अमेरिकी संसद की समितियां दुनियाभर के अलग-अलग
देशों की समस्याओं और वहां के हालात पर मंथन करती रहती हैं। मानवाधिकार से लेकर
अभिव्यक्ति की आजादी तक पर इन समितियों में विचार होता है। दुनिया के अलग-अलग
देशों के प्रतिनिधि को भी इन समितियों की बैठक में बुलाया जाता है और उनको सुना
जाता है। हर किसी का पक्ष सुना जाता है। इस तरह की बैठक इस वजह से महत्वपूर्ण मानी
जाती है कि इससे किसी देश की छवि पूरी दुनिया में बनती या बिगड़ती है। इस तरह की
बैठकों का लाइव प्रसारण होता है और पूरी दुनिया में इसकी कार्यवाही को देखा जाता
है। इन बैठकों में हुई चर्चा पर दुनियाभर में चर्चा भी होती है। इसी तरह की एक
बैठक पिछले दिनों अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति की हुई जिसके केंद्र में दक्षिण
एशिया में मानवाधिकार की स्थिति थी । इस समिति की बैठक का एक पूरा सत्र कश्मीर में
अनुच्छेद तीन सौ सत्तर के खत्म किए जाने के बाद वहां के लोगों के मानवाधिकार पर
था। इस बैठक में इसको लेकर लंबी चर्चा हुई। इस चर्चा में सोमाली अमेरिकन
राजनीतिज्ञ इल्हान ओमर भारत के खिलाफ बोलीं। उन्होंने कश्मीरियों के आत्मनिर्णय का
मुद्दा उठाया, एनआरसी के मसले पर भारत सरकार को घेरने की कोशिश की। उनके आरोपों का
अमेरिका की असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एलिस वेल्स ने प्रतिवाद किया और कहा कि
भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं अपना काम कर रही हैं। एक और वक्ता थीं, लंदन की
वेस्टमिनिस्टर विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर निताशा कौल। निताशा कौल ने अपना
वक्तव्य इस बात से शुरू किया कि वो कश्मीरी पंडित हैं, कश्मीर की हैं, भारत में
पली बढ़ीं, ब्रिटेन में पढ़ाती हैं और अब अमेरिका में भाषण दे रही हैं। वो विषय पर
आतीं इसके पहले उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सीधा वार किया। संघ को
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक अभिभावक बताया और बहुत जोर देकर इस बात को
कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है। राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की योजना में भारत का विस्तार भी है जिसको वो अविभाजित भारत कहते
हैं और वो भारत का विस्तार दक्षिण एशिया के कई देशों तक करना चाहते हैं। इतना कहते
कहते वो संघ को एक मिलिटेंट संगठन करार दे देती हैं। इस क्रम में वो हिटलर का
उदाहरण भी देती हैं। उसके बाद वो कश्मीर में मानवाधिकार के हनन पर वो कई उदाहरणों
के साथ अपनी बात कहती हैं। उनकी बातों में कुछ तथ्य और सुनी सुनाई बातें होती हैं।
अंग्रेजी की एक पुरानी कहावत है कि ‘इफ यू हैव द फैक्ट,
बैंग द फैक्ट एंड इफ यू डोंट हैव द फैक्ट, बैंग द टेबल’ यानि कि अगर आपके पास तथ्य है तो उसको जोरदार
तरीके से पेश करो लेकिन अगर आपके पास तथ्य नहीं है तो फिर नाटकीयता का सहारा लें। निताशा
ने भी कुछ कुछ ऐसा ही किया। उनके पास जब तथ्यों की कमी होती थी और वो अपने वक्तव्य
को कल्पना के आधार पर गढ़ती थीं तो उसमे नाटकीयता का पुट डालती थीं। अब उनको कौन
समझाए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कहीं से मिलिटेंट संगठन तो हो ही नहीं सकता। इसके
मूल में आक्रामकता है ही नहीं मिलिटेंसी तो बहुत दूर की बात है। संघ के प्रचारकों
और पूर्णकालिकों से अगर निताशा कौल मिल लें तो उनको इस बात का एहसास हो जाएगा कि
वो किस तरह से और किन परिस्थितियों में काम करते हैं।संभव है उनका भ्रम भी दूर हो
सके। खैर ये अलहदा विषय है। इसपर फिर कभी चर्चा होगी। एक वक्ता ने तो यहां तक कह
दिया कि भारतीय जनता पार्टी के नेता ने अनुच्छेद तीन सौ सत्तर के हटाने के बाद
कश्मीरी लड़कियों से भारत के अन्य सूबों के लड़कों के शादी तक की बात कही। आश्चर्य
होता है कि अमेरिकी संसद की समितियों में इस तरह की बातें भी हो सकती हैं जो सोशल
मीडिया पर अराजक माहौल में होती हैं।
जब निताशा कौल या इल्हान ओमर जैसी शख्सियत भारत
की चर्चा कर रही थीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मंसूबों में दक्षिण एशियाई देशों
को मिलाकर अविभाजित भारत की बात कर रही थीं या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को
मिलिटेंट संगठन बता रही थीं तो मेरे दिमाग में अचानक से नेटफ्लिक्स पर प्रसारित एक
सीरीज ‘लैला’ की कहानी कौंध गई। कुछ
देर के लिए तो ऐसा लगा कि शायद वक्ताओं ने इस सीरीज को देखकर भारत के बारे में
अपनी राय बना ली है। मुझे ये नहीं पता कि निताशा कौल ने या इल्हान ओमर ने ‘लैला’ सीरीज देखी है या
नहीं पर इतना जरूर मालूम है कि नेटफ्लिक्स ओरिजनल एक साथ दुनिया भर के एक सौ नब्बे
देश में रिलीज की जाती है। ‘लैला’ सीरीज नेटफ्लिक्स ओरिजनल है। इसी तरह से एक और
सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ को तो
26 अलग अलग भाषाओं में डब करके प्रसारित किया जा चुका है। ‘सेक्रेड गेम्स’ में भी
हिन्दुस्तान में रह रहे मुसलमानों को लेकर कई तरह की अवांछित टिप्पणियां की गई
हैं। तो एक बार फिर से प्रश्न यह उठता है कि क्या भारत के बारे में इस तरह की
काल्पनिक कहानियों को दिखानेवाले वेब सीरीज के नियमन की कोई व्यवस्था होनी चाहिए। वेब
सीरीज के लिए भारत में इस वक्त बहुत ही उत्साहवर्धक समय है। जमकर वेब सीरीज बनाए
जा रहे हैं और अब तो हिंदी फिल्मों के सूरमा भी वेब सीरीज के मैदान में कूद पड़े
हैं। चाहे वो करण जौहर हों, शाहरुख खान हों या अजय देवगन हों। इन प्लेटफॉर्म पर
प्रसारित होनेवाले धारावाहिकों में पूंजी जिन कंपनियों का उसका कंटेंट नियंत्रण स्वाभाविक
है। कंपनियों का प्राथमिक उद्देश्य मुनाफा कमाना है। प्रश्न फिर वही उठता है कि
क्या मुनाफे के इस गणित में देश की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखना चाहिए या नहीं।
वेब कंटेंट को लकर नियमन की बात लंबे अरसे से हो
रही है। नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार आदि पर चलाए गए और अब भी चलनेवाले कंटेंट को लेकर इस
स्तंभ में कई बार लिखा जा चुका है। वेब सीरीज पर चलनेवाले कंटेंट को नियंत्रित
करना बेहद मुश्किल है लेकिन जो कंपनियां या जो ओवर द काउंटर प्लेटफॉर्म (ओटीटी) इन
सीरीज का प्रसारण या निर्माण करवा रही हैं उनसे तो नियमन पर बात की ही जा सकती है।
भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने भी वेब सीरीज के नियमन या स्व-नियम को
लेकर चर्चा शुरू कर दी है। मुंबई में एक दौर की चर्चा हो चुकी है और अब दूसरे दौर
की चर्चा होनेवाली है। एक संस्था ने सरकार को स्वनियम की प्रस्तावित रूपरेखा भी दी
है। उसके आधार पर अगले दौर की बातचीत होगी। वेब सीरीज के नियमन की चर्चा के दौरान
कलात्मक अभिव्यक्ति की बात जरूर उठेगी। यह भी कहा जा सकता है कि नियमन से कलाकार
की कल्पनाशीलता बाधित होती है। यह भी कहा जा सकता है कि यथार्थ का चित्रण बाधित हो
सकता है। नियमन की चर्चा जोर पकड़ती है तो यह तर्क भी सामने आएगा कि फिल्मों या
वेब सीरीज में कमोबेश वही दिखाया जाता है जो समाज में घट रहा होता है। सही है। लेकिन
किसी सीरीज से किसी भी देश की प्रतिष्ठा पर आंच आती है या किसी संप्रभु देश की छवि
खराब होती है तो उसपर संविधान के दायरे में विचार जरूर किया जाना चाहिए। वेब सीरीज
पर नियमन को लेकर कोई ऐसी पद्धति विकसित करनी चाहिए जिससे कि इनको दिखाने वाले
प्लेटफॉर्म को उत्तरदायी बनाया जा सके। उत्तरदायी नियमन का लाभ ये हो सकता है कि इसको
प्रसारित करने के पहले ये प्लेटफॉर्म सामूहिक या अपने स्तर पर ऐसी व्यवस्था का
निर्माण करें जहां इन बातों का ध्यान रखा जा सके। अगर ऐसा होता है तो उत्तरदायी कहानी
कहने की पद्धति का विकास हो सकेगा। सरकार को ये भी देखना होगा कि नियमन के नाम पर
कंपनियों के हितों की अनदेखी ना हो और कोई भी ऐसा नियम ना बने जिससे किसी एक
प्लेटफॉर्म को फायदा हो और दूसरे का नुकसान। वेब सीरीज इस वक्त भारत के लिए एक नया
माध्यम है, भारत में इंटरनेट के फैलाव और फोर जी के सस्ता और लोकप्रिय होने से इस
माध्यम को लेकर लोगों में उत्सुकता बढ़ी है। इस क्षेत्र में काम कर रही विदेशी
कंपनियों को भारत में एक बड़ा बाजार और मोटे मुनाफे की संभावना नजर आ रही है। मुनाफा
के लिए काम करने बिल्कुल उचित है लेकिन मुनाफा और उत्तरदायित्व में संतुलन होना
आवश्यक है। किसी भी प्रकार का नियमन इस संतुलन को ध्यान में रखकर ही किया जाना
चाहिए। ये संतुलन ऐसा हो कि कलात्मक अभिव्यक्ति भी बाधित ना हो और इसकी आड़ में
सेंसरशिप का बीज भी ना डले।
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