Translate

Sunday, September 20, 2015

पर्दे पर 'गुनाहों का देवता'

हिंदी साहित्य की दुनिया में कदम रखनेवालों को या हिंदी साहित्य को पढ़ने की शुरुआत करनेवालों को एक किताब खास तौर पर लुभाती है । ये किताब है गुनाहों का देवता जिसके लेखक हैं धर्मवीर भारती । गुनाहों का देवता एक ऐसा उपन्यास है जिसको हिंदी में सही अर्थों में बेस्टसेलर कहा जा सकता है । उन्नीस सौ उनचास में प्रकाशित इस उपन्यास को अबतक अस्सी या उससे ज्यादा संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । किसी भी पुस्तक मेले में धर्मवीर भारती का ये उपन्यास अच्छी खासी संख्या में बिकता रहा है । सुधा और चंदर की प्रेम कहानी में युवा पाठक अपना अक्श ढूंढता है और उसके पात्रों में अपने को पाता है, यही इस उपन्यास की सफलता की वजह है । हिंदी के इस बेहद लोकप्रिय उपन्यास पर अब एक निजी मनोरंजन चैनल पर धारावाहिक की शुरुआत हो रही है जिसका नाम है एक था चंदर और एक थी सुधा । सुधा और चंदर धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों के देवता के मुख्य किरदार हैं और उनकी ही प्रेम कहानी के इर्द गिर्द ये उपन्यास शुरू होकर खत्म होता है । पहले भी साहित्यक कृतियों पर धारावाहिक और फिल्में बनती रही हैं लेकिन गुनाहों का देवता को लेकर हिंदी पट्टी के दर्शकों में खासी उत्सकुकता है । सोशल मीडिया पर भी इसको लेकर खूब चर्चा हो रही है । हिंदी के पाठकों के अलावा आलोचकों में भी इस सीरियल को लेकर उत्सुकता बनी हुई है । फिल्म समीक्षा के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित विनोद अनुपम ने लिखा है कि- गुदगुदी सी हो रही है, अचानक दिखा कि धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों का देवता पर धारावाहिक प्रसारण को तैयार है, मन से हट ही नहीं रहा है कि कैसे दिखेंगे सुधा और चंदर । विनोद अनुपम ने हिंदी के उन लाखों पाठकों की आकांक्षा को वाणी दी है जो गुनाहों के देवता के नायक और नायिका सुधा और चंदर की कल्पना करते हुए जवान और प्रौढ हो गए हैं । सुधा और चंदर की रूमानी कहानी को पर्दे पर उतारना एक बड़ी चुनौती है । पिछले पैंसठ साल में इस उपन्यास पर फिल्म बनाने की कई लोगों ने कोशिश की लेकिन सुधा और चंदर के उलझे हुए प्रेम संबंधों को पर्दे पर उतारने की चुनौती किसी निर्देशक ने स्वीकार नहीं की । जहां तक मुझे याद है कि एक बार किसी निर्देशक ने अमिताभ बच्चन और जया बच्चन को लेकर एक थी सुधा और एक था चंदर- फिल्म बनाने का एलान किया था लेकिन वो सिर्फ घोषणा ही रह गई ।
दरअसल धर्मवीर भारती के इस उपन्यास गुनाहों का देवता भावप्रधान है । हलांकि आलोचक गोपाल राय कहते हैं कि गुनाहों का देवता कैशोर भावुकता से भरा उपन्यास है जिसमें प्रेम की उत्कटता भावुकता के स्तर पर दम तोड़ देती है । लिहाजा यह कहा जा सकता है कि इस उपन्यास के भावों और भावुकता को पर्द पर उतारना बहुत मुश्किल काम है । भाव को लिखा जा सकता है, भाव को महसूस किया जा सकता है लेकिन भाव को दृश्यों में उतारकर पेश करना बेहद चुनौती भरा काम है । मुझे लगता है कि इसी कठिन चुनौती को ध्यान में रखते हुए अबतक इस उपन्यास पर कोई फिल्म नहीं बन सकी । हिंदी जगत की उत्सकुता की वजह भी यही है कि धारावाहिक निर्माता ने सुधा और चंदर के भावों को किस तरह से सामने रखा । इलाहाबाद की पृष्ठभूमि में लिखे गए इस उपन्यास की कहानी बेहद साधारण है लेकिन सुधा औप चंदर के मनोभावों को जिस तरह से धर्मवीर भारती ने पेश किया था वह अद्वितीय है । 

1 comment:

Unknown said...

जी हाँ वाकई बहुत चुनौतीपूर्ण करी है। उत्सुकता बनी रहेगी।