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Tuesday, November 26, 2013

पांच बरस, सबक सिफर ?

मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के पांच बरस बीत गए । जीवित पकड़े गए आतंकवादी कसाब को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सूली पर लटका दिया गया । लेकिन क्या इन पांच सालों में हमने कोई सबक सीखा है । क्या आज हम दावे के साथ कह सकते हैं कि हमारी समुद्री सीमा सुरक्षित है । क्या आज हमारी खुफिया एजेंसियां पहले से ज्यादा सतर्क हैं । क्या हम पाकिस्तान को आतंकवाद के मसले पर विश्व राजनीति में घेरने और अलग-थलग करने में नाकाम रहे हैं । क्या अन्य पश्चिमी देशों में मिल रही खुफिया सूचनाओं को गंभीरता से लेते हुए आसन्न खतरे का आकलन कर पा रहे हैं । क्या हमारी सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस बल उस तरह के आतंकवादी हमले से निबटने के लिए तैयार है । क्या हमारे राजनेताओं में आतंकवाद से डटकर मुकाबला करने की इच्छाशक्ति दृढ हुई है----आदि आदि कई ऐसे सवाल हैं जो मुंबई हमले के पांच साल बाद भी मुंह बाए खड़े हैं । अगर हमले के वक्त और उसके बाद किए गए दावों की पड़ताल करते हैं तो तस्वीर बहुत संतोषजनक नजर नहीं आती है । मुंबई के होटल ताज, कामा अस्पताल, होटल ट्राइडेंट और लियोपोल्ड कैफे पर दो हजार आठ में हुए हमलों के वक्त हमारे सिस्टम की लापरवाही, लालफीताशाही, प्रशासनिक अड़चनों और नेतृत्व की अदूरदर्शिता ने आतंकवादियों को आराम से तांडव मचाते हुए डेढ सौ से ज्यादा लोगों की जान लेने की छूट दे दी । अभी अभी दो पत्रकार - एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क की मुंबई हमले पर किताब आई है - द सीज, द अटैक ऑन द ताज । इस किताब में एड्रियन और कैथी ने विस्तार से मुंबई हमले की साजिश, हमले की फूलप्रूफ योजना, हमले के दौरान अपने फोन के जरिए अपने आकाओं से संपर्क में रहने, मुंबई पुलिस की अकर्मण्यता, भारतीय नेताओं के निर्णय लेने की अक्षमता आदि पर विस्तार से लिखा है । द सीज में लेखकद्वय ने लश्कर ए तैयबा के आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली के हवाले से बेहद सनसनीखेडज खुलासे किए हैं । जब डेविड हेडली पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में था तो उस वक्त उसका ट्रेनर मेजर इकबाल ने उसे भारत से जुड़ी कुछ बेहद अहम और गोपनीय जानकारियों की एक फाइल दी थी । इस किताब में इस बात का भी जिक्र है कि मेजर इकबाल कई बार डेविड हेडली से ये कहता था कि भारतीय सेना और पुलिस में आईएसआई के मुखबिर हैं । इकबाल ने तो एक बार डेविड हेडली को कहा था कि उनका एक सुपर एजेंट- हनी बी-  दिल्ली में है जो उसे लश्कर के नापाक इरादों को अंजाम देने में मदद करेगा । मेजर इकबाल ने डेविड हेडली को यह भी भरोसा दिलाया था मुंबई हमलों की योजना बनाने में भी हनी बी उसकी मदद करेगा । इस किताब में इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि अजमल आमिर कसाब अपने आतंकवादी साथियों के साथ मुंबई के जिस बधवार पार्क इलाके में उतरा था उस जगह को भारतीय मुखबिर हनी बी के ही सहयोग से चुना गया था । बाद में हमले के पहले डेविड हेडली ने भी जाकर उस जगह मुआयना कर उसको परखा था । उसे मुंबई में आतंकवादियों के घुसने के लिए मुफीद पाया था । लेखकों का दावा है कि उन्हें इस किताब को लिखने के दौरान इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि भारत में आईएसआई का ये मददगार हनी बी लंबे वक्त से मौजूद है । अब सवाल यह उठता है कि इस किताब के प्रकाशन के बाद बारत सरकार ने क्या इस बात की तफ्तीश करने की कोशिश की देश का ये गद्दार हनी बी कौन है ।
मुंबई पर हुए हमलों के बाद खुफिया एजेंसियों के बीच सही तालमेल नहीं होने की बात भी उभर कर सामने आई थी । इस बात के सामने आने के बाद सरकार ने नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड का खूब शोर मचाया था लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी अबतक इस ग्रिड को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है । इस नई किताब के अलावा मुंबई हमले की जांच के लिए बनाई गई प्रधान कमेटी की रिपोर्ट में भी ये बात सामने आई थी कि दो हजार आठ में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के पहले के पहले अमेरिका ने छब्बीस बार भारत को चेतावनी भेजी थी कि पाकिस्तान और पाक अधिृत कश्मीर में बैठे लश्कर ए तैयबा के आतंकवादी मुंबई को निशाना बना सकते हैं । यह बात प्रधान कमेटी की रिपोर्ट में भी है कि अगस्त दो हजार छह के बाद अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने रॉ और आईबी को कई अलर्ट भेजे कर चेताया था कि आतंकवादी मुंबई के फाइव स्टार होटल पर हमले की योजना बना रहे हैं । एक अमेरिकी अलर्ट में तो ताज होटल और ट्राइडेंट पर हमले का भी जिक्र था । लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसियों ने अमेरिका के अलर्ट को नजरअंदाज कर दिया था । वक्त रहते उन चेतावनियों को गंभीरता से लिया जाता और सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा होती तो बहुत मुमकिन है कि ताज में तांडव मचाने से आतंकवादियों को रोका जा सकता था । सुरक्षा जानकारों के मुताबिक अमेरिका ने तो खुले तौर भी कई बार भारत को इस तरह के हमलों से आगाह किया था । अपनी किताब द सीज में एड्रियन और कैथी ने भी इस तरह के संकेत दिए हैं । आतंकवाद और भारत पाकिस्तान के जटिल रिश्तों पर एड्रियन और कैथी की पकड़ और साख बहुत अच्छी है इस वजह से उनके तर्कों को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता है ।
इसके अलावा मुंबई हमलों के वक्त पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठे थे । उस वक्त के पुलिस कमिश्नर हसन गफूर से लेकर कंट्रोल रूम में बैठे आला अफसर राकेश मारिया तक की भूमिका पर सवाल खड़े हुए थे । शहीद अशोक काम्टे की पत्नी विनीता काम्टे ने अपनी किताब द लास्ट बुलेट में कंट्रोल रूम की इस लापरवाही को सूक्षम्ता से उजागर किया है । विनीता ने लंबे संघर्ष के बाद सूचना के अधिकार के तहत जानकारी जुटा कर मुंबई पुलिस के आला अफसरों की लापरवाही और समय रहते फैसले नहीं लेने की क्षमता को उभारा गया है, तथ्यों के साथ । सवाल यह है कि मुंबई पुलिस की इन लापरवाहियों से सबक लेकर भारत के अन्य महानगरों की पुलिस ने कोई सबक लिया है या नहीं । आतंकवादी घटनाओं को रोकना मुमकिन ना हो लेकिन इनसे सबक लेकर सुरक्षा बलों को त्वरित कार्रवाई का पाठ तो पढ़ ही लेना चाहिए ।  लेकिन हाल ही में सीएजी की रिपोर्ट से कई ऐसे खुलासे हुए हैं जो समुद्री सीमा पर हमारी लचर पुलिस व्यवस्था की पोल खोलती हैं । समुद्री सीमा पर निगरानी रखने के लिए उन इलाकों में 27 रडार लगाने का काम भी दो हजार सोलह तक पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है ।
मुबई हमले के पांच बरस के बाद हम ये कह सकते हैं कि हमने सुरक्षा को लेकर कई इंतजाम किए लेकिन क्या ये इंतजाम काफी हैं । क्या पाकिस्तानी एजेंसियों से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे आतंकवादियों से निबटने के लिए हम पूरी तरह से तैयार हैं । दरअसल हमें तैयारी इस बात की और इस आधार पर करनी होगी कि हमारे देश में आतंक फैलानेवालों को एक ऐसे देश का समर्थन है जो यह मानता नहीं है लेकिन बार बार बेनकाब होता है । जरूरत इस बात की भी है कि पाकिस्तान को अंतराष्ट्रीय मंच पर कूटनीतिक तौर पर भी घेरा जाए । चौतरफा प्रयत्नों से ही देश में आतंकवादी घटनाओं को रोका या कम किया जा सकता है । मुंबई हमला एक सबक था लेकिन क्या हमने उस खतरनाक और खूनी सबक से कुछ सीखा । वक्त इंट्रोस्पेक्शन का भी है ।

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