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रिपब्लिक ऑफ आइडिया के सत्र में बोलते हुए आशीष नंदी ने पश्चिम बंगाल में सीपीएम के शासनकाल काल का उदाहरण देते हुए कहा था कि वो एक ऐसा राज्य है जहां भ्रष्टाचार न्यूनतम है क्योंकि पिछले सौ सालों से वहां पिछड़े, दलित और आदिवासी वर्ग का कोई नुमाइंदा सत्ता के करीब नहीं आया । आशी। नंदी के इस बयान को कई समाजशास्त्री तंज और व्यंग्य के रूप में व्याख्यायित कर रहे हैं । इस भाषण में कहां से तंज है यह बात समझ से परे है । 26 जनवरी की सुबह के सत्र के दौरान मैं पूरे वक्त मौजूद था और पूरी बातचीत और उसके कहने के अंदाज से कहीं भी नहीं लग रहा था कि आशीष नंदी व्यंग्य के रूप में यह बात कह रहे हैं । नंदी के इस बयान पर राजनीतिक दलों में दबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और सभी दलों ने उनके इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी । मायावती से लेकर एससी कमीशन के अध्यक्ष पीएल पुनिया ने उनकी गिरफ्तारी की मांग की । पुनिया ने तो उनके बयान को आपराधिक प्रवृत्ति तक का करार दे दिया । पुनिया के इस बयान के किसी भी तरह से सहमत नहीं हुआ जा सकता है, ना ही नंदी की गिरफ्तारी की मांग को जायज करार दिया जा सकता है । पुनिया इस बहाने राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं । लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवियों का एक तबका राजनेताओं को नंदी के बयान पर राजनीति नहीं करने की सलाह दे रहे हैं । उनका तर्क है कि नंदी के बयान का प्रतिवाद तर्कों के आधार पर किया जाना चाहिए और इस मामले से राजनेताओं को अलग रहना चाहिए । दरअसल कुछ बुद्धिजीवियों का यह तर्क बेहद हास्यास्पद है । वो राजनेताओं को राजनीति ना करने की सलाह दे रहे हैं, उनकी अपेक्षा है कि मायावती या पुनिया या बीजेपी-कांग्रेस के नेता अखबारों और पत्रिकाओं में लेख लिखकर विरोध जताएं । लोकतंत्र में राजनेता राजनीति ही करते हैं और करेंगे । हमारे बुद्धिजीवी यह भूल गए हैं कि अगर आशीष दा की तरह का कोई बयान राजनेता देता तो उसके क्या तर्क होते । लोकतंत्र के नाम पर हमारे देश के बुद्धिजीवी एक और खेल खेलते हैं , वह है अपने विचारों को थोपने का खेल । अगर आप हमारे विचारों के साथ नहीं हैं तो आप अनपढ़, मूढ़ और दकियानूसी हैं जबकि होना यह चाहिए कि आशीष नंदी की तरह हर किसी को अपने विचारों को जताने का हक है ।
अमर्त्य सेन ने अपनी किताब में तीन बच्चों- अन्ना, बॉब और कार्ला ( हिंदी अनुवाद में इसे सरल करते हुए ए, बी और सी नाम दे दिया गया है ) के बीच एक बांसुरी के स्वामित्व को लेकर हुए विवाद का उदाहरण देते हैं । अन्ना यह कहकर बांसुरी पर अपना हक जताता है कि उसे ही बांसुरी बजानी आती है । वहीं बॉब का तर्क यह है कि वह बेहद गरीब है और उसके पास कोई खिलैना नहीं है लिहाजा बांसुरी उसको मिलनी चाहिए । कार्ला का तर्क है कि उसने कड़ी मेहनत करके बांसुरी बनाई है इसलिए उसपर उसका ही अधिकार है । अब इन तीन बच्चों के तर्क के आधार पर आपको फैसला करना है । सेन का मानना है कि मानवीय आनंदानुभूति, गरीबी निवारण और अपने श्रम के उत्पादन का आनंद उठाने के अधिकार पर आधारित किसी भी दावे को निराधार कहकर ठुकरा देना सहज नहीं है । आर्थिक समतावादी के लिए बॉब के पक्ष में निर्णय देना आसान है क्योंकि उनका आग्रह संसाधनों के अंतर कम करने को लेकर है । दूसरी ओर स्वातंत्र्यवादी सहज भाव से बांसुरी बनानेवाले यानि कार्ला के पक्ष में फैसला सुना देगा । सबसे अधिक कठिन चुनौती उपयोगिता आनंदवादी के समक्ष खडा़ हो जाता है लेकिन वह स्वातंत्र्यवादी और समतावादी की तुलना में अन्ना के दावे को प्रबल मानते हुए उसके पक्ष में फैसला दे देगा । उसका तर्क होगा कि चूंकि सिर्फ अन्ना को ही बांसुरी बजानी आती है इसलिए उसको सर्वाधिक आनंद मिलेगा । सेन का मानना है कि तीनों बच्चों के निहित स्वार्थों में कोई खास अंतर नहीं है फिर भी तीनों के के दावे अलग-अलग प्रकार के निष्पक्ष और मनमानी रहित तर्कों पर आधारित हैं । ठीक इसी तरह से नंदी, उनके पक्ष में खड़े बुद्धिजीवी और राजनेताओं के अपने अपने तर्क हैं, जिनको रोकना बौद्धिक तानाशाही को बढ़ावा देगा ।
2 comments:
उन्हें अपने दिए गए Fact का आधार भी तुरंत स्पष्ट कर देना चाहिए था....
और मीडिया को हमेशा की तरह दोषी ठहरना कतई सही नहीं है....
Fact कुछ भी हो...ये तो 'चोरी और सीनाजोरी' वाली बात हो गई...
(by D wy बढ़िया विश्लेषण है...)
उन्हें अपने दिए गए Fact का आधार भी तुरंत स्पष्ट कर देना चाहिए था....
और मीडिया को हमेशा की तरह दोषी ठहरना कतई सही नहीं है....
Fact कुछ भी हो...ये तो 'चोरी और सीनाजोरी' वाली बात हो गई...
(by D wy बढ़िया विश्लेषण है...)
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