यौन शोषण के जुर्म में हिंदी विभाग के एक शिक्षक को विश्वविद्यालय ने नौकरी से हटा दिया था । दिल्ली विश्वविद्यालय के ही एक अन्य कॉलेज के एक शिक्षक पर छात्रों के यौन शोषण का आरोप लगा जिसे विश्विद्यालय की कमेटी ने सही पाया और उस केस में भी प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई हुई ।
दरअसल इस तरह के मामले जब राजधानी दिल्ली या फिर कुछ बड़े शहरों में होते हैं तो मीडिया की नजरों में आ जाते हैं और फिर प्रशासन कार्रवाई को मजबूर हो जाता है । लेकिन देश के सूदूर इलाकों में शिक्षकों के इस तरह की नापाक हरकत उजागर ही नहीं हो पाते हैं और यौन शोषण की शिकार लड़कियां और बच्चियां चुप रह जाती हैं । इस देश में गुरू को भगवान या फिर उससे भी उंचा दर्जा प्राप्त है । गुरू को मां-बाप से भी ज्यादा इज्जत इस देश में बख्शी जाती है । छुटपन से ही बच्चों को यह सिखाया जाता रहा है कि – गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पांय. बलिहारी बा गुरू की जिमि गोविंद दियो बताए । यानि कि गुरु भगवान से भी बड़ा होता है और भगवान या गुरू एक साथ खड़े हों तो पहले गुरू को प्रणाम करना चाहिए क्योंकि गुरू ही भगवान के बारे में बताते हैं । लड़कियों के मां-बाप शिक्षकों पर इसी अटूट आस्था और विश्वास के तहत अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं कि वहां उनकी औलाद महफूज है । लेकिन कुछ स्कूलों में सेक्स कुंठित शिक्षकों की वजह से समाज का शिक्षा के इन मंदिरों पर से विश्वास दरकने लगा है , असुरक्षा की भावना घर करने लगी है, उनके अवचेतन मन में हमेशा अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक चिंता व्याप्त रहती है । अब जरूरत इस बात की है कि एक तरफ तो स्कूलों और कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में इस तरह की घटनाओं से निबटने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं और सरकार के कर्ताधर्ता भी मासूमों के यौन शोषण करनेवालों के खिलाफ और सख्त कानून बनाए और उसे जल्दी और सख्ती से लागू करने का मैकेनिज्म भी विकसित करे । वर्ना भगवान से उपर का दर्जा प्राप्त इन गुरुओं को शैतान का दर्जा मिलते देर नहीं लगेगी ।
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