शशि थरूर, समकालीन
राजनीति का एक ऐसा नेता जिनका विवाद के साथ चोली दामन का साथ है।कई बार विवाद हो
जाता है,जबकि बहुधा वो विवादों को आमंत्रित करते हैं। पिछले दिनों उनकी किताब ‘द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर’ आई थी जो नरेन्द्र मोदी पर केंद्रित है। पैराडॉक्सिकल
का शाब्दिक अर्थ तो मिथ्याभासी होता है परंतु इस पुस्तक में पैराडॉक्सिकल को
परोक्ष रूप से एक विशेषण की तरह केंद्र में रखा गया है जिसका अर्थ होता है
लोक-विरुद्ध। इस विशेषण को व्याख्यायित और स्थापित करने के लिए शशि ने तर्क जुटाए
और उसको किताब की शक्ल दे दी। अपनी इस किताब में थरूर ने अंग्रेजी के इस शब्द को
इस तरह से इस्तेमाल किया जिससे कि ये पुस्तक और उसका शीर्षक दोनों उनकी और उनकी
पार्टी कांग्रेस की राजनीति के लिए फायदेमंद हो और पार्टी में उनका भी कद बढ़े। इस
पुस्तक के विमोचन पर जिस तरह से नेताओं का जमावड़ा लगा था वो भी इस बात को पुष्ट भी
करता है। विमोचन के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर पूर्व केंद्री
मंत्री चिदंबरम, अरुण शौरी ने प्रधानमंत्री मोदी को कठघरे में खड़ा किया था। जमकर
राजनीतिक बयानबाजी हुई थी। शशि का अंग्रेजी भाषा ज्ञान बहुत जबरदस्त है और वो अपनी
इस प्रतिभा का उपयोग बहुधा ट्वीटर पर करते भी रहते हैं। उस भाषा ज्ञान का दर्शन
यहां भी पाठकों को होता है।
किताब से सियासत की बात
इस वजह से भी पुष्ट होती है कि थरूर अब नेहरू पर लिखी अपनी पुरानी किताब को भी
राजनीति के औजार के तौर पर इस्तेमान करने जा रहे हैं। डेढ़ दशक पहले 2003 में थरूर
ने जवाहरलाल नेहरू पर एक किताब लिखी थी, ‘नेहरू, द इंवेन्शन ऑफ इंडिया’। अब इस पुस्तक के नए संस्करण का विमोचन कांग्रेस की
पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी 13 नवंबर को करेंगी। स्टैच्यू ऑफ यूनिटि को लेकर सरदार
पटेल और उनके योगदान की पूरे देश में जमकर चर्चा हो रही है। ऐसे माहौल में नेहरू
पर पंद्रह वर्ष पूर्व लिखी और प्रकाशित पुस्तक का विमोचन समारोह करना और उसमें
सोनिया गांधी का आना साफ तौर पर एक राजनीति का संकेत कर रहा है। पुस्तक प्रकाशन
जगत में इस तरह की कोई परंपरा नहीं रही है कि किसी किताब के नए संस्करण को
समारोहपूर्वक जारी किया जाए। जिस तरह से शशि की किताब ‘द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर’ में नेताओं का जमावड़ा लगा था उससे ये अंदाज लगाया
जा सकता है कि नेहरू वाली किताब के विमोचन में भी विपक्षी दलों के नेताओं का जुटान
होगा। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के बीच यहां
राजनीतिक भाषण से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस तरह की राजनीति अमेरिका में जमकर
होती रही है, वहां चुनाव के पहले नेताओं को केंद्र में रखकर पुस्तकें लिखी जाती
रही हैं और फिर उसके आधार पर पक्ष और विपक्ष में माहौल बनाया जाता है। हमारे देश
के लिए यह एक नई प्रवृत्ति है जिसमें ये देखना दिलचस्प होगा कि इसका असर चुनावी
राजनीति पर कितना गहरा होता है।
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