गोवा के मुख्यमंत्री दिगंबर कामत महिलाओं के एक सम्मेलन में बोलते-बोलते जोश में होश खो बैठे । यह जानते हुए भी कि वो जिस पार्टी के सदस्य हैं उसकी अध्यक्षा एक महिला है- कामत ने महिलाओं के बारे में अपमानजनक टिप्पणी कर डाली । कामत ने यह टिप्पणी यह जानते हुए भी की कि उनकी पार्टी के एजेंडे में महिलाओं को लोकसभा और राज्यसभा में आरक्षण दिलाना प्राथमिकता पर है । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी यूपीए- 2 के दो साल पूरे होने पर महिलाओं को पंचायतों में आरक्षण देने पर सरकार की पीठ ठोंकी । लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि गोवा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री को यह सब चीजें याद नहीं है । महिलाओं के सम्मेलन में कामत ने कहा कि महिलाओं को राजनीति में नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । अब यह बात तो कामत ही बता सकते हैं कि किस तरह के नकारात्मक प्रभाव की बात वो कर रहे हैं । लेकिन उनके भाषण का जो भाव था वह महिलाओं को लेकर उनकी घटिया मानसिकता को प्रदर्शित कर गया ।
दिगंबर कामत यह भूल गए कि भारत का लोकतांत्रिक इतिहास इस बात का गवाह है कि महिलाओं ने राजनीति में अमिट छाप छोड़ी है । चाहे वो दिगंबर कामत की पार्टी की इंदिरा गांधी हों, राजकुमारी अमृत कौर, सुचेता कृपलानी, गीता मुखर्जी हों, या फिर पूर्व मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा, कृष्णा शाही हों । अब के परिदृश्य में भी सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, मीरा कुमार, मायावती, जयललिता से लेकर कई महिला नेत्री हैं जिनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और भारत के राजनीतिक परिदृश्य इनकी मजबूत उपस्थिति है । भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के योगदान को गिनाने की जरूरत नहीं है, लंबे समय से राजनीति से जुड़े कामत याहब को संभवत: यह पता होगा ।
गोवा के मुख्यमंत्री राजनीति में महिलाओं के आने के नकारात्मक प्रभाव पर ही बोलकर नहीं रुके । वो आगे बढ़े और यहां तक कह गए कि- “राजनीति महिलाओं को क्रेजी बना देती है । समाज के बदलाव में महिलाओं की महती भूमिका है और उन्हें आनेवाली पीढ़ी का ध्यान रखना चाहिए ।“ बोलने के उत्साह में कामत जो कह गए उससे उनकी राजनीति और उनके करियर पर दूरगामी असर पड़ सकता है । लेकिन सवाल यह उठता है कि किसी राज्य का एक चुना हुआ मुख्यमंत्री एक सार्वजनिक समारोह में इस तरह के वक्तव्य कैसे दे सकता है । एक सूबे के सबसे जिम्मेदार पद पर बैठा आदमी, जिसने संविधान के नाम पर शपथ लेकर पद संभाला है वह इस तरह का अपमानजनक वक्तव्य देने के बाद भी अपने पद पर बना हुआ है । क्या कामत की संविधान में आस्था खत्म हो गई है । कामत शायद यह भूल गए हैं कि आज वो एक महिला की कृपा की वजह से ही गोवा के मुख्यमंत्री हैं, विधायकों की पसंद की वजह से नहीं ।
दरअसल कामत का यह बयान एक घोर सामंती व्यवस्था की पुरुषवादी मानसिकता का बेहद कुरुप चेहरा है । उस व्यवस्था का जहां महिलाएं बच्चा पैदा करने की मशीन हैं, बच्चा पालना उनका परम धर्म है । परिवार की देखभाल और अपने पति की हर तरह की जरूरतों पर जान न्योछावर करने की घुट्टी उसे जन्म से पिलाई जाती है । उस आदिकालीन वयव्स्था में महिलाएं गुलाम हैं जिनका परम कर्तव्य है अपने स्वमी की सेवा और स्वामी है पुरुष । इस पाषाणकालीन व्यवस्था में यकीन रखनेवाले पुरुषों को यह कतई मंजूर नहीं है कि महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम करें । महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक और दर्जा मिले । महिलाएं देश की नीति नियंता बने । गोवा के मुख्यमंत्री इसी सामंती और पुरुष प्रधान व्यवस्था के प्रतिनिधि पुरुष हैं । उनका वक्तव्य पुरुषों के महिला विरोधी मानसिकता के मनोविज्ञान का नमूना है । ।
महिला विरोधी इसी मनोविज्ञान और मानसिकता में मुलायम सिंह भी कह जाते हैं कि अगर संसद में महिलाओं को आरक्षण मिला तो सीटियां बजेंगी । इसी मनोविज्ञान के तहत मुस्लिम धर्म गुरू कल्बे जब्बाद भी महिलाओं के प्रति अपमानजनक बोल बोलते हैं । यही मनोविज्ञान है जो तुलसीलास से भी लिखवा लेता है – ढोल, गंवार...पशु नारी ये सब है तारण के अधिकारी । तो महिलाओं का जो विरोध है वह किसी सिद्धांत, धर्म, आस्था, विश्वास या वाद के परिधि से परे है । जब भी महिलाओं की बेहतरी की बात होती है तो सभी सिद्धांत, वाद, समुदाय, धर्म धरे रह जाते हैं । प्रबल हो जाता है कठोर पुरातनपंथी विचारधारा जो महिलाओं को सदियों से दबा कर रख रहा है और आगे भी चाहता है कि वो उसी तरह दासता और पिछड़ेपन की बेड़ियों में जकड़ी रहें । लेकिन अब वक्त काफी आगे बढ़ गया है पर पीछे छूट गए हैं इस तरह के सामंती और दकियानूसी विचारधारा के लोग ।
1 comment:
mai nahi jaantaa ki aapne tulsi ko kitana padhaa hai. par itanaa jaroor hai ki Ramcharit manas ke bhav bodh ko nahi samajh rahe. poore prasag ko imaandaari se padhe. jaldi baajee me likhane ke jaroorat nahi
chanadan
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