हिंदी फिल्मों के लंबे इतिहास में पुरस्कारों को
लेकर विवाद उठते रहे हैं। ताजा विवाद उठा है गीतकार मनोज मुंतशिर के एक फैसले से।
इस वर्ष के फिल्मफेयर अवॉर्ड की घोषणा के बाद मनोज मुंतशिर ने ट्वीटर पर ये एलान
किया कि वो अब किसी अवॉर्ड फंक्शन का हिस्सा नहीं होंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि वो
इस बात से खफा हो गए कि फिल्म ‘केसरी’ के लिए लिखे उनके गीत की बजाए ‘गली बॉय’ के गीत ‘अपना टाइम आएगा’ को
फिल्मफेयर अवॉर्ड से पुरस्कृत कर दिया गया। मनोज इतने क्षुब्ध हो गए कि उन्होंने
यहां तक कह दिया कि अगर वो अब भी अवॉर्ड का ध्यान रखते हैं तो ये उनकी कला का
अपमान होगा। मनोज मुंतशिर अपने लिखे गीत को पुरस्कृत गीत से बेहतर मानते हैं इस
वजह से दुखी हैं। उन्होंने अपने दुख को सार्वजनिक भी किया, बाद में उनका एक बयान भी प्रकाशित हुआ कि पूरा
देश उनके साथ खड़ा है और गीत ‘तेरी मिट्टी’ किसी भी पुरस्कार
से परे है। मनोज मुंतशिर ने जिस तरह से पूरे मसले को सामने रखा उसको देखते हुए
मुझे यतीन्द्र मिश्र की पुस्तक लता सुरगाथा का एक प्रसंग याद आ गया जिसमें लता जी
कहती हैं ‘आपसे एक दिल की बात शेयर कर रही हूं, वह यह कि मुझे पूरी उम्मीद थी कि ‘वो कौन थी’ के लिए मदन मोहन को
फिल्मफेयर पुरस्कार मिलेगा। उनको वह नहीं मिला, इसके लिए मुझे
व्यक्तिगत तौर पर बहुत दुख हुआ था। मैंने मदन भैया से उनके घर जाकर यह व्यक्त भी
किया था कि ‘मुझे उम्मीद थी कि ये पुरस्कार इस साल आपको
मिलेगा, मगर नहीं मिला। इसपर मदन भैया ने मुझसे कहा था, लता! तुमको अगर यह लगता
है कि मुझको ये पुरस्कार मिलना चाहिए था और तुम्हें इस बात से तकलीफ है कि मुझे यह
नहीं मिला, तो समझ लो कि मुझे यह पुरस्कार आज मिल गया। इससे
बड़ा पुरस्कार मेरे लिए क्या होगा कि तुम्हें लगता है और न मिलने का दुख है।‘ मनोज का
लिखा गीत भी देश के लाखों लोगों को पसंद है यही उनका पुरस्कार है।
फिल्मफेयर अवॉर्ड को लेकर हमेशा से विवाद होते
रहे हैं और हिंदी फिल्मों से जुड़े ज्यादातर लोगों को इसकी हकीकत पता भी है। इस हकीकत
को ऋषि कपूर ने अपनी आत्मकथा खुल्लमखुल्ला में बयां भी किया है।
अपने और अमिताभ बच्चन के संबंधों पर ऋषि कपूर ने लिखा है कि फिल्म कभी-कभी की शूटिंग के दौरान उनके और अमिताभ के बीच
शीतयुद्ध जैसी स्थिति थी और दोनों में बातचीत भी नहीं होती थी। ऋषि को लगता था कि
अमिताभ इस बात से खफा थे कि ऋषि को ‘बॉबी’ फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था क्योंकि
उनको लगता था कि उसी साल रिलीज हुई फिल्म ‘जंजीर’ के लिए ये पुरस्कार उनको मिलना चाहिए था। ऋषि
कपूर ने असली कहानी इसके बाद बताई, ‘दरअसल वो पुरस्कार
मैंने खरीदा था, मैं अनुभवहीन था और मेरा एक पीआरओ था तारकनाथ गांधी, उसने मुझसे
कहा कि सर तीस हजार दे दो तो आपको मैं अवॉर्ड दिला दूंगा। मैंने बगैर कुछ सोचे
समझे उसको तीस हजार दे दिए। तब मेरे सेक्रेटरी घनश्याम ने भी मुझे कहा था कि सर
देते हैं, मिल जाएगा अवॉर्ड इसमें क्या है।‘ तीस हजार रुपए देने
के बाद उस साल का फिल्मफेयर अवॉर्ड ऋषि कपूर को मिल गया। बाद में किसी ने अमिताभ
बच्चन को सारी बातें बता दीं। ऋषि कपूर के फिल्मफेयर पुरस्कार खरीदने की बात जानकर
अमिताभ नाराज हो गए थे। इस तरह से देखा जाए तो फिल्मफेयर अवॉर्ड की निष्पक्षता और
पारदर्शिता पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। मनोज मुंतशिर जो बात कहते हैं कि उनके
गीत पुरस्कारों से परे हैं तो उसको ही सार्वजनिक जीवन में जीना भी चाहिए।
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