उर्दू के मशहूर शायर गालिब और हिंदी
फिल्मों के शानदार अभिनेता प्राण दिल्ली की मिट्टी जोड़ती है। अपनी शादी के बाद
गालिब अब के पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान में रहने चले आए थे वहीं अपनी शादी के बाद
प्राण बल्लीमारान छोड़कर लाहौर चले गए थे। बल्लीमारान के एक खानदानी रईस परिवार में
प्राण का जन्म हुआ था। प्राण के पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद पेशे से सिविल
इंजीनियर थे और ब्रिटिश हुकूम के दौरान सरकारी निर्माण का ठेका लिया करते थे। केवल
कृष्ण सिकंद को सरकारी इमारतों, सड़कों और पुल बनाने का विशेषज्ञ माना जाता था और
जहां भी सरकार को इस तरह का काम करवाना होता था तो वो उनको बुलाकर ठेके देती थी। सिकंद
परिवार की बल्लीमारान ही क्या पूरी दिल्ली में बहुत प्रतिष्ठा थी और वो आर्थिक रूप
से बहुत संपन्न थे। प्राण की जन्म तिथि को लेकर भी एक दिलचस्प कहानी है। प्राण
बताते थे कि उनकी बुआ कहा करती थीं कि तुम्हारा जन्म 1920 के फरवरी के तीसरे
सप्ताह में हुआ था। प्राण जब ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने पहुंचे तो फॉर्म में
जन्मतिथि का कॉलम था लेकिन उनको तिथि पता नहीं थी। अपनी बुआ की फरवरी के तीसरे
सप्ताह वाली बात याद करके उन्होंने 20 फरवरी की तारीख फॉर्म में भर दी, जो उनकी
आधिकारिक जन्मतिथि बन गई। इस बीच प्राण एक अभिनेता के तौर पर मशहूर होने लगे थे और
पत्र-पत्रिकाओँ में उनके बारे में छपने लगा था।
अचानक एक दिन प्राण को बल्लीमारान के एक
निवासी का पत्र मिला। उन्होंने प्राण को लिखा कि ‘एक लेख में मैंने आपकी जन्मतिथि 20 फरवरी 1920 पढ़ी है
लेकिन मेरे पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि आपकी जन्मतिथि 12 फरवरी 1920 है। पत्र
पढ़ने के बाद प्राण की उत्सुकता बढ़ी और उन्होंने पत्र का उत्तर लिखा और थोड़े
चुनौती भरे अंदाज में उनसे पूछा कि आपके पास क्या प्रमाण है। कुछ दिन बीत गए।
प्राण इस बात को भूल गए थे अचानक एक दिन वो अपनी डाक देख रहे थे तो एक लिफाफा में
उनको अपना मूल जन्म प्रमाण पत्र दिखा जिसपर उनके जन्म की तिथि 12 फरवरी 1920 लिखी
थी। प्रमाण पत्र के साथ उसी व्यक्ति का एक पत्र भी था जिसमें उन्होंने बताया था कि
वो नगरपालिका का कर्मचारी था और उसने प्राण का जन्म प्रमाण पत्र देखा था। प्राण ने
उस व्यक्ति को धन्यवाद का पत्र लिखा और तब से उनकी जन्मतिथि 12 फरवरी 1920 हो गई। 12
फरवरी 2020 को प्राण के सौ साल पूरे हो गए।
प्राण के पिता के पेशे की वजह से उनका
स्थान परिवर्तन होता रहता था। जब भी कोई नया ठेका मिलता तो वो परिवार के साथ वहां
शिफ्ट कर जाते। प्राण ने रामपुर के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। लेकिन
प्राण का पढ़ाई में मन नहीं लगता था। मैट्रिक पास करने के बाद एक दिन उनके पिता ने
बुलाकर पूछा कि आगे क्या पढ़ोगे तो प्राण ने कहा कि वो अब पढ़ना नहीं चाहते हैं और
फोटोग्राफी सीखना चाहते हैं। कुछ दिनों तक सोचविचार करने के बाद प्राण के पिता
लाला केवल कृष्ण सिकंद ने बेटे को अपने मन की करने की अनुमति दे दी लेकिन साथ ही
एक शर्त भी लगा दी वो कनॉट प्लेस स्थित ए दास एंड फोटोग्राफर्स में प्रशिक्षण लें।
प्राण को मालूम था कि ए दास एंड फोटोग्राफर्स के मालिक उनके पिता के दोस्त हैं तो
वो भी तैयार हो गए। प्राण ने वहां फोटोग्राफी की ट्रेनिंग के साथ साथ फिल्म को डेवलप
और प्रिंट करने की कला भी सीखी। अब यहां से नियति प्राण को अभिनय की ओर ले गई। ए
दास एंड कंपनी ने शिमला में एक शाखा खोली तो प्राण को वहां भेज दिया। शिमला में
रहकर प्राण ने फोटोग्राफी में निपुण तो हुए ही वहां ही पहली बार अभिनय भी किया। वहां
आयोजित होनेवाली वार्षिक रामलीला में उन्होंने सीता का अभिनय किया। उस रामलीला में
उनके साथ राम की भूमिका मदनपुरी ने निभाई थी जो बाद में हिंदी फिल्मों के मशहूर
अभिनेता बने।
शिमला में अपने कारोबार से उत्साहित
होकर ए दास एंड कंपनी ने लाहौर में अपनी दुकान खोली और प्राण को वहां भेज दिया। लाहौर
की रामलुभाया की पान दुकान पर उस समय फिल्म यमला जट लिख रहे लेखक वली मुहम्मद वली
ने प्राण को पान खाते देखा और उनका अंदाज इतना भाया कि उन्होंने वहीं उनको फिल्म
का ऑफर दे दिया। प्राण ने ए दास कंपनी की सौ रुपए की नौकरी छोड़कर पंचोली आर्ट
स्टूडियो की पचास रुपए की नौकरी कर ली। इस बीच ये खबर बल्लीमारन में रहनेवाले उनके
पिता तक पहुंची। वो थोड़े झुब्ध हो गए क्योंकि उस वक्त फिल्मों में काम करना अच्छा
नहीं माना जाता था। प्राण के पिताजी ने उनको दिल्ली बुला लिया और फिल्म छोड़कर कोई
और काम करने को कहा। प्राण फिर से ए दास एंड कंपनी से जुड़े लेकिन उनका मन नहीं लग
रहा था। फिर घर के बड़े लोगों ने मिलकर तय किया कि उनकी शादी कर दी जाए। दिल्ली के
ही एक संपन्न अहलूवालिया परिवार की लड़की से उनकी शादी तय कर दी गई। इस बीच उनके
पिता का निधन हो गया। पिता के निधन के बाद प्राण फिर से फिल्मों में काम करने के
लिए बल्लीमारान की गलियां छोड़कर लाहौर जा पहुंचे। लेकिन शादी तो तय हो चुकी थी। लड़की
वाले प्राण के फिल्मों में काम करने को लेकर थोड़े सशंकित थे लेकिन उनकी लड़की और
प्राण दोनों पहले मिल चुके थे और कह सकते हैं कि प्रेम भी अंकुरित हो चुका था। 1945
में प्राण की शादी हुई। शादी के बाद प्राण ने दिल्ली जरूर छोड़ा लेकिन पहले लाहौर
और फिर मुंबई में रहते हुए वो बल्लीमारान को नहीं भूल पाए थे, उसकी गलियों को याद
करते थे और याद तो वो कनॉट प्लेस में बिताए अपने दिनों को भी करते थे। ये भी कौन
जानता था कि सीता जैसी महिला के किरदार से अभिनय की शुरुआत करनेवाले प्राण इस तरह
के रोल करेंगे कि कोई अपने बच्चे का नाम प्राण नहीं रखेगा। खालिस दिल्ली की मिट्टी
की खुशबू के साथ पला बढ़ा ये अभिनेता भारतीय सिनेमा में अपने दमदार अभिनय के बूते
पर आज भी याद किया जाता है।
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