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Wednesday, June 20, 2012

इतिहास का ड्राफ्ट

दो हजार में जब बिहार से अलग हटकर झारखंड राज्य अस्तित्व में आया था उस वक्त उम्मीद जगी थी कि इलाके के आदिवासियों का समुचित विकास होगा और उनकी समस्याओं पर बेहतर तरीके से ध्यान दिया जाएगा । लेकिन पिछले एक दशक में झारखंड विकास के बजाए लूट की उर्वर भूमि में तब्दील हो चुकी है । राज्य के नेताओं में सत्ता की भूख इतनी ज्यादा है कि वो किसी भी पार्टी से हाथ मिलाने को तैयार हैं बशर्तें कि उनके समर्थन से सरकार बन सके । चाल चरित्र और चेहरा के अलावा सार्वजनिक जीवन में शुचिता की बात करनेवाली भारतीय जनता पार्टी भी झारखंड में सत्ता के लिए कई बार नापाक गठजोड़ कर चुकी है । सूबे में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं । इस वजह से बड़े औद्योगिक घरानों की नजर वहां लगी रहती है । औद्योगिक घरानों की इस नजर में ही राजनेताओं को संभावनाएं दिखाई देती हैं । आदिवासियों की राजनीति करनेवाले नेताओं को हवस है सिर्फ पैसे की । इसी हवस ने राज्य के एक पूर्व मुख्यमंत्री और कई मंत्रियों को जेल भिजवाया और कई तो जेल जाने की लाइन में लगे हैं । प्रदेश का राजनैतिक नेतृत्व का इस कदर नैतिक पतन हो चुका है कि वहां सरेआम घूस लेने देने की बात होती है । एक पार्टी के मुखिया तो खुलेआम अफसरों से कहते हैं कि वैसी फाइल ढूंढो जिससे पैसे निकल सकें । इन हालातो में मीडिया की जिम्मेदारी बनती थी कि घोटालों, घपलों और राजनेताओं के चेहरे से नकाब उजागर करे । झारखंड में इस भूमिका को वहां से एक छोटे से अखबार(हरिवंश जी के शब्द) प्रभात खबर ने बखूबी निभाया । झारखंड बनने के दस साल पहले और झारखंड बनने के दस साल बाद वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश की अगुवाई में प्रभात खबर ने कई घपलों घोटालों को उजागर किया । खुद हरिवंश ने कई विचारोत्तजक लेख लिखकर झारखंड के इतिहास में अपनी जोरदार तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई । उनके करीब दो दशकों के लेखों का संग्रह दो खंडो में प्रकाशित हुआ है । पहले खंड- झारखंड-समय और सवाल में 48 लेख हैं जो 1991 से 2007 के बीच लिखे गए हैं । दूसरे खंड झारखंड-सपने और यथार्थ में 2007 के बाद के लेख हैं । अपनी किताब की भूमिका में हरिवंश ने चर्चिल को कोट करते हुए लिखा है कि- अतीत को जितना पीछे तक देख सकते हैं, देखें । इससे भविष्य की दृष्टि (विजन) मिलेगी । हरिवंश जी ने पहले खंड में झारखंड के एक दशक के अतीत को एक सावधान संपादक की आंखों से देखा है । हरिवंश जी अपने अखबार में उन मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं जो समाज से जुड़े हर तबके के लोगों के मुद्दे हों । हो सकता है शुरू में ये मुद्दे स्थानीय और लोकल लेवल के लगते हों लेकिन बाद में वही मुद्दे राष्ट्रीय महत्व के हो जाते हैं । अपनी किताब की भूमिका में हरिवंश ने माना है कि उनकी पत्रकारिता जंगल जल और जमीन जुड़ी रही है और वो इन मुद्दों को उठाते रहे हैं । इन लेखों से यह साबित भी होता है । किताब का पहला ही लेख पलामू अकाल सं संदर्भ लेते हुए गुमला के गुमनाम से प्रखंड बिशुनपुर फैली बीमारी के बहाने हरिवंश ने बेहद बारीक तरीके से सरकारी व्यवस्था की खामियों पर चोट किया है । जैसे जब वो लिखते हैं कि 25 हजार की दवाइयां बांटने के लिए तीन लाख का अमला नियुक्त किया गया है । उनके मुताबिक उस अंचल में पांच स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां प्रतिवर्ष पांच हजार की दवाइयां आती हैं यानि कि पांचों उपकेंद्र मिलाकर पच्चीस हजार की दवाइयां । लेकिन उन दवाइयों को बांटने के लिए एक एमबीसीएस डॉक्टर समेत वहां साठ लोग तैनात हैं जिनके वेतन आदि पर प्रतिवर्ष तीन लाख रुपए का खर्च होता है । सिर्फ एक अंचल का उदाहरण देकर हरिवंश ने पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों की ओर संकेत किया है । आज भी अगर स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का ऑडिट किया जाए तो इस तरह की कई विसंगतियां सामने आ सकती हैं । बल्कि मेरा तो मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति और भी बुरी हो सकती है ।
अपनी किताब की भूमिका में हरिवंश जी ने कहा है जब 1992-93 में प्रभात खबर ने पशुपालन घोटाला का मुद्दा उठाया तब प्रभात खबर सिर्फ रांची से छपता था । लेकिन बाद में उसी पशुपालन घोटाला ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था । बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव समेत पूर्व मुख्यमंत्री और कई मंत्रियों के अलावा बड़े अफसरशाह इस गोटाले में नपे । लालू को तो जेल भी जाना पड़ा, बिहार पर बीस साल राज करना का लालू का सपना चकनाचूर हो गया । लालू के सपने में प्रभात खबर की पत्रकारिता ने ही पलीता लगया, ऐसा कहा जा सकता है । दरअसल जब प्रबात खबर रांची से निकलता था तब भी उसकी एक जुजारू छवि थी और लोग मानते थे कि वो अखबार मुद्दों को प्रधानता देता है, इसका श्रेय अखबार की टीम के कप्तान को जाता है कि वो अखबार को किस दिशा में ले जाना चाहता है ।
हरिवंश के लेखों की भाषा और उसके शीर्षक बेहद मारक होते हैं । जैसे इस किताब में एक लेख है- जिसका शीर्षक है चरित्रहीन पार्टियां, ब्लैकमेलर विधायक, रंगबाज मंत्रीऔर असहाय झारखंड । अब इस शीर्षक से ही पूरी कहानी साफ हो जाती है कि लेखक क्या कहना चाहता है । झारखंड की पतनशील राजनीति का जो समीकरण सात सितंबर 2006 के लेख में हरिवंश ने खींचा है वो है- झूठ + प्रपंच + छल + षडयंत्र + तिकड़म  । हरिवंश इसको राजनीति का नया समीकरण कहते हैं लेकिन उनसे थोड़ा सा आगे जाने की धृष्टता करते हुए मन करता है कि उनके समीकरण झूठ + प्रपंच + छल + षडयंत्र + तिकड़म में भ्रष्टाचार जोड़कर = सत्ता कर दूं तो वो और मौजूं हो जाएगा । अपने लेखों मे हरिवंश अंग्रेजी के शब्दों का इस तरह से इस्तेमाल करते हैं कि वो और भी मारक हो जाता है । अंग्रेजी के शब्दों के अलावा हरिवंश  खांटी देशज शब्दों का इस्तेमाल करते हुए उसे और भी स्वीकार्य बना देते हैं । जैसे हम शर्मिंदा है कि आप विधायक हैं शीर्षक लेख में हरिवंश ने लिखा है झारखंड में लोकतंत्र अविश्वसनीय बन जाए, इसके लिए हमारे विधायक खूब खट रहे हैं । अब ये जो शब्द खट है वो खांटी देशड शब्द है, स्थानीय स्तर पर बोली जाती है । इसता मतलब है मेहनत करना । लेकिन अपने वाक्य में खट का इस्तेमाल कर हरिवंश के तंज का दंश गहरा गया है । उसी तरह से झारखंड के चुनाव पर एल लेख सबसे गरीब जनता, सबसे अमीर विधायक वाले लेख में भी हरिवंश की भाषा बेहद मारक है । एक जगह विधायकों के बारे में लिखते हैं- इस तरह परफॉरमेंस में सिफर, पर सुविधाओं में सबसे आगे । तंज कसते हुए गंभीर बातें कह देने की जो कला हरिवंश में है उस बाद की पीढ़ी के पत्रकारों को एक सीख देती है ।
हरिवंश की ये दोनों किताबें झारखंड के दो दशक का राजनीतिक घटनाक्रमों का इतिहास है, जिनके लेखों से घझारखंड की कड़वी सचाई सामने आती है  । हलांकि हरिवंश ने भूमिका में लिखा है कि पत्रकारिता को इतिहास का पहला ड्राप्ट कहा जाता है । पर इस पुस्तक में सामाजिक इतिहास बताने या दर्ज करने का मकसद नहीं । पर कौन सी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांसकृतित धाराएं और उपधाराएं इस दौर को प्रबावित कर रही हैं और राज्य व देश की राजनीति को भविष्य में प्रभावित करेंगी, उन्हें रेखांकित और उजागर करने की कोशिश है । झारखंड-दिसुम मुक्तिगाथा और सृजन के सपने, जोहार झारखंड, जमसरोकार की पत्रकारिता समते कई अन्य पुस्तकों के लेखक हरिवंश की प्रतिष्ठा में ये दोनों किताबें तो इजाफा करती ही हैं, झारखंड के समय समाज और राजनीति की समझ को विकसित करने में पाठकों को एक नई और याथार्थपरक दृष्टि भी देती है ।

1 comment:

जितेन्द्र 'जीतू' said...

itni sunder sameeksha padhkar kitab padhne ka man to karne laga hai...shubhkamnayen!!