1942 एक ऐसा वर्ष है जिसने भारत की राजनीति, कला
और पत्रकारिता पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। इसी साल अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई
का सूत्रपात हुआ जब महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा बुलंद किया।
इसी वर्ष झांसी की ऐतिहासिक धरती से दैनिक जागरण का प्रकाशन का प्रारंभ हुआ और इसी
वर्ष प्रयागराज की धरती पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का जन्म हुआ। कम लोगों को
ही ये मालूम है कि अमिताभ बच्चन को उनके जन्म के सामय चंद दिनों के लिए एक नाम
मिला था- इंकलाब राय। कुछ ही दिनों बाद हरिवंश राय बच्चन और तेजी को लगा कि उन्हें
अपने बेटे का कोई पारंपरिक नाम रखना चाहिए। फिर दोनों ने तय कर अपने पुत्र का नाम इंकलाब
राय की जगह अमिताभ रखा । पिछले दिनों अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में अपने करियर के
पचास साल पूरे किए। अमिताभ बच्चन के पुत्र अभिषेक बच्चन ने इंस्टाग्राम पर और उनकी
बेटी श्वेता नंदा ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर जब इस बात को साझा किया तो पूरी दुनिया
से बॉलीवुड के इस शहंशाह को बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया। अभिषेक बच्चन ने
अपनो पोस्ट में अपने पिता को अपना सबसे अच्छा दोस्त, गाइड, सबसे बड़ा आलोचक, अपना
आदर्श बताते हुए अंत में कहा कि वो हीरो हैं। अभिषेक के इस पोस्ट को पौने दो लाख
से ज्यादा लोगों ने लाइक किया। श्वेता ने ट्वीटर पर एक वीडियो साझा किया जिसमें
1969 से लेकर अबतक के वर्षों को बेहद कलात्मक तरीके से पेश किया।
हिंदी फिल्मों को जिन चंद कलाकारों ने अपने
क्राफ्ट से बदला और उसको एक नई दिशा दी उसमें अमिताभ बच्चन का नाम शीर्ष पर लिया
जा सकता है। अमिताभ बच्चन की साहित्य में गहरी रुचि थी पर वो उस क्षेत्र में जाना
नहीं चाहते थे। स्कूली दिनों से उनके अंदर थिएटर को लेकर गहरा लगाव था। अमिताभ की
अभिनय कला को पहचान 1957 में निकोलाई गोगल के नाटक ‘इंस्पेक्टर
जनरल’ में मेयर की भूमिका से मिली। इसमें उनकी भूमिका
इतनी दमदार थी कि उन्हें बेस्ट एक्टर के लिए केंडल कप मिला । उनको ये पुरस्कार
जेफ्री कैंडल के हाथों मिला था, जो कि खुद ही एक महान अभिनेता थे। शशि कपूर ने
उनकी बेटी से विवाह किया था। दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद
अमिताभ बच्चन कोलकाता पहुंचे और वहां नौकरी करने लगे। अच्छी नौकरी थी, घर, गाड़ी
और मोटी तनख्वाह लेकिन मन अभिनय में अटका हुआ था। कोलकाता में भी नाटकों में काम
करने लगे, सराहना मिली। अभिनय के जुनून को देखते हुए उनके भाई अजिताभ ने कोलकाता
के विक्टोरिया मेमोरियल के सामने उनकी एक तस्वीर खींची फिल्मफेयर-माधुरी की
राष्ट्रीय प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में भेज दी। अमिताभ का चयन नहीं हुआ। लेकिन इसी
फोटो को देखकर ख्वाजा अहमद अब्बास ने अमिताभ को मिलने के लिए बुला लिया था। ‘सात हिन्दुस्तानी’ फिल्म
मिलने की कहानी की कई बार चर्चा हो चुकी है लेकिन कम ही लोगों को ये पता होगा कि
अमिताभ बच्चन को मनोज कुमार ने अपनी फिल्म ‘यादगार’ में एक रोल ऑफर किया था। छोटा रोल होने की वजह
से अमिताभ ने उसमें काम करने से मना कर दिया था। फिल्मों में रोल के लिए अमिताभ
बच्चन का मुंबई के रूप तारा स्टूडियो में स्क्रीन टेस्ट भी हुआ था जिसमें भी वो
सफल नहीं हो पाए थे। वहां उनको लेखन की ओर जाने की सलाह गई थी। फिर ‘सात हिन्दुस्तानी’ में
रोल मिला। बॉलीवुड में कहा जाता है कि जिसकी पहली फिल्म पिटती है वो बाद में हिंट
होता है। अमिताभ के साथ भी यही हुआ। उनकी शुरुआती दस फिल्में पिटीं लेकिन ‘जंजीर’ की सफलता ने अमिताभ
के साथ साथ फिल्मों की भी दुनिया बदल दी।
अमिताभ बच्चन ने भी अपनी जिंदगी में उतार चढ़ाव
देखे। सेट पर लगी गंभीर चोट से उबरने में लंबा वक्त लगा। फिर एक दौर आया जब उनकी
फिल्में बुरी तरह से पिटने लगीं। उन्होंने एंटरटेनमेंट कंपनी बनाई वो घाटे में चली
गई, राजनीति में गए वहां से बेआबरू होकर निकले। उन्होंने टीवी को चुना और ‘कौन बनेगा करोड़पति’ को होस्ट किया। सफलता एकबार फिर से सदी के
महानायक के कदम चूमने लगी। उस दौर में किसी सुपर स्टार के लिए फिल्म को छोड़कर टी
वी को चुनना बहुत मुश्किल था लेकिन बिग बी ने ये जोखिम उठाया। फिल्मों और भूमिकाओं
के चुनाव में भी सतर्क हुए। अमिताभ बच्चन को बचपन में मुक्केबाजी का शौक था। उनके
पिता हरिवंश राय बच्चन ने उनको मुक्केबाजी पर एक किताब दी जिसपर प्रसिद्ध अंग्रेजी
कवि यीट्स की एक पंक्ति लिखी थी- ‘तगड़ा प्रहार दिमाग के लिए बेहद आनंददायी होता है।‘ संभव है बचपन में पिता से मिली इस सीख की वजह से
हर मुश्किल को आनंदपूर्वक झेलते चले गए। प्रसून जोशी ने अमिताभ बच्चन पर एक कविता
लिखी है जिसकी अंतिम पंक्ति है ‘लहर सा उठा सारे तट
धो गया।‘ सचमुच।
1 comment:
सही कहा।अमिताभ जी ने आज भी एक्टिंग में प्रयोग कर रहे हैं। जिस तरह से वो अपने फील्ड में सक्रिय हैं वो सचमुच प्रेरक है। इस लेख से काफी जानकारी मिली। आभार।
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