कुछ दिनों पहले एक फिल्म आई थी जिसकी स्मृति अभी भी जनमानस में ताजा है । फिल्म
का नाम था- पान सिंह तोमर । उस फिल्म में एक अंतरराष्ट्रीय धावक, जिसने भारत का नाम
पूरे विश्व में उंचा किया था, की कहानी थी । पान सिंह तोमर पर समाज और सरकार से मिले
उपेक्षा का दंश इतना गहरा हो गया था कि उसने बीहड़ में जाकर हथियार उठा लिया था । पहले
पान सिंह तोमर एक जिम्मेदार नागरिक की तरह पुलिस स्टेशन जाता है लेकिन जब वहां बुरी
तरह से अपमानित हो जाता है तो उसके पास कोई विकल्प बचता नहीं है । अभी अंतराष्ट्रीय
महिला धावक पिकी प्रामाणिक के साथ भी वैसा ही सलूक किया जा रहा है । एक जमीन के टुकड़े
के लिए पिंकी प्रमाणिक पर रेप का आरोप जैसे केस का सनसनीखेज खुलासा हुआ है । पिंकी
प्रामाणिक एशियाई खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक और राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक
जीतकर भारत का नाम रोशन कर चुकी है । लेकिन कृतध्न राष्ट्र उनके साथ दुर्दांत अपराधी
जैसा बर्ताव कर रहा है ।
इस वजह से ही गिरफ्तार होने के बाद
जब पिंकी प्रमाणिक के हुए दो अलग अलग टेस्ट के अलग अलग नतीजे आए हैं । पिंकी के टेस्ट
में जिस तरह के नतीजे अबतक मिले हैं उससे पिंकी में कुछ जेनेटिक डिफेक्ट के संकेत मिले
हैं । लेकिन विशेषज्ञों की राय में कार्योटाइपिंग के अलावा इस तरह के मामलों में शरीर
की संरचना और बचपन से उसके लालन पालन के आधार का भी ध्यान रखना पड़ा है ताकि नतीजे
सटीक हो सकें । अब देश को पिंकी के तीसरे टेस्ट के नतीजों का इंतजार है । लेकिन इस
पूरे प्रकरण से ये साफ हो गया है कि हमारा समाज समय समय पर पान सिंह तोमर बनाता है
। अब भी वक्त है कि पिंकी को पानसिंह तोमर बनने से रोका जाए । उसको उसकी खोई प्रतिष्ठा
तो वापस नहीं दी जा सकती लेकिन सम्मान तो हम दे ही सकते हैं ।
पिकी प्रमाणिक महिला है जिसपर पुरुष होने का आरोप लगा है लेकिन अबतक ये साबित नहीं
हुआ है कि वो पुरुष हैं । जब पश्चिम बंगाल में उनपर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया
तो पिंकी के साथ पुलिस ने बेहद अमानवीय व्यवहार किया । जैसे ही रेप का आरोप लगा वैसे
ही पुलिस ने पिंकी को मुजरिम मानते हुए जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया । उसको गिरफ्तार
करने से पहले पुलिस सारे कायदे कानून भूल गई कि एक महिला को महिला पुलिस की मौजूदगी
में ही गिरफ्तार किया जा सकता है । पुरुष पुलिस अधिकारी पिंकी को घसीटते हुए थाने तक
ले गए । पुलिस की मंशा इससे भी साफ जाहिर होती है कि उसने आरोप लगाने वाली लड़की का
मेडिकल तक नहीं करवाया । ना ही यह जानने की कोशिश की गई कि आरोप लगानेवाली महिला के
पेनिट्रेशन हुआ या नहीं ताकि कानूनन रेप की पुष्टि हो सके । इस केस में ऐसा नहीं किया गया
क्योंकि पुलिस ये फैसला ले चुकी थी कि पिंकी पुरुष है । उसके बाद रेप के आरोप में जब
पिंकी को जेल भेजा गया तो उसे महिला वॉर्ड की बजाए अलग वार्ड में रख दिया गया । जेल
मैनुअल के तहत महिलाओं को मिलने वाली सहूलियतें पिंकी को नहीं दी गई। अदालत ले जाते
समय वैन में भी पिंकी के साथ कोई महिला कॉंस्टेबल मौजूद नहीं रहती थी । क्यों । क्योंकि
पुलिस और जेल प्रशासन ने मान रखा है कि पिंकी पुरुष है ।
करीब महीने भर तक जेल में जिल्लत, हिकारत और अपमान की जिंदगी काटने के बाद जब पिंकी
जेल से बाहर निकली तो उन्होंने जो बताया वो सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा है । जेल में
रहने के दौरान जब भी उनका जेंडर टेस्ट किया गया तो पुलिस पिंकी के हाथ पांव जानवरों
की तरह बांध देती थी और बेहोश करके जबरन ये टेस्ट किया जाता था । अबतक पुलिस एक निजी
नर्सिंग होम, जिला अस्पताल और एसएसकेएम अस्पताल में पिंकी का जेंडर टेस्ट करवा चुकी
है । क्या इस तरह से पिंकी को जानबूझकर अपमानित नहीं किया जा रहा है । अभी तक ये साबित
नहीं हुआ है कि पिंकी महिला है या पुरुष लेकिन पुलिस ने जिस तरह से उसे पुरुष समझ कर
उसतके साथ गैरजिम्मेदाराना व्यवहार किया है उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए ।
जिस तरह से सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटनेट पर पिंकी की मेडिकल के वक्त के अंतरंग
वीडियो या एमएमएस घूम रहे हैं वो उसकी प्रतिष्ठा और मान सम्मान को तार-तार कर रहे हैं
। पिंकी को रेलवे के नियम की वजह से नौकरी से स्सपेंड कर दिया गया । इन सबके उपर जिस
तरह से मीडिया के एक हिस्से में पिंकी प्रमाणिक की कहानी को रस ले लेकर दिखाया गया
वह बेहद शर्मनाक है । कई अखबारों ने तो उसको सूत्रों के हवाले से उभयलिंगी बता दिया
। इन सबसे पिंकी की प्रतिष्ठा तो धूमिल हुई ही समाज में सर उठाकर चलने का उसका भरोसा
भी खत्म हो गया । क्या हमारा भारतीय समाज अपने नायकों और विजेताओं के साथ इसी तरह का
व्यवहार करता है । क्या इस व्यवहार पर पूरे देश को शर्मसार नहीं होना चाहिए । एक बच्ची
को पेशाब चटवाने के मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय हरकत में आ जाता है लेकिन इस पूरे
मसले पर शासन-प्रशासन की चुप्पी उनकी कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़े कर रही है । क्रिकेट
के अलावा अन्य खेलों के लिए हमेशा चिंता जतानेवाले खेल मंत्री की इस मसले पर खामोशी
हैरान करनेवाली है ।
दरअसल इस पूरे समस्या की जड़ में इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी की
तरफ से जेंडर तय करने के लिए कोई तय मानक नहीं हैं । जेंडर टेस्ट के लिए ओलंपिक कमेटी
के कई बयोलॉजिकल मानक हैं उसके मुताबिक शरीर में टेस्टोएस्टेरॉन की मात्रा से जेंडर
तय किया जाता है । जांच में मेल हॉर्मोन टेस्टोएस्टेरॉन की मात्रा ज्यादा पाई जाती
है तो माना जाता है कि वो पुरुष है । विडंबना यह है कि टेस्टोएस्टेरॉन का कोई एक मानक
स्तर तय नहीं है जिसके आधार पर जेंडर तय हो सके । यह जांच भी इतना आसान नहीं है । उसमें
टेस्टोएस्टेरॉन की मात्रा और उसकी कार्य क्षमता की संयुक्त जांच के बाद ही इसका पता
लग पाता है । अगर मेल क्रोमोजोम वाई टेस्टोएस्टेरॉन के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं देता
है तो उसका विकास महिला की तरह होता है । उसी तरह अगर अनुवांशिक रूप से किसी महिला
के दो एक्स क्रोमोजोम और अतिविकसित एडरीनल ग्लैंड्स के हार्मोन टेस्टोएस्टेरॉन में
तब्दील हो जाते हैं तो उससे शरीर में टेस्टोएस्टेरॉन की मात्रा बढ़ जाती । ऐसी महिलाओं
के एंबिगुअस जेनेटिला भी विकसित हो जाते हैं । उसी तरह अगर किसी महिला में वाई क्रोमोजोम
विकसित हो जाता है और जेनेटिक डिफेक्ट की वजह से वाई क्रोमोजोम टेस्टोएस्टेरॉन के साथ
रेस्पांड नहीं करता है तो उस प्रक्रिया के आदार पर भी जेंडर टेस्ट में मदद मिलती है
।
4 comments:
bahut khub sir...
हमलोग इस मुद्दे पर आपके नज़रिये से पूर्णतः सहमत हैं....सर............पढ़कर अच्छा लगा....
पान सिंह तोमर को बागी बनाने में सरकार की गलत नीतिया ही जिम्मेदार है ......... जो एक जिम्मेदार नागरिक को बागी बनाती है.
पान सिंह तोमर को बागी बनाने में सरकार की गलत नीतिया ही जिम्मेदार है ......... जो एक जिम्मेदार नागरिक को बागी बनाती है.
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